राजस्थान: पुलवामा हमले की वीरांगनाओं से किए वादों को सरकार भूली! ग्राउंड रिपोर्ट..

द मूकनायक ने पुलवामा की चौथी बरसी पर शहीदों के परिजनों से बातकर जानी हकीकत
राजस्थान: पुलवामा हमले की वीरांगनाओं से किए वादों को सरकार भूली! ग्राउंड रिपोर्ट..

जयपुर। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले की आज चौथी बरसी है। हमले में शहीद 40 सैनिकों में 5 राजस्थान से थे। घटना के तुरंत बाद केन्द्र व राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने शोक संतप्त परिजनों से मिलकर कई वादे किए थे, जिनमें से कुछ अब तक पूरे नहीं हुए हैं।

राजस्थान से पुलवामा अटैक में शहीद हुए सैनिकों के कुछ परिवारों से द मूकनायक ने बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा। शहादत के समय राज्य सरकार के मंत्रियों ने सैनिकों की अंत्येष्टि में पहुंच कर देशभक्ति का जज्बा दिखाते हुए बड़े-बड़े वादे किए थे। 2019 से 2023 हो गया। पूरे चार साल बाद भी वीरांगनाओं से किए वादों को पूरा नहीं किया गया है।

सरकारी नौकरी नहीं मिली, मूर्ति का अनावरण अटका

राजस्थान की राजधानी जयपुर से 50 किलोमीटर दूर शाहपुरा तहसील के गोविंदपुरा गांव निवासी जवान रोहितास लाम्बा 14 फरवरी 2019 को पुलवामा अटैक में शहीद हुए थे। शहादत के बाद राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री शान्ति धारिवाल, प्रतापसिंह खाचरियावास व रामलाल जाट अंत्येष्टि में शामिल हुए थे। इन्होंने शहीद के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, गांव की मुख्य सड़क से घर तक 250 मीटर सड़क व शहीद स्मारक पर नलकूप लगाने का वादा किया था, लेकिन 4 साल में एक भी वादा पूरा नहीं हुआ।

शहीद रोहिताश की वीरांगना मंजू जाट
शहीद रोहिताश की वीरांगना मंजू जाट

द मूकनायक से शहीद सैनिक के भाई जितेंद्र सिंह लाम्बा ने बताया कि भाई की मौत के बाद परिवार में कोई कमाने वाला नहीं था। ऐसे में आजीविका के लिए किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी, मुख्य सड़क से घर तक पक्की सड़क व स्मारक पर नलकूप लगाने का वादा किया गया था।

राजस्थान के शहीद रोहिताश लाम्बा
राजस्थान के शहीद रोहिताश लाम्बा

जितेंद्र आगे कहते हैं कि लगातार दो साल तक मंत्रियों के चक्कर लगाता रहा। हर बार मुझे आश्वासन ही दिया गया, लेकिन नौकरी अब तक नहीं मिली है।

"शहादत के कुछ दिन बाद सड़क बनाने का काम भी शुरू हुआ। आधे रास्ते में केवल कंक्रीट (मोरम) डाल कर छोड़ दिया गया। उस पर न तो पैदल चल सकते हैं न ही वाहन चला सकते हैं। हम कच्चे रास्ते से घर तक आते-जाते हैं," जितेंद्र ने कहा। "शहीद स्मारक हमने हमारे पैसे से बनाया है। अंत्येष्टि स्थल पर 150 गज जमीन का पट्टा सरकार ने उपलब्ध करवाया था। स्मारक पर पार्क में नलकूप लगाने की बात की थी। यह भी नहीं लगा", जितेंद्र ने कहा।

शहीद रोहिताश के भाई जितेंद्र सिंह लाम्बा
शहीद रोहिताश के भाई जितेंद्र सिंह लाम्बा

जितेन्द्र आगे कहते हैं कि मूर्ति बनकर तैयार है। दो साल से जयपुर में कारीगर के पास रखी है, लेकिन अभी तक उसको शहीद स्मृति स्थल पर स्थापित नहीं किया गया है।

रोहिताश के अंतिम संस्कार के समय की तस्वीर
रोहिताश के अंतिम संस्कार के समय की तस्वीर

14 जून, 1991 को जन्मे रोहिताश 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। वीरांगना मंजू जाट से विवाह शहादत से एक वर्ष पूर्व हुआ था। दोनों का एक बेटा भी है। वीरांगना कहती हैं कि अपने देवर के लिए सरकारी नौकरी मांगी थी। नेताओं ने भी वादा किया था, लेकिन अभी तक वादा पूरा नहीं किया।

रोहिताश के घर की औऱ जाने वाली सड़क का दृश्य
रोहिताश के घर की औऱ जाने वाली सड़क का दृश्य

