मध्य प्रदेश: 40 दलित परिवारों को हिन्दू धर्म का परित्याग कर क्यों अपनाना पड़ा बौद्ध धर्म?

शिवपुरी जिले के करैरा तहसील के ग्राम बहगवां में जातिगत भेदभाव के कारण जाटव समाज के 40 परिवारों ने अपनाया बौद्ध धर्म।
40 दलित परिवारों ने सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
40 दलित परिवारों ने सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। अंकित पचौरी, द मूकनायक।

भोपाल। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में 40 दलित परिवारों ने सामूहिक रूप से हिंदू धर्म का परित्याग कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। जानकारी के अनुसार, गाँव में भागवत कथा के भंडारे में हुए जातिगत भेदभाव से आहत होकर दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला किया, जिसके बाद सभी ने सामूहिक रूप से बाबा साहब डॉ. अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराया और बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, जिले के करैरा तहसील के ग्राम बहगवां में भागवत कथा के समापन पर भंडारे का अयोजन किया गया था। भंडारे में जाटव (दलित) समाज के लोगों को पत्तल परोसने से रोक दिया गया था, जिससे आहत होकर जाटव समाज के 40 परिवारों ने हिन्दू धर्म का त्याग करते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। हालांकि, गाँव के सरपंच का कहना है कि सभी आरोप निराधार हैं, ग्रामीणों को बहला-फुसला कर उनसे बौद्ध धर्म स्वीकार करवाया गया है।

ग्राम बहगवां में गांव के लोगों ने चंदा कर भागवत कथा का आयोजन करवाया था। कथा के समापन पर भंडारा कराया गया था। भंडारे में हुए जातिगत भेदभाव के कारण जाटव समाज ने हिन्दू धर्म से परित्याग कर दिया, और बौद्ध धर्म अपना लिया।

'द मूकनायक' से बातचीत करते हुए ग्राम बहगवां के निवासी महेंद्र बौद्ध ने बताया कि गाँव के भंडारे में सभी समाजों को काम बांटे गए, इसी क्रम में जाटव समाज को पत्तल परोसने और जूठी पत्तल उठाने का काम सौंपा गया था, लेकिन बाद में किसी व्यक्ति ने यह कह दिया कि अगर जाटव समाज के लोग पत्तल परोसेंगे तो पत्तल अछूत हो जाएगी। ऐसे में इनसे सिर्फ जूठी पत्तल उठवाने का काम करवाया जाए और अंत में गांव वालों ने कह दिया कि अगर आपको जूठी पत्तल उठाना है तो उठाओ, नहीं तो खाना खाकर अपने घर जाओ। इसके बाद जाटव समाज के सभी लोगों ने जातिगत भेदभावपूर्ण व्यवहार होने से आहत होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की।

40 दलित परिवारों ने सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
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इधर, गांव के सरपंच गजेंद्र रावत का कहना है, "आरोप पूरी तरह निराधार हैं। उनके अनुसार जाटव समाज के लोगों ने एक दिन पूर्व ही अपने हाथ से केले का प्रसाद बांटा था जो पूरे गांव ने लिया और खाया भी। गांव में बौद्ध भिक्षु आए थे, उन्होंने समाज के लोगों को बहला- फुसला कर धर्म परिवर्तन करवाया है। पूरे गांव में किसी भी तरह का काम किसी समाज विशेष को नहीं बांटा गया था, सभी ने मिलजुल कर सारे काम किए हैं।"

द मूकनायक से बातचीत करते हुए करैरा एसडीएम अजय शर्मा ने कहा, ग्राम बहगवां में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन की जानकारी मिली थी। हमने जांच के लिए तहसीलदार को भेजा था। लेकिन जातिगत भेदभाव की कोई भी शिकायत ग्रमीणों के द्वारा नहीं दी गई। बौद्ध धर्म की दीक्षा भी लिखित रूप से जाटव परिवारों ने नहीं ली। गाँव के लोगों ने बताया है, भंडारे में समन्वय नहीं बनने पर जाटव समाज के परिवारों ने चंदा की राशि वापस लेकर अलग भंडारा किया और मौखिक रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है।

40 दलित परिवारों ने सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
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