पढाई छोड़ काम करने को विवश दक्षिण राजस्थान की आदिवासी युवतियों पर 'द मूकनायक' की ग्राउंड रिपोर्ट को 'लाडली' का जूरी अप्रीसिएशन साइटेशन

14वें लाडली मीडिया अवार्ड्स में संपादक गीता सुनील पिल्लई की रिपोर्ट को जूरी से मिली प्रशंसा
 यह रिपोर्ट उन आदिवासी महिलाओं की कहानी है जो कठिन परिस्थितियों में भी अद्वितीय दृढ़ता का प्रदर्शन करती हैं। वे खुद काम करके अपने परिवार और छोटे भाई-बहनों की शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रही हैं।
यह रिपोर्ट उन आदिवासी महिलाओं की कहानी है जो कठिन परिस्थितियों में भी अद्वितीय दृढ़ता का प्रदर्शन करती हैं। वे खुद काम करके अपने परिवार और छोटे भाई-बहनों की शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रही हैं।
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नई दिल्ली- अपनी प्रभावशाली पत्रकारिता के लिए, द मूकनायक की संपादक गीता सुनील पिल्लई को 14वें लाडली मीडिया अवार्ड्स फॉर जेंडर सेंसिटिविटी में Jury Appreciation Citation से नवाजा गया है। यह पुरस्कार पिल्लई की गत वर्ष नवम्बर में राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र बांसवाड़ा से की गई ग्राउंड रिपोर्ट के लिए दिया गया है।

रिपोर्ट जिसका हिंदी शीर्षक है “Rajasthan Election ग्राउंड रिपोर्ट: सिलाई मशीन लेकर बाजारों में बैठने को क्यों मजबूर हैं राजस्थान की सैकड़ों आदिवासी बेटियां?” वेब न्यूज़ रिपोर्ट – इंग्लिश श्रेणी में सम्मानित की गई है। यह रिपोर्ट themooknayak.com पर प्रकाशित हुई थी जिसमें आदिवासी समुदायों की युवतियों और महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर गहनता से प्रकाश डाला गया है।

जूरी ने मूकनायक की इस रिपोर्ट को सराहा है जिसमे एक जटिल और प्रभावशाली कहानी प्रस्तुत की गई है. रिपोर्ट में 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' जैसे सरकारी नारे-अभियानों और बांसवाड़ा में आदिवासी लड़कियों द्वारा अनुभव की जा रही कठोर वास्तविकताओं के बीच के अंतर को उजागर किया गया। भले ही सरकार की ओर से महिला शिक्षा और सशक्तिकरण के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए हैं, लेकिन वास्तविकता इससे पूरी तरह अलग है।

लाडली मीडिया अवार्ड्स के आधिकारिक ईमेल में आयोजकों ने द मूकनायक की संस्थापक, मीना कोटवाल की भी मीडिया रिपोर्टिंग में जेंडर सेंसिटिविटी को बढ़ावा देने के लिए सराहना की है।

द मूकनायक की यह रिपोर्ट एक चिंताजनक पक्ष उजागर करती है: एक क्षेत्र जहाँ रोजगार के अवसर सीमित हैं, आदिवासी लड़कियों को शिक्षा के बजाय काम चुनने के लिए मजबूर किया जाता है। पढ़ाई के प्रति पहले की अपेक्षाएँ परिवारों की तत्कालिक आर्थिक जरूरतों से ढक जाती हैं।

 यह रिपोर्ट उन आदिवासी महिलाओं की कहानी है जो कठिन परिस्थितियों में भी अद्वितीय दृढ़ता का प्रदर्शन करती हैं। वे खुद काम करके अपने परिवार और छोटे भाई-बहनों की शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रही हैं।
Rajasthan Election ग्राउंड रिपोर्ट: सिलाई मशीन लेकर बाजारों में बैठने को क्यों मजबूर हैं राजस्थान की सैकड़ों आदिवासी बेटियां?