नहीं लगी शहीद की प्रतिमा

कोटा जिले के सांगोद कस्बे के विनोद कला गांव के रहने वाले जवान हेमराज मीणा भी 14 फरवरी 2019 को ही पुलवामा हमले में शहीद हुए थे। शहीद हेमराज मीणा के परिवार की कहानी भी शहीद रोहिताश के परिवार जैसी है। शहादत के समय परिवार से किए वादे से नेता पीछे हट रहे हैं। यह आरोप शहीद हेमराज मीणा की पत्नी ने लगाया है। वीरांगना मधुबाला मीणा से द मूकनायक ने बात की तो उनका दर्द भी जुबां पर आ गया। वीरांगना ने कहा कि जब उनके पति के शहीद होने के बाद गांव में अंत्येष्टि हुई तो मौजूदा सरकार के कई मंत्री व क्षेत्रीय विधायक यहां पहुंचे थे।

शहीद हेमराज मीणा
शहीद हेमराज मीणा

उन्होंने कहा कि उस समय स्वायत्त शासन व नगरीय विकास विभाग मंत्री शांति कुमार धारीवाल, खान एवं गोपालन विभाग मंत्री प्रमोद जैन भाया व मंत्री रमेश मीणा ने सांगोद अदालत सर्किल का निर्माण करके शहीद हेमराज मीणा की मूर्ति स्थापित करने की घोषणा की थी, लेकिन शहीद की मूर्ति अभी तक नहीं लगी है। सांगोद में जिस कॉलोनी में रहती हूं वहां नल की व्यवस्था भी नहीं है। दूसरे के बोरिंग से पानी लेकर काम चला रहे हैं।

वीरांगना ने कहा कि मेरी पहली मांग अदालत चौराहे पर शहीद की मूर्ति लगाई जाए। हालांकि उन्होंने बताया कि आर्थिक पैकेज मिल गया है। सरकारी कॉलेज का नाम भी शहीद हेमराज मीणा के नाम कर दिया गया।

नहीं बना उपवन

राजसमंद के बिनोल गांव निवासी नारायण गुर्जर भी पुलवामा हमले में शहीद हुए थे। जानकारी के अनुसार घर से हमले के दो दिन पहले 12 फरवरी को ही वह ड्यूटी पर लौटे थे। स्थानीय पत्रकार जितेन्द्र पालीवाल ने बताया कि शहीद परिवार को सरकार की ओर से आर्थिक मदद दी गई थी। वहीं स्थानीय लोगों ने भी दिल खोलकर आर्थिक मदद की थी। हालांकि अत्येष्टि में शामिल हुईं तत्कालीन मंत्री किरण माहेश्वरी ने शहीद के नाम पर उपवन बनाने का वादा किया था। इसके लिए वनविभाग ने जमीन भी आवंटित की थी, लेकिन आज तक उपवन नहीं बन पाया है।

भरतपुर में पुण्यतिथि कार्यक्रम में शहीद पति को श्रद्धांजलि देने आई घूंघट में वीरांगना।
भरतपुर में पुण्यतिथि कार्यक्रम में शहीद पति को श्रद्धांजलि देने आई घूंघट में वीरांगना।

सरकारी नौकरी मिली न कॉलेज का नामकरण हुआ

भरतपुर जिले की नगर तहसील के गांव सुंदरावली निवासी शहीद जीतराम गुर्जर सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन में तैनात थे। जीतराम गांव से 12 फरवरी को ही ड्यूटी पर लौटे थे। 14 फरवरी को शाहदत की खबर आ गई। शहीद के भाई विक्रम ने बताया कि शहादत के समय सरकार के लोगों ने जो वादे किए पूरे नहीं हुए। वादा किया गया था कि पंचायत समिति मुख्यालय नगर के राजकीय महाविद्यालय का नामकरण शहीद जीतराम गुर्जर के नाम से करेंगे, लेकिन वादे के बाद किसी ने सुध नहीं ली। परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी नहीं मिली।

विक्रम ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि आज उनके शहीद भाई की चौथी पुण्यतिथि है। शहीद स्मारक उनकी खुद की जमीन में अपने पैसे से बनवाया है। सरकार से न तो शहीद की प्रतिमा बनवाई। न ही स्मारक का निर्माण में सहयोग किया। प्रतिमा स्थल पर परिवार व गांव के लोग जमा होकर श्रद्धांजलि अर्पित करने आए हैं। यहां वीरांगना भी बच्चों के साथ मौजूद है। द मूकनायक ने वीरांगना से भी बात करने का प्रयास किया, लेकिन सिसकते हुए उन्होंने किसी से बात करने से मना कर दिया। वीरांगना अपने बुजुर्ग सास व ससुर के साथ घर पर रहकर खेती का काम करती है, और 6 साल की सुमन व 4 साल की इच्छा की परवरिश कर रही है।

देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीद पिता (भगीरथ मीणा) को श्रद्धाजंली अर्पित करते पुत्र विनय
देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीद पिता (भगीरथ मीणा) को श्रद्धाजंली अर्पित करते पुत्र विनय

शहीद भगीरथ के परिवार से किये वादे भी अधूरे

शहीद भागीरथ राजस्थान के धौलपुर जिले के दिहौली थाना इलाके के गांव जैतपुर के रहने वाले थे। शहादत से 6 वर्ष पूर्व सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन में भर्ती हुए थे। परिवार से किए गए सरकारी वादों के क्रियान्वयन को लेकर द मूकनायक ने उनके चाचा जरदान सिंह से बात कर हकीकत जानी।

जरदान सिंह कहते हैं कि उस समय केंद्र व राज्य सरकार के नेता व अधिकारियों ने उनके परिवार से कई वादे किए थे। शहादत को चार साल हो गए। अभी भी कई वादे पूरे नहीं हुए हैं। इनमें मरेना गांव के सरकारी अस्पताल का नाम शहीद भागीरथ के नाम पर करना था जो नहीं हुआ। शहीद के परिवार को जयपुर में आवास के लिए फ्लैट देने का वादा भी किया गया जो नहीं मिला। आगे बताया कि वीरांगना अपने बच्चों के पालन-पोषण व शिक्षा के लिए खेती का काम करती है। शहादत के समय थ्रीफेज बिजली कृषि कनेक्शन देने का वादा किया था। चार साल में भी वीरांगना को फसल सिंचाई के लिए कृषि कनेक्शन नहीं मिला। जरदान कहते हैं, "शहादत के समय शहीद परिवार के प्रति हमदर्दी जता कर देश भक्ति का जज्बा दिखाने वाले नेताओं ने परिवार की तरफ पलट कर नहीं देखा।"

जरदान सिंह ने आगे बताया कि शहीद स्मारक बनाने के लिए साढ़े 7 लाख रुपए की जमीन खरीदी थी। निर्माण के साथ मूर्ति भी हमने खुद बनवाई। जयपुर में एक मूर्तिकार ने एक लाख रुपए भी हड़प लिए थे। फिर दूसरी मूर्ति बनवाई।

राजस्थान: पुलवामा हमले की वीरांगनाओं से किए वादों को सरकार भूली! ग्राउंड रिपोर्ट..
शौर्यचक्र विजेता शहीद की मां से जिला प्रशासन ने कहा-“साबित करो, आप यूपी की निवासी है!“

आपको बता दें कि, पुलवामा हमले के समय काफिले में करीब 78 गाड़ियां थीं। जिनमें 2500 से ज्यादा जवान मौजूद थे। आतंकियों ने जिस बस को टारगेट बनाया था, उसमें 40 जवान मौजूद थे। आतंकी ने 350 किलो विस्फोटक से लदे वाहन को बस से भिड़ा दिया था, जिससे हुए ब्लास्ट में वाहन पर सवार सभी सैनिक शहीद हो गए थे।

घटना के बाद प्रधानमंत्री से लेकर देश भर के नेताओं व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दुःख प्रकट करते हुए देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए विशेष पैकेज देने की घोषणा की थी और तमाम वादे किए थे।

राजस्थान: पुलवामा हमले की वीरांगनाओं से किए वादों को सरकार भूली! ग्राउंड रिपोर्ट..
रिपोर्ट- 10 साल 489 जवान हुए शहीद, मौत के मामले में छत्तीसगढ़ टॉप पर

यह जवान भी हुए थे शहीद

अजीत कुमार आजाद, प्रदीप सिंह यादव, कौशल कुमार रावत, महेश कुमार, प्रदीप कुमार, रमेश यादव, श्याम बाबू, अमित कुमार, विजय मौर्य, पंकज त्रिपाठी, अवधेश यादव, राम वकील (उत्तर प्रदेश), रतन कुमार ठाकुर, संजय कुमार सिन्हा (बिहार), विजय सोरेंग (झारखंड), वसंत कुमार वीवी (केरल), सुब्रमण्यम जी (तमिलनाडू), मनोज कुमार बेहरा, पीके साहू (ओडिशा), जीडी गुरु एच (कर्नाटक), संजय राजपुत (महाराष्ट्र), मनिंदर सिंह अत्री, कुलविंदर सिंह, जयमाल सिंह, सुखजिंदर सिंह (पंजाब), तिलक राज (हिमाचल प्रदेश), बबलू संत्रा (बंगाल), वीरेंद्र सिंह, मोहन लाल (उत्तराखंड), मानेसर बसुमत्री (असम) के थे।

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