65 साल की "शीला बुआ" बच्चों के लिए साइकिल से पहुंचाती है दूध

शीला बुआ साइकिल से प्रतिदिन 90 लीटर दूध बेचने 8 किमी दूर कस्बा अमांपुर जाती है।
65 साल की "शीला बुआ" बच्चों के लिए साइकिल से पहुंचाती है दूध

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।" संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बड़ा महत्व दिया गया है. भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है. इसका बड़ा कारण उनका मातृत्व, त्याग व सेवाभाव है। त्याग व तपस्या की मूर्ति एक ऐसी विधवा नारी शीला बुआ है जिनके द्वारा पहुंचाए गए दूध से बच्चे अच्छा स्वास्थ्य व सेहत प्राप्त कर रहे है।

द मूकनायक की टीम उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जनपद कासगंज की तहसील सहावर के ब्लाक अमांपुर के ग्राम खेड़ा में पहुंची, जिस गांव के लिए आज भी पक्की सड़क नहीं है और गांव के लोग खेतों में बनी पगडंडी से निकलते हुए दिखाई दे रहे थे। जहां पर हमारी मुलाकात हुई 65 वर्ष की बुजुर्ग विधवा "शीला बुआ" से...

आज हम आपको एक ऐसी बुजुर्ग विधवा मां के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी खुद की कोई संतान तो नहीं है, लेकिन शीला बुआ जो दूध बेचती हैं वही क्षेत्र के शिशुओं को सेहत व स्वास्थ्य देता है। शीला बुआ महिला सशक्तिकरण का जीता-जागता उदाहरण हैं।

शादी के एक साल बाद पति की हुई मौत

शीला बुआ का विवाह जनपद एटा के कस्बा अवागढ़ से सन 1980 में रामप्रकाश के साथ हुआ। विवाह के एक साल बाद ही शीला के पति की मौत हो गई। इसके बाद से वह साइकिल से गांव-गांव जाकर दूध इकट्ठा करके कस्बा में जाकर बेचकर के अपना जीवन यापन कर रही हैं। आज उनकी उम्र लगभग 65 वर्ष हो चुकी है, लेकिन उम्र को मात देकर वह आत्मनिर्भर बनीं और किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना मुनासिब समझा। गांव में प्यार से लोग उन्हें शीला बुआ और शीला बहन कहते हैं। अब वो खुश हो कर बताती हैं कि छोटे-छोटे बच्चे मुझे अब दादी मां भी बोलने लगे हैं।

'आत्मनिर्भर' बानी शीला मां

पति की मौत के बाद ससुराल के लोगों ने ताने देने शुरू कर दिए। इस पर शीला देवी वापस अपने पिता के घर आकर के गांव खेड़ा में रहने लगीं. इस वक्त शीला की उम्र महज 24 साल थी। शादी के 17 वर्षों के बाद लगभग 40 साल की उम्र में उनके पिता रामप्रसाद की मृत्यु सन 1997 में हो गई। इसके बाद रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। शीला किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी. उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए अपने पिता की 4 बीघा जमीन में ही खेती-बाड़ी में हाथ बंटाना शुरू कर दिया।

पति की मौत के बाद पिता और फिर मां का भी उठा साया

अभी धीरे-धीरे शीला देवी की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आई थी कि एक साल में ही उनकी मां की मौत हो गई। पहले पति फिर मां-बाप की मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। मगर शीला देवी के मजबूत अडिग इरादों ने हार नहीं मानी। अन्य महिलाओं की तरह नियति का खेल समझ शीला देवी अपने घर पर नहीं बैठीं। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने भैंसे खरीदी और फिर दूध के काम की शुरुआत की और पास के ही कस्बों में साइकिल से दूध बेचने जाने लगीं। आज वह 25 वर्ष बाद 65 साल की उम्र में भी साइकिल से घर-घर और दुकान-दुकान जाकर दूध बेचती हैं। कुछ दूध उनको घर से मिलता है तो कुछ दूध वह गांवों में पशुपालकों से खरीद लेती हैं और सुबह होते ही शहर की तरफ अपनी साइकिल से दूध बेचने के लिये निकल पड़ती है। वह प्रतिदिन करीब 90 लीटर दूध को बेचती है। पूरे दिन में करीब 30 किमी साइकिल चलाने के बाद वह इस काम को करती है।

कठिन है शीला देवी की दिनचर्या का पालन करना

अगर हम शीला देवी की दिनचर्या की बात करें तो वो सर्दी हो या गर्मी रोज सुबह 4 बजे उठ जाती हैं। क्योंकि उनको पता है हमारे द्वारा पहुंचाए गए दूध से ही मासूम शिशु और बच्चे स्वस्थ रहते है। दूध की बड़ी कैनों को साइकिल पर लादकर 8 किलोमीटर दूर अमांपुर कस्बे में जाकर ग्राहकों को दूध बेचती हैं। फिर दोपहर ढाई बजे वापस घर आकर अपने लिए खाना बनाती हैं। उसके बाद सायं 4 बजे फिर साइकिल से गांवों में जाकर दूध खरीदना और दूध खरीदकर शाम 7 बजे वापस घर वापस आती हैं। भैसों के चारे दाने से लेकर दूध निकालने तक के सारे काम शीला देवी खुद ही करतीं हैं। पति और मां-बाप की मौत के बाद शीला बुआ ने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। कड़ी मेहनत कर वह आत्मनिर्भर बनीं और अपने मजबूत इरादों से वो कर दिखाया, जिसको देख लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं।

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सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ

शीला मां का कहना है कि उनकी वृद्धा विधवा पेंशन बनी थी अब वह भी बंद हो गयी है। किसान सम्मान निधि योजना में भी रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन हमें अभी तक कोई लाभ नहीं मिला है, न ही आयुष्मान भारत योजना के तहत उनका कार्ड ही बना है. कोरोना में बटने वाला राशन भी नही मिला था। क्योंकि शीला के पास खुद का राशनकार्ड नहीं है। सिर्फ शौचालय ग्राम पंचायत की तरफ से मिला है। शीला बुआ ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जिलाधिकारी से सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की मांग की है।

कुछ ऐसे है भारत में विधवा महिलाओं के आंकड़े

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 5.6 करोड़ विधवा महिलाएं हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 5.6 करोड़ विधवा महिलाएं हैं। 2001 से 2011 के बीच 89.71 लाख महिलाओं को विधवा की श्रेणी में जोड़ा गया है। कुल विधवा महिलाओं में से 0.45 फीसदी नाबालिग विधवाएं हैं, जिनकी उम्र 10 साल से 19 साल के बीच की है। वहीं 9.0 फीसदी 20 से 39 साल के बीच की हैं। 32 फीसदी विधवाएं 40 से 59 साल और 58 फीसदी 60 वर्ष से ऊपर की हैं। वहीं कोरोना से पति की मौत के बाद सरकार ने विधवाओं का कोई आधिकारिक आंकड़ा पेश नहीं किया है।

अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें 2011 के आंकड़ों के मुताबिक यहां 1,36,099 विधवा महिलाएं हैं। वहीं सिंगल वुमन का आंकड़ा 12,086,019 है। इनमें बगैर शादी, तलाकशुदा, अलग रहने वाली महिलाएं और विधवा शामिल हैं।

आपको बता दें कि मथुरा जिले के वृंदावन में राज्य सरकार ने निराश्रित विधवा महिलाओं के लिए आश्रय स्थल बनवाया है। जहां 1000 विधवा महिलाएं रह सकती हैं। ये पूरे देश में विधवा महिलाओं का सबसे बड़ा आश्रय स्थल है।

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