देश को मिला पहला बौद्ध CJI: अंबेडकरवादी परिवार से निकलकर सुप्रीम कोर्ट की सबसे ऊंची कुर्सी तक — जानिए BR गवई का संघर्ष!

बुद्धिस्ट और दलित समुदाय से आने वाले न्यायमूर्ति बी.आर. गवई बने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश, जानिए उनके जीवन, संघर्ष और ऐतिहासिक फैसलों की पूरी कहानी।
Justice BR Gavai Takes Oath as 52nd Chief Justice of India.
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली
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नई दिल्ली: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने आज सुबह 10 बजे भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो 13 मई को सेवानिवृत्त हुए।

न्यायमूर्ति गवई देश के सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश बनने वाले दूसरे दलित और पहले बौद्ध हैं। उनसे पहले न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन 2007 में पहले दलित मुख्य न्यायाधीश बने थे। न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल छह महीनों का होगा और वे नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त होंगे।

1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से अब तक केवल सात जज ही अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से आए हैं।

आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, बन गए जज

न्यायमूर्ति गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने बी.कॉम की डिग्री लेने के बाद अमरावती विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।

कई लोग नहीं जानते कि न्यायमूर्ति गवई कभी वास्तुकार (आर्किटेक्ट) बनना चाहते थे, लेकिन अपने पिता की इच्छा के कारण उन्होंने वकालत का रास्ता चुना। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक प्रसिद्ध अंबेडकरवादी नेता और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक थे।

रामकृष्ण गवई अमरावती से लोकसभा सांसद रहे और 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। उनका निधन 2015 में हुआ, चार साल पहले जब उनके बेटे बी.आर. गवई सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए।

वकालत से सर्वोच्च न्यायालय तक

न्यायमूर्ति गवई ने 16 मार्च 1985 को बार काउंसिल में पंजीकरण कराया और 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से वकालत की। बाद में वे नागपुर बेंच में प्रैक्टिस करने लगे।

12 नवंबर 2005 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। सुप्रीम कोर्ट में वे लगभग 700 बेंच का हिस्सा रहे और करीब 300 महत्वपूर्ण फैसले लिखे।

प्रमुख फैसले: अनुच्छेद 370 से लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड तक

न्यायमूर्ति गवई ने कई संवेदनशील और ऐतिहासिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:

  • नवंबर 2024 में, उन्होंने एक फैसले में कहा कि बिना उचित प्रक्रिया के संपत्तियों को गिराना कानून के शासन के खिलाफ है।

  • वे उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने को वैध ठहराया।

  • फरवरी 2024 में, वे उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।

  • उन्होंने यूएपीए और पीएमएलए जैसे सख्त कानूनों के तहत मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ प्रक्रियागत सुरक्षा की स्थापना की।

  • एक महत्वपूर्ण फैसले में उन्होंने अनुसूचित जाति आरक्षण में उप-वर्गीकरण को वैध बताया और उसके विरोध की तुलना "ऊँची जातियों द्वारा किए गए ऐतिहासिक भेदभाव" से की।

  • वे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा भी रहे।

  • इसके अलावा, उन्होंने 2016 की नोटबंदी को वैध ठहराने वाला बहुमत मत भी लिखा।

राहुल गांधी के मामले में पारदर्शिता

जुलाई 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई करते समय, न्यायमूर्ति गवई ने पारदर्शिता दिखाते हुए अपने पारिवारिक राजनीतिक संबंधों का उल्लेख किया और खुद को इस मामले से अलग करने की पेशकश की।

उन्होंने कहा, “हालांकि मेरे पिता कांग्रेस के सदस्य नहीं थे, लेकिन वे पार्टी के साथ करीब 40 वर्षों तक जुड़े रहे। मेरे भाई आज भी कांग्रेस से जुड़े हुए हैं।”

सरकार ने उनकी अलग होने की पेशकश को स्वीकार नहीं किया और बेंच ने राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी, जिससे उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल हो सकी।

आने वाले छह महीने : चुनौतियां और प्राथमिकताएं

मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गवई के सामने कई अहम चुनौतियां होंगी। वर्तमान में दो हाई कोर्ट के जज — न्यायमूर्ति शेखर यादव (इलाहाबाद हाई कोर्ट) और पूर्व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (दिल्ली हाई कोर्ट) — महाभियोग जैसी कार्यवाही का सामना कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति गवई के कार्यकाल की शुरुआत में ही 15 मई को एक महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है, जिसमें वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई है।

न्यायमूर्ति गवई का मुख्य न्यायाधीश बनना भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अहम मोड़ है, जो न केवल प्रतिनिधित्व की दृष्टि से बल्कि न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों को सुदृढ़ करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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