13 महीने से तिरपाल के नीचे रह रहे गैस पीड़ितों के परिवारों ने दिया धरना

13 दिसंबर 2022 को रेलवे की जमीन पर बसी 30 साल पुरानी अन्नू नगर बस्ती के रहवासियों के घर रेलवे द्वारा ध्वस्त कर दिए गए थे।
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित परिवार।
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित परिवार। अंकित पचौरी, द मूकनायक।

भोपाल। राजधानी में भोपाल गैस और पानी पीड़ित 153 परिवार विस्थापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 13 महीने से अपने मकानों के मलबे पर तिरपाल बांध कर रह रहे लोगों ने कलेक्टर कार्यलय पहुँच कर धरना दिया। बेघर हुए परिवारों का कहना है कि मकानों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें टोकन दिए गए लेकिन अब 13 महीने बाद भी उन्हें दूसरी जगह विस्थापित नहीं किया गया है।

दरअसल, यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के समीप रेलवे की भूमि पर पिछले 30 सालों से रह रहे परिवारों को पिछली साल रेलवे प्रशासन और जिला प्रशासन ने संयुक्त कार्रवाई कर करीब 250 मकानों को तोड़ दिया था। लेकिन अभी तक इन परिवारों को विस्थापित नहीं किया गया है। जिसकी वजह से अन्नूनगर के लोग कड़ाके की ठंड में तिरपाल के नीचे रहने को मजबूर हैं।

रहवासियों ने बताया आपबीती

यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के पीछे बसे अन्नूनगर के रहवासियों ने बताया कि 13 दिसंबर 2022 को रेलवे की जमीन पर बसी 30 साल पुरानी अन्नू नगर बस्ती के रहवासियों के घर रेलवे द्वारा ध्वस्त किये गए थे। जिसके बाद जिला प्रशासन द्वारा प्रभावित लोगों को आरिफ नगर में 15 बाय 15 के प्लाट मिले थे। लेकिन अब भी 153 गरीब परिवारों को मकान के लिए जगह नहीं मिली है।

'द मूकनायक' से बातचीत करते हुए अन्नू नगर की रहवासी शबनम ने कहा कि जब रेलवे ने हमारे घर तोड़े तब हमें घर का सामान तक नहीं निकालने दिया, गृहस्थी का आधा समान बर्बाद कर दिया। इसके बाद प्रशासन के लोगों ने टोकन दे दिया। एसडीएम ने कहा था कि जल्द ही आपको रहने की जगह दी जाएगी। लेकिन अब 13 महीने बीत चुके हैं, कोई देखने तक नहीं आया। हमें रहने के लिए जगह कब मिलेगी?

गैस पीड़ितों की समस्याओं पर काम कर रहीं भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि गैस पीड़ित संगठनों ने कलेक्टोरेट पहुंचकर विस्थापित किए जाने को लेकर धरना प्रदर्शन किया। जिसपर कलेक्टर ने गैस पीड़ितों की समस्याओं का निराकरण करने की बात कही है। यदि जल्द ही इन्हें रहने को जगह नहीं मिलती तो आगे आंदोलन होगा।

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित परिवार।
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