मध्य प्रदेश: गैस पीड़ितों को नहीं मिला निःशुल्क इलाज, न पेंशन की सुविधा, ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आईं चौंकाने वाली खामियां

जहरीली गैस की चपेट में आए पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन नहीं होने से नहीं मिली कोई सरकारी मदद. भोपाल गैस त्रासदी की चपेट में आए पीड़ितों को नहीं मिला निःशुल्क इलाज. पेंशन की सुविधा से वंचित मिले सैकड़ों परिवार.
भोपाल गैस त्रासदी के समय का वह संयंत्र जिससे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.
भोपाल गैस त्रासदी के समय का वह संयंत्र जिससे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.

भोपाल। 2 दिसंबर, 1984 की रात में यूनियन कार्बाइड की जहरीली गैस ने कई परिवारों को उजाड़ दिया था। इस भयानक त्रासदी का शिकार हुए पीड़ितों को आजतक सरकार से राहत नहीं मिल सकी है। उस रात का वीभत्स मंजर आज भी लोगों को कल की घटना की तरह ही लगता है। गैस त्रासदी के इतने सालों बाद सैकड़ों की संख्या में पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाया है। मध्य प्रदेश जबलपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार को फटकार भी लगाई है।

द मूकनायक की टीम गैस पीड़ितों की समस्याओं को जानने भोपाल के जेपी नगर पहुँचीं। यह इलाका यूनियन कार्बाइड के नजदीक है। यहाँ हर एक घर में गैस पीड़ित रहते हैं। इन परिवारों में कई लोगों की मौत घटना की रात ही हुई थी, जबकि कई लोग ऐसे भी थे जो गंभीर बीमारी से पीड़ित होकर मौत की नींद सो गए।

यहां हम रानी शक्य के घर पहुँचे। दलित समाज से आने वाली रानी छोटे से घर में अपने दो बेटे और एक दिव्यांग बेटी के साथ रहतीं हैं। रानी के पति जहरीली गैस के शिकार हो गए थे जिनकी मौत हो चुकी है।

अपने घर में बैठी रानी शक्य और उनकी दिव्यांग बेटी भारती
अपने घर में बैठी रानी शक्य और उनकी दिव्यांग बेटी भारतीफोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक

रानी ने बताया कि उनके पति ऑटो ड्राइवर थे, लेकिन गैस त्रासदी की रात वह भी शिकार हो गए। कुछ दिनों बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने कहा कि उनके दोनों गुर्दे खराब हो गए हैं। इलाज कराने के बाद भी उनकी जान नहीं बचा पाए। रानी ने कहा, "मेरे ससुर और हम सब उस रात गैस की चपेट में आए थे। लेकिन सिर्फ ससुर का ही इलाज निःशुल्क हो पाया। उनका नाम गैस पीड़ितों में था। बाकी के घर के सदस्य का नाम नहीं है।"

जहरीले पानी का असर अबतक

यूनियन कार्बाइड के आसपास की बस्तियों का भूजल प्रदूषित हुआ है। इसका कारण बड़ी तादात में फैक्ट्री का कचरा जमीन में डंप करना था। गैस त्रासदी के बाद यहां के लोग कैंसर और गुर्दा की बीमारियों से पीड़ित होने लगे। कुछ लोग अचानक अपंग भी हो गए। रानी शक्य की 24 वर्षीय बेटी भारती शक्य दिव्यांग है। वह चलने-फिरने में असमर्थ है, लेकिन भारती को यह समस्या बचपन से नहीं थी। उनकी माँ रानी कहना हैं कि उनकी बेटी गैस के प्रोकोप के ही चपेट में आई। जबकि उसका जन्म बाद में हुआ। गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे एक्टविस्ट मानते हैं कि प्रदूषित जल के कारण यह बीमारियां हुईं हैं। जिसका कारण यूनियन कार्बाइड के पास जमीन में दफन जहरीला कचरा है।

यहीं जेपी नगर में 70 वर्षीय बानो भी रहतीं है। गैस त्रासदी की उस रात के कभी न भूलने वाले मंजर में बानो ने अपने पति को खो दिया। इसके बाद ज़हरीली गैस की चपेट में आये उनके पौते की आठ साल पहले ही मौत हुई है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए बानो कहतीं हैं कि उन्हें सरकार से किसी तरह की राहत नहीं मिली है।

