संदेशखाली हिंसा : वर्चस्व की राजनीति और आरोप-प्रत्यारोप के बीच हिंसा की शिकार होती महिलाएं!

लगभग 15 दिनों से, उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में शाहजहां शेख और उसके दो सहयोगियों शिबू प्रसाद हाजरा और उत्तम सरदार सहितटी टीएमसी नेताओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
संदेशखाली घटना के विरोध प्रदर्शन में एक रैली.
संदेशखाली घटना के विरोध प्रदर्शन में एक रैली.तस्वीर साभार : पीटीआई (PTI)

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले के संदेशखाली काफ़ी दिनों से लगातार चर्चा में बना हुआ है। यहाँ बीजेपी और टीएमसी के बीच राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। यहां की कुछ महिलाओं ने तृणमूल कांग्रेस के नेता शेख शाहजहां और उसके समर्थकों पर यौन उत्पीड़न और कथित जमीन हड़पने का आरोप लगाया है। जिसके बाद पूरे देश भर में यह मामला चर्चा में है।

लगभग 15 दिनों से, उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में शाहजहां शेख और उसके दो सहयोगियों शिबू प्रसाद हाजरा और उत्तम सरदार सहितटी टीएमसी नेताओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

वहीं, यहाँ के कुछ हिस्सों में शुक्रवार (23 फ़रवरी) को सुबह एक बार फिर विरोध प्रदर्शन हुआ। गुस्साए स्थानीय लोगों ने इलाके में महिलाओं के यौन शोषण और जबरन जमीन हड़पने के आरोपी टीएमसी नेताओं की संपत्तियों में आग लगा दी। यहां लगातार विरोध प्रदर्शन और तनावपूर्ण माहौल के 15 दिन गुजर चुके हैं।

लाठियों से लैस होकर, प्रदर्शनकारियों ने संदेशखाली के बेलमाजुर इलाके में एक मछली पकड़ने के यार्ड के पास छप्पर वाली संरचनाओं में आग लगा दी, और टीएमसी नेता शाहजहाँ शेख और उनके भाई सिराज के खिलाफ अपना रोष प्रकट किया। यह पता चला कि जलाई गई संरचना सिराज की थी।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़ एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "पुलिस ने वर्षों तक कुछ नहीं किया। यही कारण है कि हम अपनी जमीन और सम्मान वापस पाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं।" बाद में पुलिस इलाके में दाखिल हुई और प्रदर्शनकारियों को समझाने की कोशिश की।

क्या है पूरा मामला ?

संदेशखाली 5 जनवरी को तब चर्चा में आया, जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली घोटाले के सिलसिले में तृणमूल काँग्रेस पार्टी (टीएमसी) के स्थानीय नेता शाहजहां शेख के घर पर छापा मारने पहुंची प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया।

इलाके में कथित रूप से टीएमसी नेता शाहजहां के लोगों ने न केवल ईडी अधिकारियों को उनके घर में प्रवेश करने से रोका, बल्कि केंद्रीय जांच एजेंसी के लोगों के साथ मारपीट भी की। ईडी के साथ हुए इस घटना के बाद, 7 फरवरी से क्षेत्र के ग्रामीण खासकर महिलाएं टीएमसी के कई नेताओं द्वारा कथित रूप से जबरन ज़मीन हड़प लेने और यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रशासन ने पूरे क्षेत्र में शांति बहाली के लिए अब तक शिबू प्रसाद हाजरा सहित 18 लोगों को गिरफ्तार किया है। वहीं, मुख्य आरोपी शेख शाहजहां एक महीने से ज्यादा वक्त से फरार है।

खबरों के मुताबिक़, टीएमसी नेता शाहजहां पर मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर उत्पीड़न तक के कई अपराधों का आरोप है। एक तरफ़ जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बढ़ते विवादों के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं भाजपा और कांग्रेस ने टीएमसी प्रमुख पर कथित रूप से यौन शोषण के आरोपियों का समर्थन करने का आरोप लगाया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, संदेशखाली विरोध प्रदर्शन के बारे में बोलते हुए, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कोई सरकार नहीं है और आरोप लगाया कि इलाके में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला किया जा रहा है।

तस्वीर साभार: The New Indian Express

क्या हैं महिलाओं के आरोप ?

