देश संविधान से चलता है या मनु स्मृति से, फैसला करे सुप्रीम कोर्ट: याचिका दायर

इतिहासकार-राजनीतिक शास्त्री की राय इतर, बोले मनु व्यक्ति नहीं
जयपुर राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगी मनु की मूर्ति
जयपुर राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगी मनु की मूर्तिफोटो साभार- Livelaw

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगी मनु की मूर्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस पर सुनवाई को लेकर अभी तिथि भी निर्धारित नहीं हुई है। ऐसे में याचिका का परिणाम क्या होगा यह कहना मुश्किल है। फिलहाल याचिका दायर होने के बाद देश भर में जयपुर राजस्थान हाईकोर्ट की चर्चा हो रही है। उक्त याचिका चेतन बैरवा एडवोकेट के माध्यम से राजस्थान के सवाईमाधोपुर व करौली जिले के रहने वाले रामजीलाल बैरवा, जितेंद्र कुमार मीना व जगदीश प्रसाद गुर्जर ने लगाई है।

संविधान सर्वोपरि या मनु का कानून?

अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले याचिकाकर्ता रामजीलाल बैरवा कहते हैं कि देश संविधान से चलता है। हाईकोर्ट परिसर में मनु की मूर्ति लगी है। हमने सुप्रीम कोर्ट से यही पूछा है कि देश संविधान से चलता है या फिर मनु स्मृति से? ऐसे तो न्यायालय परिसर से मनु की मूर्ति देखकर भारतीय समाज संविधान पर भरोसा करें या मनुस्मृति से न्याय व्यवस्था चलेगी। 67 साल के रामजीलाल सवाईमाधोपुर जिले के एक गांव में खेती करते हैं।

मनुवादियों ने किया प्रगति का विरोध

साथी याचिकाकर्ता 48 वर्षीय जगदीश गुर्जर भी गांव में खेती करते हैं। जगदीश कहते हैं कि "हमारा समाज अति पिछड़ा है। जंगलों में पशुपालन पर आजीविका निर्भर है। हमने समाज की तरक्की के आरक्षण मांगा तो मनुवादी सोच रखने वाले लोगों ने इसका विरोध किया। हक की लड़ाई में हमारे 70 से अधिक लोगों की जानें गईं। आरक्षण मिला तो मनुवादियों ने इसे खत्म करने के लिए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। अब सवाल यह है कि जहां मनु की मूर्ति लगी हो वहां पिछड़ों को न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?"

मनु की सोच से न्याय नहीं मिल सकता

तीसरे याचिकाकर्ता करोली जिले के हैं। बीटेक के बाद कम्पीटीशन की तैयारी में लगे जितेंद्र कुमार मीणा कहते हैं कि "वर्तमान समय में देश को धर्म व जातिवाद में बांटा गया है। भारतीय समाज को वर्ण व्यवस्था में बांटा है। संवैधानिक देश मे भेदभाव वाले समाज की व्यवस्था करने वाले मनु की सोच से देश चलेगा तो न्याय नहीं मिल सकता। हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट परिसर से मनु की मूर्ति हटवा कर देश में संवैधानिक व्यवस्था का भरोसा स्थापित करे।"

देश संविधान से चलता है तो फिर हाई कोर्ट में मनु की मूर्ति क्यों?

याचिकाकर्ताओं की तरफ से चेतन बैरवा एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह तय करने की मांग की है कि देश संविधान से चलता है या मनु स्मृति से? यदि देश संविधान से चलता है तो फिर हाई कोर्ट जयपुर में मनु की मूर्ति क्यों? याचिका 12 जनवरी को दायर की गई है, जिसमें यह कहा गया है कि हाई कोर्ट जयपुर में लगी मनु की मूर्ति संविधान विरोधी है लिहाजा उसे वहां से हटाया जाना चाहिए। खासकर इसलिए जबकि हाई कोर्ट खुद ही संविधान के आर्टिकल 214 की ताकत के बल पर खड़ा हुआ है।