1984 में गैस त्रासदी की आपबीती सुनाती बानो वी
1984 में गैस त्रासदी की आपबीती सुनाती बानो वीफोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक

बानो की आंखों में परेशानी हैं। वह काला चश्मा लगातीं है जिसका कारण गैस त्रासदी है। बानो ने कहा कि, "1984 की उस रात को सभी सो रहे थे। अचानक शोर शुरू हुआ, सब भागने लगे। मेरे पति और मैं भी उस रात गैस के चपेट में आ गए, जिससे सांस फूलने लगी थी। आँखों में तेज जलन हो रही थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था। जब सुबह हुईं तो चारों तरफ लाशें पड़ी थीं। लोग चीख रहे थे, रो रहे थे और अपनों की तलाश कर रहे थे। जिन लोगों ने भागने का प्रयास किया वह लोग ज्यादा दूर तक नहीं जा सके, रास्ते में भागते वक्त ही उनकी मौत हो गई।"

बनो ने कहा, "इतने साल गुजर गए लेकिन कोई सुनने वाला नहीं आया। अब पेंशन तक नहीं मिल रही, इलाज के लिए भटकना पड़ रहा है। कहते थे गैस पीड़ितों का निःशुल्क इलाज सरकार करवाएगी. लेकिन अब कुछ अता पता नहीं।"

9 वर्षों में भी डिजिटल नहीं हुआ डाटा

11 साल पहले 9 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ितों के डाटा डिजिटल करने के निर्देश दिए थे। लेकिन आज तक सरकार यह काम पूरा नहीं कर सकी। अब तक 3.41 लाख गैस पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड जारी हो चुके हैं। इसी महीने जस्टिस शील नागू और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह निराशाजनक है। साढ़े 10 साल से अधिक समय के बाद भी डिजिटलाइजेशन पूरा नहीं हुआ। कोर्ट ने शासन को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसे में सभी प्रतिवादियों के खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए। इस मामले में हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई 16 जनवरी 2024 तय की है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि, सुप्रीम कोर्ट के 2012 और 2018 के आदेश में स्पष्ट रूप से सरकार को निर्देश दिए गए थे कि गैस पीड़ितों का डाटा डिजिटल किया जाए लेकिन अभी तक यह काम अधूरा पड़ा है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते पीड़ितों को न तो ठीक से इलाज मिल रहा है, न ही उन्हें शुद्ध पेयजल मिल पा रहा है। यह स्थिति कई सालों से बनी हुई हैं।

उन्होंने बताया, गैस पीड़ितों के लिए सरकार ने गैस राहत विभाग बनाया था। यही विभाग गैस पीड़ितों को राहत देने का काम करता है। भोपाल में गौतम नगर स्थित गैस राहत अस्पताल सहित अन्य अस्पतालों में निःशुल्क इलाज के लिए कार्ड जारी किए जाते हैं। इसके साथ गैस पीड़ितों को एक हजार रुपए आर्थिक सहायता के रूप हर महीने मिलते हैं। लेकिन जिन लोगों का नाम गैस पीड़ितों के डिजिटल रिकॉर्ड में नहीं हैं। उन्हें न तो निःशुल्क इलाज मिल रहा है और न ही पेंशन। हालांकि, उस रात को जिन परिवारों के लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। वह कमी किसी भी अनुतोष (आर्थिक मदद) से पूरी नहीं हो सकती। सिस्टम की लापरवाही गैस पीड़ितों के दर्द को कम करने के बजाए और बढ़ाने का काम कर रही है।

भोपाल गैस त्रासदी के समय का वह संयंत्र जिससे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.
पेरियार मूवमेंट: आत्म-सम्मान आंदोलन और उसकी स्थायी विरासत
भोपाल गैस त्रासदी के समय का वह संयंत्र जिससे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.
बिहारः मृत्यु भोज नहीं देकर लाइब्रेरी खोलने का निर्णय, परिवार का सामाजिक बहिष्कार!
भोपाल गैस त्रासदी के समय का वह संयंत्र जिससे जहरीली गैस का रिसाव हुआ था.
मध्य प्रदेश: नवजातों की जान ले लेती है ये प्राचीन कुप्रथा,जानिये क्यों हार जाता है स्वास्थ्य विभाग भी

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com