प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उसके समर्थकों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि शाहजहां शेख के लोग रात में आकर जबरन उठाकर ले जाते थे और सुबह छोड़ दिया करते थे। उनसे रातभर काम कराया जाता था, सभी से कहा जाता था रात 12 बजे मीटिंग है जाना ही है। कोई भी पीड़ित महिला डर के चलते कैमरे के सामने नहीं बोलती थी। पुलिस से भी शिकायत की लेकिन कभी कोई मदद नहीं मिली।

द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक़, एक महिला ने बताया कि “संदेशखाली की महिलाओं का वर्षों से यौन और सामाजिक-आर्थिक शोषण किया जा रहा है, लेकिन हम किसी को भी बताने से डरते थे। तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लोग हमें देर रात 'पार्टी' मीटिंग के नाम पर पार्टी कार्यालय में बुलाते थे। वे हमें घंटों तक वहां रोके रखते थे। वे हमसे अपने लिए खाना बनाने और उनके साथ भोजन करने के लिए कहते थे - हमने उनसे विनती की कि हमें जाने दें क्योंकि हमारे परिवार घर पर हमारा इंतजार कर रहे है, लेकिन उन्होंने हमारी बात सुनने से इनकार कर दिया।”

वहीं महिलाओं का यह भी आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के लोग गांव में घर-घर जाकर सर्वे करते थे। किसी घर में कोई सुंदर महिला या लड़की दिखती है तो उसे पार्टी ऑफिस ले जाया जाता था, फिर उस महिला को कई रातों तक वहीं रखा जाता है। इसके बाद उनका यौन शोषण किया जाता था। आरोप लगाने वाली महिलाओं का कहना है कि इस इलाके में शेख शाहजहां का इतना खौफ था कि कोई आवाज नहीं उठाता था। महिलाओं ने इसमें शाहजहां शेख के करीबी माने जाने वाले टीएमसी नेता उत्तम सरदार और शिबू हाजरा के भी शामिल होने का आरोप लगाया है।

हालांकि शाहजहां शेख के करीबी शिबू हाजरा ने सफाई देते हुए कहा है कि महिलाओं के यौन उत्पीड़न के सभी आरोप झूठे हैं। उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है।

द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा के मुताबिक, सोमवार, 19 फरवरी तक क्षेत्र की अलग-अलग महिलाओं से कम से कम 18 शिकायतें मिली हैं।

अन्य बातों के अलावा, महिलाओं ने आरोपी टीएमसी नेताओं पर बलात्कार, जमीन हड़पने और बकाया भुगतान न करने का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि 18 में से दो शिकायतें बलात्कार से संबंधित हैं।

तस्वीर साभार: Indian Express

हिंसा के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

इस पूरे मामले को लेकर बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सुकांता मजूमदार ने 9 फरवरी को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा था। अपने पत्र में उन्होंने कहा था, "शेख शाहजहां, शिबू हाजरा, उत्तम सरदार और उनके साथियों द्वारा किए गए अत्याचारों ने भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है, जिससे संदेशखाली के निर्दोष निवासी सुरक्षा और सम्मान के अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हो गए हैं।"

इसके बाद 10 फरवरी को राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग करते हुए बीजेपी ने विधानसभा से राजभवन तक मार्च किया। इस मार्च में शुभेंदु अधिकारी सहित कई बीजेपी नेता शामिल हुए।

वहीं, पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेता और नंदीग्राम विधायक सुवेंदु अधिकारी ने 11 फरवरी को संदेशखाली की घटना पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एक्स पर अपने रैली का वीडियो देते हुए लिखा था, “शेख शाहजहां और उनके गिरोह ने ‘आतंक का शासन’ स्थापित किया, जहां एससी और एसटी समुदायों की महिलाओं की गरिमा और विनम्रता का बार-बार उल्लंघन किया गया।”

इस मामले पर कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने क्या संज्ञान लिया ?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, 13 फरवरी को कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अपूर्व सिन्हा रे ने इस घटना पर स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने ममता सरकार से मामले पर 20 फरवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद 14 फरवरी को हाईकोर्ट ने संदेशखाली में लागू की गई धारा 144 रद्द कर दी। अदालत ने एक वकील को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया और राज्य सरकार, पुलिस और जिला प्रशासन को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने 20 फरवरी को दोबारा सुनवाई करते हुए शाहजहां शेख को गिरफ्तार करने में विफलता पर पश्चिम बंगाल सरकार से सवाल किया। इस मामले में यौन उत्पीड़न और आदिवासी भूमि पर जबरन कब्ज़ा करने के आरोप शामिल हैं।

