
नई दिल्ली- 2025 का साल भारत के लिए बोलने की आजादी का काला पन्ना साबित हुआ, जहां हर आवाज़ पर पहरा बैठा दिया गया। सोचिए एक पत्रकार खराब सड़क पर खबर लिखता है और अगले ही दिन उसका शव सेप्टिक टैंक में मिलता है। एक कॉमेडियन हल्का-फुल्का मजाक उड़ाता है, तो विधानसभा में जेल की सिफारिश हो जाती है। साल 2025 भारत के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ऐसा 'डरावना सपना' साबित हुआ, जहां फ्री स्पीच कलेक्टिव (एफएससी) की रिपोर्ट ने 14,875 उल्लंघनों का चौंकाने वाला खुलासा किया। इनमें आठ पत्रकारों और एक सोशल मीडिया स्टार सहित नौ हत्याएं शामिल हैं। साथ ही 117 गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें आठ पत्रकार थे। इसके अलावा 11,385 सेंसरशिप के मामले और 208 कानूनी जाल सामने आए। इंटरनेट ब्लॉक से लेकर फिल्मों पर कट्स तक, हर तरफ 'अदृश्य हाथ' ने दबाव बनाया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि कुछ राज्य ऐसे बने, जहां बोलने को जुर्म का रूप दे दिया गया।
एफएससी की रिपोर्ट साफ बताती है कि ग्रामीण भ्रष्टाचार, राजनीतिक दबाव और 'एंटी-नेशनल' का लेबल इन राज्यों को 'फ्री स्पीच का कातिल' बना दिया।
महाराष्ट्र: यहां 33 हमले पत्रकारों पर ही हुए। मुंबई में एक कॉमेडी क्लब पर तोड़फोड़ कर दी गई, क्योंकि स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर जोक मारा था। कामरा पर मानहानि का केस दर्ज हुआ, गिरफ्तारी का समन जारी किया गया और विधान परिषद ने विशेषाधिकार उल्लंघन का प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया। पुणे में हिंदुत्व गुंडों ने प्रो-पैलेस्टाइन प्रदर्शनकारियों को पीट दिया। चार पत्रकारों गणेश सोनोने, हर्षदा सोनोने, अमोल नंदुरकर और सतीश देशमुख के खिलाफ पांच दिन की जेल की सिफारिश हुई, सिर्फ एनसीपी विधायक अमोल मिटकरी पर वीडियो अपलोड करने के लिए। यूट्यूब चैनल 'सत्य लढा' का वह वीडियो भी हटा दिया गया।
जम्मू-कश्मीर: अप्रैल के पहलगाम अटैक के बाद मई में 8,000 'एक्स' अकाउंट ब्लॉक, जुलाई में 2,354 और द वायर, मक्तूब मीडिया, कश्मीर टाइम्स की एडिटर अनुराधा भसीन, इंडियन एक्सप्रेस के मुजम्मील जलील जैसे नाम प्रभावित। नवंबर में कश्मीर टाइम्स पर छापा। अगस्त में एजी नूरानी, क्रिस्टोफर स्नेडन, अरुंधति रॉय की किताबें बैन हुई, इस्लाम पर किताबें जब्त।
असम : टीडीपी विधायक गुम्मनूर जयराम ने पत्रकारों को धमकी दी- "झूठी खबर छापी तो ट्रेन ट्रैक पर सुला दूंगा!" पत्रकार अभिसार शर्मा पर उनके यूट्यूब शो के लिए राजद्रोह का एफआईआर दर्ज हुआ, जिसमें उन्होंने सीएम हिमंता बिस्वा सरमा की सांप्रदायिक राजनीति पर तथ्यों के आधार पर सवाल उठाए थे। अगस्त में द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन, करण थापर, नजम सेठी और आशुतोष भारद्वाज समेत 12 कॉलमिस्ट्स पर पहलगाम हमले पर लेख लिखने के लिए राजद्रोह का केस ठोका गया। वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुक्खिम को असम ट्रिब्यून में अपना कॉलम बंद करना पड़ा, क्योंकि मुस्लिम बेदखली पर उनका लेख प्रकाशित करने से इनकार कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ : बस्तर में जनवरी में मुकेश चंद्रकार की हत्या हो गई। वे खराब सड़क निर्माण पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। उनका शव सेप्टिक टैंक में मिला, और सहकर्मियों के दबाव पर ही जांच आगे बढ़ी।
कर्नाटक : धर्मस्थला दफन मामले में निचली अदालत ने 8,800 न्यूज लिंक हटाने का आदेश दिया, जो बाद में हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। सहयोग पोर्टल को हाईकोर्ट ने 'पब्लिक गुड' करार दिया, जहां जनवरी से जून तक 29,118 रिमूवल रिक्वेस्ट में से 26,641 पर कंप्लायंस हुई। जनवरी-फरवरी में आईटी मंत्रालय ने 785 ब्लॉकिंग ऑर्डर जारी किए।
