नई दिल्ली— सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई ने सोमवार को पहले अंबेडकर मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर एक सशक्त केंद्र सरकार और एक एकजुट भारत के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) को नैतिक रूप से बाध्यकारी माना जाना चाहिए।
जस्टिस गवई ने कहा, “हालांकि अंबेडकर को अस्पृश्यता के कारण काफी कुछ सहना पड़ा, लेकिन उन्होंने संविधान सभा में काम करते समय कभी भी उस कड़वाहट को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उनके लिए देश सर्वोपरि था। वे सदैव राष्ट्रीय एकता के पक्ष में खड़े रहे।”
जस्टिस गवई ने बताया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत “उद्देश्य प्रस्ताव” में अमेरिका की तर्ज पर एक संघीय ढांचे का सुझाव दिया गया था, जिसमें केंद्र, प्रांतों और रियासतों के लिए अलग-अलग संविधान की बात कही गई थी।
अंबेडकर ने प्रस्ताव के तीसरे पैरा पर आपत्ति जताई, जिसमें दो अलग-अलग शासकीय व्यवस्थाओं — एक केंद्र में और दूसरी प्रांतों में — की बात की गई थी।
जस्टिस गवई ने अंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा, “मैं इस बात से आश्चर्यचकित हूं कि प्रस्ताव में प्रांतों को समूहबद्ध करने के विचार का कोई उल्लेख नहीं है। व्यक्तिगत रूप से, मैं समूहबद्धता के विचार के पक्ष में नहीं हूं। मैं एक मजबूत और एकजुट केंद्र का समर्थक हूं — उससे भी अधिक मजबूत, जितना भारत सरकार अधिनियम 1935 में था।”
अंबेडकर की राष्ट्रीय पहचान पर दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, “अंबेडकर का मानना था कि सभी भारतीयों में यह भावना होनी चाहिए कि हम सबसे पहले और आखिर में भारतीय हैं। उन्होंने कहा था कि मैं उस विचार से संतुष्ट नहीं हूं जिसमें कहा जाता है कि हम पहले भारतीय हैं, फिर हिंदू या मुसलमान। हमारी भारतीय निष्ठा किसी भी धार्मिक, सांस्कृतिक या भाषाई निष्ठा से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।”
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों पर अंबेडकर के विचार साझा करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, “हालांकि अंबेडकर ने स्वीकार किया कि इन सिद्धांतों को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, लेकिन उन्होंने इन्हें पूरी तरह से निष्प्रभावी मानने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि ये सिद्धांत भावी कार्यपालिका और विधायिका के लिए एक प्रकार के ‘निर्देश उपकरण’ हैं।”
जस्टिस गवई ने अंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा, “जो भी सत्ता में आएगा, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकेगा। भले ही कोर्ट में जवाबदेही न हो, लेकिन जनता के सामने, चुनावों में उसे इन सिद्धांतों का उत्तर देना ही होगा।”
संविधान के मसौदे पर यह आलोचना भी हुई थी कि इसमें केंद्र को अत्यधिक शक्तियाँ दी गई हैं। इस पर अंबेडकर का जवाब था कि आधुनिक समय की आवश्यकताएँ ऐसी हैं कि केंद्र की शक्ति को रोकना कठिन है।
जस्टिस गवई ने कहा, “अंबेडकर का मानना था कि प्रस्तावित संविधान व्यावहारिक, लचीला और देश को शांति और युद्ध — दोनों परिस्थितियों में एकजुट रखने के लिए पर्याप्त मजबूत है।”
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