इससे पहले एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें एक महिला का दावा था कि गृहणियों को टीएमसी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के संदेशखाली हिंसा की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस घटना की मणिपुर से कोई तुलना नहीं की जा सकती है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने बयान में कहा है कि पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रमुख को एक शिकायत पर नोटिस भेजा गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि संदेशखली मुद्दे को कवर करने वाले एक पत्रकार को ‘गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया’। आयोग ने पाया है कि ये आरोप उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध का गंभीर मुद्दा उठाते हैं। आयोग ने पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक (डीआईजी) को एक नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर मामले में एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। आयोग ने अपने डीआइजी (इंवेस्टिगेशन) को टेलीफोन पर तथ्यों का पता लगाने और एक सप्ताह के भीतर आयोग को अपने निष्कर्ष सौंपने को भी कहा है। द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल के संदेशखाली दौरे के दौरान यहां की महिलाओं से 18 शिकायतें मिलीं, जिनमें दो बलात्कार की भी शामिल हैं।

संदेशखाली पर राजनीति कर रही है पार्टियाँ

संदेशखाली की घटना पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी ‘हिंदुओं के नरसंहार’ के लिए जानी जाती हैं और अब अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को महिलाओं के साथ यौन हिंसा करने की अनुमति दे रही हैं।

वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में संदेशखाली पर बोलते हुए कहा, “हमने पूरे मामले पर कार्रवाई की है। बीजेपी बाहर से लोगों को बुलाकर माहौल खराब कर रही है। भाजपा के लोग नकाब पहनकर इस मामले पर बयानबाजी कर रहे हैं। संदेशखाली आरएसएस का बंकर बन चुका है। यहां पहले भी दंगे हो चुके हैं, मैंने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया और न ही होने दूंगी।”

महिलाओं के विरोध प्रदर्शन के बाद बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस संदेशखाली में स्थिति की समीक्षा करने के लिए दौरे पर थे। बोस ने इस घटना को भयानक और चौंकाने वाला बताया। वहीं ममता बनर्जी ने कहा कि संदेशखाली हिंसा मामले में अबतक 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और संदेशखाली में हर घर का दौरा करने और महिलाओं की शिकायतों को सुनने के लिए एक महिला पुलिस टीम भी मौजूद है।

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास

फ़ेमिनिज़्म इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनसीआरबी ने 1999 से 2016 तक पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं दर्ज की हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं की कम से कम 47 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, जिनमें से 38 दक्षिण बंगाल में हुईं।

वहीं एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक़, महिलाओं के गुमशुदा (मिसिंग) होने के मामले में पश्चिम बंगाल दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। 2018 में जहां महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 33,964 महिलाओं के मिसिंग होने की रिपोर्ट दर्ज हुई, वहीं उससे कम जनसंख्या वाले राज्य पश्चिम बंगाल में 31,299 ऐसे मामले दर्ज हुए। इनमें कोलकाता, नादिया, बारासात, बराकपुर, मुर्शिदाबाद में सबसे ज्यादा मामले आए।

जनसंख्या जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार संदेशखाली में अनुसूचित जाति (एससी) 30.9 फीसद है जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) कुल जनसंख्या का 25.9 फीसद है। यहां 69.19 फीसद हिन्दू और 30.42 फीसद मुस्लिम हैं। ORF (Observer Research Foundation) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या लगभग 10 करोड़ है , यहां राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास है, जो कई दशकों से चला आ रहा है और जिस ने राज्य की राजनीति पर जटिल और गहरा प्रभाव डाला है।

पिछले पंचायत चुनाव में राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इस मामले पर तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम पर राज्य की सत्ताधारी पार्टी को बदनाम करने का आरोप लगाया था।

भारत की आज़ादी के बाद से पश्चिम बंगाल में अलग-अलग राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारें बनाई हैं, जिस में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) दो दशकों से भी ज़्यादा समय तक सत्ता में रही है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के नेतृत्व में वाम धड़े ने लगभग तीन दशकों तक अपनी सरकार बनाई और वहीं मौजूदा दौर में ऑल इंडिया तृणुमूल कांग्रेस (टीएमसी) सत्ता पर काबिज़ है। अलग अलग दलों के शासन कालों में, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पों की संस्कृति, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, केवल पिछले कुछ सालों में फली-फूली है। इस के चलते पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की घटनाओं ने इसे भारत में सार्वजनिक नीति के लिहाज़ से सबसे अधिक चर्चित मुद्दा बना दिया है। वर्चस्व की लड़ाई और राजनीति के इस उठापटक में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा बेहद निंदनीय है।

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