याचिका में एडवोकेट बैरवा ने मनु की मूर्ति को संविधान विरोधी बताया है क्योंकि वह भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दी गई मूल भावना (स्वतंत्रता, समानता, न्याय व बंधुता) के खिलाफ है। एडवोकेट बैरवा ने मनु की मूर्ति को संविधान के पार्ट 3 के खिलाफ भी बताया है, जिसमें कि भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार दिए हुए हैं।

मनुस्मृति नहीं करती नारी, अन्य जातियों का सम्मान

याचिका में एडवोकेट बैरवा ने मनु स्मृति के उन खास श्लोकों का हवाला भी दिया है जो एससी/एसटी ओबीसी के खिलाफ हैं, साथ ही जो क्षत्रिय, वैश्य व महिलाओं के खिलाफ भी बताए गए हैं। याचिका में कहा कि "मनुस्मृति के अध्याय 2 के श्लोक 138 में लिखा हुआ है कि 100 साल के क्षत्रिय को भी 10 साल के ब्राह्मण के बच्चे को अपने पिता के बराबर मानना चाहिये। अध्याय के श्लोक 417 में लिखा हुआ है कि वैश्यों व शूद्रों को राज काज के नजदीक नहीं आने देना चाहिए वरना समाज में अराजकता फैलने का डर रहता है। चैप्टर 2 के श्लोक 218 में साफ लिखा हुआ है कि महिलाएं विद्वान से विद्वान पुरुष को भी गलत रास्ते पर ले जाने में सक्षम होती हैं, चैप्टर 5 के श्लोक 150 में लिखा हुआ है कि महिला चाहे बूढ़ी हो या जवान उसे स्वतंत्र नहीं छोड़ा जाना चाहिए, चैप्टर 1 के श्लोक 93 में लिखा है कि शूद्रों (एससी, एसटी, ओबीसी) को धन संचय का कोई अधिकार नहीं है, चैप्टर 10 के श्लोक 122 में लिखा हुआ है कि शूद्रों (एससी, एसटी, ओबीसी) को झूठा खाना और फटे-टूटे कपड़े ही पहनने को दिए जाने चाहिए, चैप्टर 4 के श्लोक 216 में लिखा हुआ है कि भील, मंदारी, लुहार, धोबी इस सबका का अन्न अपवित्र होता है लिहाजा उसे ग्रहण नहीं किया जाना चाहिए। चैप्टर 8 के श्लोक 397 में लिखा हुआ है कि नट, चारण, भाट तो खुद ही अपनी आजीविका के लिए अपनी स्त्रियों को सजा धजा कर पर पुरुष के पास भेज देते हैं, चैप्टर 9 के श्लोक 91 में लिखा हुआ है कि सुनार पापियों का शिरोमणि होता है लिहाजा शासक को चाहिए कि वह उसके साथ सख्ती से पेश आए।"

मनु स्मृति है धर्म परिवर्तन का कारण

उपरोक्त श्लोकों का हवाला देते हुए चेतन बैरवा एडवोकेट ने याचिका में यह भी कहा है कि मनु की मूर्ति न केवल भारतीय लोकतंत्र की विरोधी है बल्कि वह एससी, एसटी, ओबीसी पर अत्याचार करने की प्रेरणा देने वाली भी है। धर्म परिवर्तन का मूल कारण भी एडवोकेट बैरवा ने इस याचिका में मनु स्मृति को ही माना है क्योंकि मनुवाद और जातिवाद के उत्पीड़न के चलते एससी, एसटी, ओबीसी के लोग हिंदू धर्म को त्यागकर मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन बन जाते हैं जिससे कुल मिलाकर हिंदू धर्म का ही नुकसान होता है।

