नई दिल्ली: पत्नी से रेप मामले में पति पर मुकदमा चलेगा या नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

मैरिटल रेप केस पर सजा होनी चाहिए। पर दोनों पक्षों के बारे में अच्छी तरह जानकारी करने के बाद।
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टफाइल फोटो

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस बात का भरोसा दिलाया है कि वह मैरिटल रेप वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। न्यायालय ने कहा कि कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई किए जाने के बाद तीन न्यायधीशों की पीठ मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के लिए कोई नियत तारीख नहीं दी है।

बहस का केंद्र और पूरा मामला क्या है?

भारत में पिछले कई सालों से इस बात को लेकर बहस है कि मैरिटल रेप को आईपीसी में अपवाद माना जाना कितना सही है। इसके खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई है और मांग की गई है कि इसे अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए केंद्र की ओर से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट को बताया था कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार और अन्य हितधारको के साथ सलाह मशविरा के बाद ही केंद्र सरकार अपना रुख तय कर कोर्ट के सामने रखने की स्थिति में होगी।

क्या होता है मैरिटल रेप?

दरअसल जब कोई पति अपनी पत्नी की सहमति के बिना या जबरदस्ती यौन संबंध बनाता है तो उसे मैरिटल रेप कहा जाता है। हालांकि भारतीय दंड संहिता में दुष्कर्म की परिभाषा को तय की गई है लेकिन मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में शादी के बाद कोई पति अगर अपनी पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाता है तो उसके लिए रेप केस में कानूनी मदद का प्रावधान नहीं है।

रेप मामले में कानून क्या कहता है?

आईपीसी की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है। उसी में मैरिटल रेप यानी पति द्वारा 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए संबंध को और एक अपवाद माना गया है। कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी भी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध बनाता है तो वह रेप होगा। महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है तो उसकी सहमति के मायने नहीं है। यानी 18 साल से कम उम्र की लड़की की सहमति से बनाए गए संबंध भी रेप होगा। साथ ही कहा गया है कि अगर कोई लड़की 15 साल से कम है और उसके पति ने उसके संबंध बनाए तो वह भी रेप होगा, लेकिन पत्नी नाबालिग है और उसकी उम्र 15 साल से ज्यादा है तो उसके साथ बनाए गए संबंध रेप के दायरे में नहीं आएगा।

लेकिन अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आया और इस अपवाद को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया। जजमेंट के बाद अब नाबालिक पत्नी शिकायत कर सकती है। रेप का केस दर्ज करवा सकती है। हालांकि पत्नी अगर बालिग है तो मौजूदा कानूनी प्रावधान के तहत पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप का केस दर्ज नहीं करा सकती है।

मामले में विवाद किस बात का

सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप का मामला ऐसे समय में आया है जब देश की इसी सर्वोच्च अदालत में सेम सेक्स मैरिज का मामला भी चल रहा है। मैरिटल रेप पर कई वर्षों से समाज और सरकार के स्तर पर भी बहस चलती रही है। इस मामले में केंद्र पहले से बने कानून में कोई बदलाव नहीं चाहता। दरअसल, एक बड़ा सामाजिक पक्ष है जो इस मामले को मौजूदा सामाजिक ताने-बाने को डिस्टर्ब करने वाला मानता है। मैरिटल मसलों पर दूसरे विकसित देशों में भी वर्षों से बहस चल रही है। भारत की तरह वहां भी यह मामले अदालतों में पहुंचे अब तक लगभग 150 मैरिटल रेप को कानून अपराध मान चुके हैं। 32 ऐसे देश हैं जहां अभी भी मैरिटल रेप अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मसले को सुनने की मनसा दिखा दी तो आने वाले समय में इस मसले पर कानूनी दिशा मिल सकती है।

21 फरवरी को सुरक्षित रखा गया था फैसला

वैवाहिक रेप को अपराध घोषित किया जाए या नहीं इसपर दिल्ली हाईकोर्ट को आज फैसला सुनाना था। इस मामले में पहले केंद्र सरकार ने मौजूदा कानून की तरफदारी की थी। लेकिन बाद में यू टर्न लेते हुए इसमें बदलाव की वकालत की। हाई कोर्ट ने 21 फरवरी को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

क्यों बड़ी बेंच को सौंपा गया?

कानूनी मतभेद इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपे जाने की बड़ी वजह बनी। मैरिटल रेप मामले पर सुनवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस हरिशंकर के विचारों में कानून के प्रावधानों को हटाने को लेकर मतभेद था। ऐसे में इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपा गया है। पीठ ने याचिकाकर्ता को शीर्ष अदालत में अपील करने की छूट दी है।

मैरिटल रेप के अपराध ना होने के क्या है दुष्परिणाम

देश में मैरिटल रेप के अपराध की श्रेणी में ना होने की वजह से कई महिलाएं अपने घर में इसका सामना कर रही हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक देश में अब भी 29 प्रतिशत से अधिक महिलाएं अपने पति की शारीरिक या यौन हिंसा झेल रही हैं। गांव और शहरों में अंतर और भी ज्यादा है। ग्रामीण इलाकों में 32 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं। वहीं शहरों में 24 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं।

इस बहस पर द मूकनायक ने वकील प्रीति शाह से बात की। वे दिल्ली जिला अदालत और उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करनी वाली एक स्वतंत्र वकील है। वह बताती है कि मैरिटल रेप केस पर सजा होनी चाहिए। पर दोनों पक्षों के बारे में अच्छी तरह जानकारी करने के बाद। कोर्ट बहुत कुछ देखकर सोच समझकर यह सब फैसले लेता है। कितने सालों से इस पर बहस चल रही है मुझे 10 साल हो गए है वकालत करते हुए। बहुत सारी महिलाओं से मैंने बात की है। वह सभी ही कहती हैं कि कितनी बार हमारा मन भी नहीं होता है तब भी हमारे पति हम पर दबाव बनाते हैं। क्योंकि वह इसे अपना अधिकार समझते हैं। अगर वह अपने पेरेंट्स को भी इस बारे में कुछ बोलती हैं तो उनके मां-बाप भी यही कहते हैं कि कोई बात नहीं यह सब तो शादी में चलता रहता है। आदमी इसे अपना अधिकार समझने लग जाता है कि पत्नी के साथ में कैसा भी व्यवहार करें। यह सब उसका अधिकार है। देखिए दोनों को ही अपनी भावनाएं एक दूसरे के सामने रखनी चाहिए। पति को भी अपनी पत्नी की बात सुननी चाहिए उसके दर्द उसकी परेशानियों को समझना चाहिए।

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