मध्य प्रदेश: फर्जी एससी जाति प्रमाणपत्र पर की पुलिस की नौकरी, कोर्ट ने सुनाई दस साल की सजा

आरोपी ने अपनी पूरी ज़िंदगी फर्जी प्रमाण पत्र का उपयोग कर नौकरी की। स्कूल एडमिशन रजिस्टर पर दर्ज था ब्राह्मण।
मध्य प्रदेश: फर्जी एससी जाति प्रमाणपत्र पर की पुलिस की नौकरी, कोर्ट ने सुनाई दस साल की सजा

भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर में एक पुलिस आरक्षक ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए 41 साल तक नौकरी की, जब रिटायरमेंट के दो साल बचे तब कोर्ट ने आरोप सही पाते हुए दस साल की सजा सुना दी। इस मामले में बुधवार को इंदौर कोर्ट ने आरोपी आरक्षक को दस वर्ष के कारावास और अर्थदंड का फैसला सुनाया है। 

इंदौर के लक्ष्मीपुरी कॉलोनी में रहने वाले 60 वर्षीय सत्यनारायण को कोर्ट ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाने और उसे उपयोग कर नौकरी लेने का दोषी पाया है। लक्ष्मीनारायण का जन्म 7 जून 1964 को हुआ था, 19 साल की उम्र में उसे 1983 को पुलिस में आरक्षक के पद पर नौकरी मिल गई। भर्ती के 23 साल बाद 6 मई 2006 को छोटी ग्वालटोली के थाना प्रभारी को पुलिस अधीक्षक ऑफिस से आरक्षक सत्यनारायण बैज नं. 1273 के बारे में फर्जी जाति प्रमाण पत्र देकर पुलिस में नौकरी करने से संबंधित शिकायत मिली। 

शिकायत के साथ एक जांच प्रतिवेदन भी था। इसमें शिकायत करने वाली वर्षा साधु, ऋषि कुमार अग्निहोत्री और ईश्वर वैष्णव के बयान थे। बयान में कहा गया कि आरोपी सत्यनारायण वैष्णव ने कोरी (अनुसूचित जाति) समाज का जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी प्राप्त की है। आरोपी के पिता रामचरण वैष्णव, उसका बडा भाई श्यामलाल वैष्णव और छोटा भाई ईश्वर वैष्णव सभी वैष्णव ब्राह्मण हैं। इसके बावजूद सत्यनारायण ने कोरी जाति का सर्टिफिकेट लगाया और नौकरी हासिल कर ली।

शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी, सत्यनारायण ने जो जाति प्रमाण पत्र नौकरी के समय प्रस्तुत किया था, उसकी फोटोकॉपी लेकर जांच की गई। जांच में जाति प्रमाण पत्र तहसील कार्यालय दण्डाधिकारी और अपर तहसीलदार इंदौर से जारी हुआ पाया गया था। जिसमें आरोपी की जाति 'कोरी' है। जांच में गवाहों के बयानों के आधार पर साबित हुआ कि सत्यनारायण ने नौकरी पाने के उद्देश्य से फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाया था। 

आरोपी सत्यनारायण के खिलाफ थाना छोटी ग्वालटोली में साल 2006 में धारा 420, 467, 468, 471 के तहत केस दर्ज हुआ। इधर, गठित की गई छानबीन समिति ने भी ये पाया कि जाति प्रमाण पत्र फर्जी है। पुलिस करीब 7 साल तक मामले की जांच करती रही और 18 दिसंबर 2013 को जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश किया। कोर्ट में ट्रायल चला और कोर्ट ने इस मामले में आरोपों को सही पाते हुए दस साल की सजा सुना दी। 

जिला लोक अभियोजन अधिकारी संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि मामले में माननीय न्यायालय चतुर्थ अपर सत्र न्यायाधीश जयदीप सिंह ने धारा 467, सहपठित धारा 471, भादंवि में 10 साल की सजा और धारा 420 व 468 में 7-7 साल की सजा सहित कुल 4 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है।

