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जातिगत जनगणना: इस शर्त पर RSS ला सकता है मार्च में प्रस्ताव, जानिये क्या?

पिछले कुछ समय से देश में जातिगत जनगणना की मांग तेज होती जा रही है। खासतौर पर कांग्रेस समेत कुछ अन्य विपक्षी दल जाति आधारित जनगणना की लगातार मांग कर रहे हैं। यह मांग पिछले महीने 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक चुनावी मुद्दा भी बन गई थी।

नई दिल्ली- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) देश में जाति जनगणना को लेकर चल रही बहस में पहले तो खुद को शामिल नहीं करना चाहता था। लेकिन एक पदाधिकारी के बयान के बाद अपना रुख साफ करना पड़ा। दरअसल 2 दिन पहले संघ के सह संचालक ने मीडिया में कहा कि जाति जनगणना नहीं होनी चाहिए। उनके इस बयान के बाद इस पर चर्चा होने लगी। जिसके बाद संघ की तरफ से रुख साफ किया गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने कहा कि पिछले कुछ समय से जाति आधारित जनगणना की चर्चा फिर शुरू हुई है। उन्होंने कहा कि हमारा यह मत है, कि इसका उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और ऐसा करते वक्त सभी पक्ष यह सुनिश्चित करें कि किसी भी वजह से सामाजिक समझ और एकात्मकता खंडित ना हो।

उन्होंने कहा कि संघ किसी भी प्रकार के भेदभाव और विषमता से मुक्त समरसता और सामाजिक न्याय पर आधारित हिंदू समाज के लक्ष्य को लेकर लगातार काम कर रहा है। संघ के प्रचार प्रमुख ने आरक्षण को लेकर भी संघ का रुख साफ करने की कोशिश की। मीडिया के मुताबिक मार्च में होने वाले संघ की प्रतिनिधि सभा में भी जाति जनगणना को लेकर एक प्रस्ताव आ सकता है। लेकिन यह इसके पक्ष या विरोध में न होकर एक सामान्य प्रस्ताव होगा। संघ की प्रतिनिधि सभा संघ की फैसला लेने वाली सर्वोच्च बॉडी होती है। इसकी मीटिंग हर साल मार्च में होती है। प्रतिनिधि सभा में संघ के कामकाज की समीक्षा की जाती है। साथ ही कुछ प्रस्ताव भी पास किए जाते हैं।

पिछले कुछ समय से देश में जातिगत जनगणना की मांग तेज होती जा रही है। खासतौर पर कांग्रेस समेत कुछ अन्य विपक्षी दल जाति आधारित जनगणना की लगातार मांग कर रहे हैं। यह मांग पिछले महीने 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक चुनावी मुद्दा भी बन गई थी। यही नहीं अक्टूबर में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य सरकार की ओर से दो चरणों में कराई गई जाति आधारित जनगणना के परिणाम जारी कर दिए थे।

द मूकनायक ने कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा जी से बात की। वह बताती है, कि RSS हमेशा से ही पिछड़ों, आदिवासियों आदि के खिलाफ रहता है, तो वह कैसे इस मामले में पीछे रह सकता है? वैसे भी समाज के हर वर्ग को सामने आकर अपना हक लेना चाहिए। लेकिन आरएसएस कभी नहीं चाहता कि कोई भी पिछड़ा वर्ग आदिवासी वर्ग और महिला वर्ग कभी आगे आए। पता नहीं उनकी सोच कैसी है। और RSS के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। सरकार को अपना यह कार्य पूरी तरह ईमानदारी से करना चाहिए।

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