अन्य राज्य जैसे उत्तराखंड जहां राजीव प्रताप की नदी में हत्या हुई, अस्पताल में शराब पीने के वीडियो पर तमिलनाडु जहां वी सुरेश पर खनन माफिया ने हमला किया और झारखंड जहां रूपेश कुमार जेल में हैं भी प्रभावित हुए, लेकिन ऊपर बताए राज्य सबसे आगे हैं। कुल मिलाकर 3,070 इंटरनेट कंट्रोल के मामले दर्ज हुए, जिनमें शटडाउन और ऐप ब्लॉक शामिल हैं।
एक अभूतपूर्व कदम में, बड़ी कंपनियों और सरकार दोनों ने पूर्व के हितों की रक्षा के लिए हाथ मिलाया। 16 सितंबर, 2025 को कॉर्पोरेट दिग्गज अडानी ने दिल्ली की एक सिविल अदालत में नौ पत्रकारों और समाचार प्लेटफार्मों (जिनमें पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता और रवि नायर तथा न्यूजलॉन्ड्री और द वायर जैसे समाचार प्लेटफार्म शामिल हैं) को अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) के खिलाफ कथित तौर पर "मानहानिकारक" सामग्री प्रकाशित करने से रोकने के लिए एकतरफा निषेधाज्ञा जारी की।
नए आपराधिक संहिताओं के अधिसूचित होने के एक साल से भी कम समय बाद अप्रैल में औपनिवेशिक काल का राजद्रोह कानून एक नए रूप में फिर से सामने आया। व्यंग्यकार नेहा सिंह राठौर, माद्री काकोटी ( डॉ. मेडुसा) और शमिता यादव (रेंटिंग गोला) पर पहलगाम हमले के संबंध में प्रशासनिक और खुफिया विफलताओं पर सवाल उठाने वाली उनकी ऑनलाइन पोस्टों के लिए राजद्रोह का आरोप लगाया गया। 5 दिसंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राठौर की अग्रिम जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके ट्वीट अपमानजनक थे और किसी भी पूर्व-परीक्षण सुरक्षा के पात्र नहीं थे।
2025 में सिनेमा में सेंसरशिप 'अब्सर्ड' से 'रिडिक्यूलस' हो गई। दिसंबर में केरल फिल्म फेस्टिवल को 19 फिल्में स्क्रीन करने से रोका- सदी पुरानी 'बैटलशिप पोटेमकिन' भी! 'बीफ' या 'जानकी' (रेप विक्टिम स्टोरी, सीता का नाम) पर आपत्ति हुई, दृश्य काटे। नीरज घयवान की 'होमबाउंड' (लॉकडाउन दोस्ती) पर 11 कट्स लगे। 'पंजाब 65' (जस्वंत सिंह खलरा बायोपिक, दिलजीत दोसांझ स्टार) पर 120+ कट्स, रिलीज रुकी।
ब्रिटिश फिल्ममेकर संध्या सूरी की 'संतोष' जो दलित लड़की के रेप-मर्डर और पुलिस कवर-अप पर है, को सीबीएफसी सर्टिफिकेट ही नहीं मिला, इसलिए भारत में रिलीज नहीं हो सकी। यह यूके की आधिकारिक ऑस्कर एंट्री थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 'थग लाइफ' की रिलीज रोकी और अभिनेता कमल हासन से कन्नड़ भावना को ठेस पहुंचाने पर माफी मांगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर फिल्म रिलीज कराई। 'धुरंधर' फिल्म की समीक्षा को ट्रोल्स के दबाव में प्राइवेट कर दिया गया। यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया को अश्लील पॉडकास्ट के लिए सोशल मीडिया पर कंटेंट पोस्ट करने से रोक दिया गया। सीबीएफसी वॉच डेटाबेस ने 2017-2025 में 20,000 फिल्मों पर 100,000 से अधिक कट्स का दस्तावेजीकरण किया, तो सीबीएफसी ने ई-साइनप्रमाण पोर्टल पर सार्वजनिक पहुंच सीमित कर दी।
रिपोर्ट के अनुसार ये उल्लंघन सरकारी नीतियों, कॉर्पोरेट दबाव और संस्थागत तंत्र से प्रेरित हैं। 2025 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) ने कट्स को हथियार बनाया, जबकि सहयोग पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म ने सोशल मीडिया पर हजारों अकाउंट ब्लॉक किए। फ्री स्पीच ट्रैकर डेटाबेस के अनुसार, आने वाले वर्षों में नियामक दबाव और बढ़ सकता है, जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति को और कमजोर करेगा। अधिक जानकारी के लिए फ्री स्पीच की पूरी रिपोर्ट पढें।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.