स्कूल एडमिशन रजिस्टर पर दर्ज था ब्राह्मण 

आरोपी आरक्षक सत्यनारायण किस जाति का है, ये पता लगाने के लिए उसके स्कूल में पुलिस ने छानबीन की। शासकीय हिन्दी प्राथमिक विद्यालय क्रमांक 33 किला मैदान में अध्यापक अमृतलाल कोठारी ने कोर्ट को बताया कि, 'स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर उसने पुलिस को आरोपी की जाति के संबंध में प्रमाण-पत्र दिया था।' स्कूल के जाति प्रमाण पत्र में सत्यनारायण की जाति हिन्दू ब्राह्मण लिखी है। आरोपी की जाति स्कॉलर रजिस्टर में ब्राह्मण लिखी पाई गई। जो फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मुख्य साक्ष्य बना। 

यह पहला मामला नहीं!

मध्य प्रदेश में पूर्व में भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। बीते साल में प्रदेश के एक पुलिस अधिकारी ने पहले फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवाया फिर उसी के जरिए पुलिस की नौकरी भी ले ली थी। जब फर्जी प्रमाण-पत्र की शिकायत की गई तब जांच में मामले का खुलासा हो गया था। इस मामला में विदिशा जिले के आनंदपुर पुलिस थाने में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवाने के मामले में ग्वालियर के एडिशनल एसपी अमृतलाल मीणा के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज किया गया था।

अमृतलाल मीणा ने विदिशा जिले की लटेरी तहसील से 2003 के बाद एसटी का प्रमाण-पत्र बनवाकर नौकरी हासिल की थी, जबकि मीणा जाति ओबीसी के अंतर्गत आती है। 2003 से पहले मीणा जाति को सिरोंज, लटेरी तहसील क्षेत्र में एसटी का दर्जा प्राप्त था। इसी का फायदा उठाकर उन्होंने जालसाजी कर अनुसूचित जन जाति का प्रमाण-पत्र बनवा लिया। फिलहाल यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है। 

जानिए क्या हैं नियम?

शासकीय सेवा के लिए फर्जी जाति प्रमाण-पत्र का उपयोग एवं नौकरी हासिल करने वाले शासकीय सेवकों के लिए राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 27 अगस्त 2007 को नियम-निर्देशों के संबंध में प्रदेश के समस्त कलेक्टरों को पत्र भेजे गए थे।

सामान्य प्रशासन के नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र की शिकायतों पर राज्य छानबीन समिति द्वारा जांच की जाती है। जांच समिति या प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जांच में यह पाया जाता है कि जाति प्रमाण पत्र आवेदक द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर प्राप्त किया गया है तो आवेदक को जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर ली गई सुविधाओं से तो वंचित होना पड़ेगा। इसके साथ ही उसके द्वारा जो लाभ प्राप्त किया गया है उसकी भरपाई भी करना पड़ेगी।

यदि उसने शैक्षणिक संस्थाओं, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में प्रवेश लिया है तो उसका प्रवेश रद्द किया जायेगा। शासन द्वारा उस पर किये गये खर्च की क्षतिपूर्ति भी उसे करनी होगी तथा संबंधित के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जायेगी। जांचकर्ता अधिकारी द्वारा असावधानीपूर्वक गलत जाति प्रमाण-पत्र जारी किया गया है तो उस प्राधिकृत अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक एवं विभिन्न कानूनों के अन्तर्गत दण्डात्मक कार्यवाही की सकेगी।

राज्य स्तरीय समिति करती है जांच- 

सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश परिपत्र दिनांक 1 अगस्त, 1996 द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग के जाति प्रमाण-पत्रों के मामलों की छानबीन करने के लिये राज्य स्तर पर एक उच्च स्तरीय छानबीन समिति गठित करने का प्रावधान किया गया था, साथ ही ये भी निर्देश प्रसारित किये गये थे कि छानबीन समिति द्वारा जाति प्रमाण-पत्र फर्जी एवं गलत पाये गये हैं तो ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध विभागाध्यक्ष, संभागीय आयुक्त, कलेक्टर द्वारा आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जायेगा तथा उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक एवं विभिन्न अधिनियमों के तहत दण्डात्मक कार्यवाही की जायेगी। 

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