एससी, एसटी, ओबीसी को सरकारी नौकरियों व उच्च शिक्षा में आरक्षण दिए जाने के पीछे भी मूल कारण, एडवोकेट बैरवा ने मनु स्मृति द्वारा पैदा किए हुए सामाजिक भेदभाव को ही माना है। वरना बाबा साहब अम्बेडकर को संविधान में आरक्षण के प्रावधान करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मनु स्मृति को एडवोकेट बैरवा ने सीधा-सीधा देश की 75 % जनता के खिलाफ बताया है जिसमें 16 % अनुसूचितजाति, 7 % अनुसूचित जनजाति तथा 52 % ओबीसी के लोग शामिल हैं।

याचिका में कहा गया कि मनुवाद और जातिवाद यूं ही अगर चलता रहा तो भारत देश फिर से एक बार विभाजन का शिकार हो सकता है। याचिका के अंत में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई है कि वह राजस्थान हाई कोर्ट जयपुर को अपने यहां लगी मनु की मूर्ति हटाने के निर्देश जारी करें।

महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्षरत सुमन देवथिया मनु की मूर्ति ही नहीं अपितु मनुवादी सोच के ही उन्मूलन को आवश्यक मानती हैं। भारत जोड़ो यात्रा तहत राहुल गांधी के राजस्थान प्रवास के दौरान सुमन ने मनु की मूर्ति को लेकर भी चर्चा की थी। द मूकनायक से बातचीत में सुमन ने कहा "राहुल ने भी इस बात को स्वीकार किया कि देश में संवैधानिक मूल्यों की स्थापना केवल कागज़ी न होकर प्रायोगिक रूप में भी अमल किया जाना चाहिए। मनु की मूर्ति और मनुवादी सोच दोनों ही अन्याय और गैर बराबरी की बात करते हैं। ये पुरानी लड़ाई है जो निरंतर और तब तक जारी रहेगी जब तक समाज में समभाव और समानता स्थाई तौर पर कायम नहीं हो जाती।"

इतिहासकार : 34 स्मृतियों में सर्वोपरि मनु स्मृति

संस्कृत और इतिहास के विशेषज्ञ और राजस्थान के विख्यात साहित्यकार डॉ. श्री कृष्ण जुगनू मनु को एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था और मानवीय मूल्यों व आदर्शों का प्रतीक मानते हैं। बकौल जुगनू मनु स्मृति का मूल भृगु संहिता है। हिन्दू पुराण में 34 स्मृतियां हैं जिनमें मनु स्मृति को सर्वोपरि माना गया है। यह उस कालखण्ड में प्रचलित सामाजिक व्यवस्था के निर्वहन और राजा को राजधर्म की पालना करने के लिए मार्गदर्शिका है। मनु को नारी विरोधी और जातिवाद का बढ़ावा देने वाला ग्रंथ समझना संकुचित विचारधारा है।

एक नहीं 14 मनु हुए: राजनीतिक विद

सुखाड़िया विवि उदयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. गिरधारी सिंह कुम्पावत के अनुसार, मनु एक व्यक्ति नहीं है ना ही मनु स्मृति मनु द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक है। इतिहासकार मनु की संख्या पर एकमत नहीं, कोई इनकी संख्या 6 तो कोई 14 मानता है। मानव की उत्तपत्ति मनु से हुई। मनु का अर्थ है मनन करने वाला और विभिन्न कालखंडों में सामाजिक व्यवस्थाओं, रीतियों राजनीति और अर्थव्यवस्था पर मनुष्यों विशेषकर राजा को ज्ञान देने वाले मार्गदर्शक मनु कहलाये। बताया जाता है कि संसार के प्रथम व्यक्ति और सृष्टि के रचनाकार मनु ने नारद को, नारद नेमार्कण्डेय को, मार्कण्डेय ने सुमति भार्गव को राजधर्म, समाजिक व्यवस्था और दंड नीति पर जो व्याख्यान दिए भृगु महाराज ने उनका संकलन किया जिन्हें हम आज मनुस्मृति के रूप में पढ़ते हैं। मनु पहले 'लॉ गिवर' हैं और राज्य की उत्तपत्ति, संप्रभुता का सिद्धान्त आदि मनु की ही देन है।

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