बांसवाड़ा का कुशलगढ़ कस्बा, जो गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, में लोगों की आर्थिक स्थिति गंभीर है। पुरुषों को भीषण रोजगार संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे परिवारों की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ जाती है। कई लड़कियाँ, जिन्हें स्कूल या कॉलेज में होना चाहिए, अपनी पढ़ाई छोड़कर सिलाई का काम करने पर मजबूर हैं। कुशलगढ़, जो बाँसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा शहर है, के बाजारों में सिलाई मशीनों की निरंतर गूंज उनकी संघर्ष की कहानी बयान करती है।

गीता सुनील पिल्लई की रिपोर्ट इन महिलाओं की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करती है, जो मुख्यतः आदिवासी समुदायों से हैं और कठिन परिस्थितियों में भी अद्वितीय दृढ़ता का प्रदर्शन करती हैं। वे न केवल अपने परिवारों को संबल प्रदान करती हैं, बल्कि अपने छोटे भाइयों और बहनों की शिक्षा की जिम्मेदारी भी निभाती हैं। हालांकि, यह आत्मनिर्भरता आवश्यकता से उत्पन्न होती है, न कि इच्छा से। रिपोर्ट यह उजागर करती है कि ये युवा महिलाएँ आर्थिक दबाव और सीमित अवसरों के कारण इस काम में धकेल दी जाती हैं।

ऐसी अनेक महिलाएं हैं जिनके पति सीजनल खेती बाड़ी होने के कारण साल के 7-8 महीने बेरोजगार होकर घर बैठे रहते हैं और पत्नियों को घर चलाने के लिए मजबूरन टेलरिंग कार्य करना पड़ रहा है। घर के आदमी कमाने के लिए मजबूरी में गुजरात जाते हैं, वहां स्वयं का खर्चा निकालने के बाद मामूली रूपया परिवार को भेज पाते हैं ऐसे में महिलाओं के पास सिलाई के अलावा आजीविका अर्जित करने का कोई भी जरिया नहीं है. राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा जनजाति कल्याण के दावे और महिला सशक्तिकरण को लेकर सरकारी आकंड़े मानों जैसे यहां के टेलरिंग दुकानों के बाहर कतरनों की तरह बिखरे पड़े हैं। 

एक ओर सकारात्मक पक्ष यह कि ये लड़कियां आत्मनिर्भर होने के साथ अपने भरे पूरे परिवार का भी पेट पाल रही हैं, छोटे भाई बहनों की शिक्षा का खर्चा उठाती हैं लेकिन इस तस्वीर का एक दुखद पहलू यह है कि ये जनजाति युवतियां अपने शौक या इच्छा से ये काम नहीं कर रहीं बल्कि पारिवारिक दबाव, नौकरियां नहीं मिलने की मजबूरी, विपन्न आर्थिक हालातों के चलते रोज सुबह अपने गांवों से कई किलोमीटर का फासला तय करके कुशलगढ़ के बाजारों तक दुकान करने आती जाती हैं। कोई अपनी पढ़ाई के साथ ये काम कर रहीं हैं तो कई ड्राप आउट होकर यानी पढ़ाई छोड़कर। कोई ऑटो रिक्शा तो कोई बस से आती हैं, किसी के घर की हालत इतनी खराब है कि वह रोजाना 3-4 किलोमीटर पैदल चलकर आने को विवश हैं। 

लाडली मीडिया अवार्ड्स फॉर जेंडर सेंसिटिविटी, जिसे पॉपुलेशन फर्स्ट द्वारा आयोजित किया जाता है, जो जेंडर समानता और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए मीडिया के प्रयासों को सम्मानित करते हैं। 2024 के अवार्ड्स समारोह का आयोजन 4 सितंबर को मुंबई में किया गया।

गौरतलब है कि 2022 में,द मूकनायक की संस्थापक मीना कोटवाल को उनके प्रभावशाली कहानियों के लिए लाडली मीडिया जूरी अप्रीसिएशन साइटेशन प्राप्त हुआ। उन्हें जूरी अप्रीसिएशन साइटेशन के तहत 'हATHRAS पीडिता को गए आज एक साल हो गए, डर के साये में जी रहा है परिवार…!' (हाथरस केस के एक साल पूरे होने पर, परिवार डर के साये में जी रहा है) और 'डेल्टा मेघवाल मामले में दोषियों को सजा…' (डेल्टा मेघवाल केस में दोषियों को सजा) जैसी कहानियों के लिए सम्मानित किया गया।

 यह रिपोर्ट उन आदिवासी महिलाओं की कहानी है जो कठिन परिस्थितियों में भी अद्वितीय दृढ़ता का प्रदर्शन करती हैं। वे खुद काम करके अपने परिवार और छोटे भाई-बहनों की शिक्षा की जिम्मेदारी निभा रही हैं।
द मूकनायक फाउंडर मीना कोटवाल को लाडली मीडिया सम्मान

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