नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में हाल में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि महिलाओं को माहवारी (menstruation) के समय छुट्टी दी जाए। शीर्ष अदालत में एडवोकेट शैलेंद्र मणी त्रिपाठी ने यह याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि महिला स्टूडेंट्स और कामकाजी महिलाओं को माहवारी के वक्त छुट्टी दी जानी चाहिए।
लोकल मीडिया में छपी खबरों के अनुसार याचिकाकर्ता ने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की एक स्टडी का हवाला दिया है। इसमें कहा गया है कि माहवारी के वक्त महिलाओं को काफी दर्द रहता है। स्टडी में यह भी कहा गया है कि दर्द की स्थिति यह होती है कि वह किसी आदमी के हार्ट अटैक में होने वाले दर्द के बराबर होता है। इस कारण कामकाजी महिलाओं के काम की क्षमता को प्रभावित करता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि कई कंपनियां पेड पीरियड लीव ऑफर करती हैं।
जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि कई राज्य भी महावारी छुट्टी देते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि महिलाओं को इससे वंचित करना उनके समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। महिलाएं भारत की नागरिक हैं और उन्हें समान अधिकार मिले हुए हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि 2018 में शशि थरूर ने वूमेन्स सेक्सुअल रिप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रूअल राइट्स बिल पेश किया था। इसमें कहा गया था कि महिलाओं को पब्लिक अथॉरिटी फ्री में सिनेटरी पैड आदि उपलब्ध कराएं। याचिकाकर्ता ने कहा कि पीरियड के समय छुट्टी के लिए कोई कानून नहीं है।
लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ने लिखित जवाब में कहा था कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972 में मेंस्ट्रूअल लीव के लिए कोई प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पीआईएल को लेकर सिविल सोसाइटी ने काफी सकारात्मक रूख दिखाया है।
द मूकनायक को महिलाओं के लिए काम कर रही एक एनजीओ की निदेशक ज्योति आनंद ने बताया कि, अभी केवल याचिका दाखिल की गई है इस पर अभी फैसला आना बाकी है। उन्होंने कहा कि अगर यह फैसला आ जाता है कि मासिक धर्म के दौरान कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को छुट्टी मिल जाएगी तो यह अच्छी बात होगी।
ज्योति ने आगे बताया कि, मासिक धर्म के इस दर्द को लेकर लोगों में जागरूकता ही नहीं है। पुरूषों को मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द की जानकारी देने के लिए गुड़गांव में एक मशीन लगाई गई है कि महिलाओं को इन दिनों में कैसा दर्द होता है। पुरूषों ने मशीन पर बैठ कर महसूस किया, लेकिन वे 1 मिनट भी बैठ नहीं पाए और ना ही कोई कार्य कर पाए।
दक्षिणी राजस्थान में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर काम कर रही एनजीओ जतन संस्थान के निदेशक डॉ. कैलाश बृजवासी ने बताया कि कामकाजी महिलाओं व छात्राओं को मासिक धर्म के दौरान छुट्टी देने के विचार का स्वागत होना चाहिए, लेकिन इसको और विस्तार देकर असंगठित क्षेत्र में काम कर रही महिला मजदूरों, महिला कृषकों को भी इसका लाभ देने के बारे में विचार करना चाहिए।
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