देवदासी प्रथा को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सख्त, दक्षिण भारत के इन राज्यों से मांगा जवाब

सामाजिक कलंक की तरह एक ऐसी प्रथा जिसके तहत महिलाओं की अस्मिता को कुचलने का काम आज के दौर में भी जारी है, इसपर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दक्षिण भारत के कई राज्यों से जवाब मांगा है।
देवदासी प्रथा को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सख्त, दक्षिण भारत के इन राज्यों से मांगा जवाब

दिल्ली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भारत के दक्षिणी राज्यों से लगातार देवदासी प्रथा से जुड़े मामलों के सामने आने को लेकर सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने कई बिन्दुओं पर दक्षिण भारत की राज्य सरकारों से मामले पर जवाबदेही मांगी है। देवदासी प्रथा के जरिये लगातार युवतियों का शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा था। इस प्रथा के जरिये युवतियों की बचपन में ही देवता से शादी कर दी जाती थी। इसके बाद वह युवती अपना पूर्ण जीवन मन्दिर में व्यतीत करती थी। इस दौरान युवती के साथ मन्दिर के पुजारी शारीरिक सम्बन्ध बनाते थे। वहीं जब युवती गर्भवती हो जाती थी तो उसे छोड़ दिया जाता था। मानवाधिकार के इस कदम से इस प्रथा पर रोक लगाने और कानून को एक बार फिर सख्ती से लागू किये जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।

देवदासी प्रथा पर जानकारों की राय

उत्तर प्रदेश के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं प्रसिद्ध लेखक चौथी राम यादव द मूकनायक को बताते हैं, "भारत में विभिन्न प्रकार की कुप्रथाएं थी। जिनमें सती प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों से स्तन कर, देवदासी प्रथा आदि प्रचलित थी। इनमें हिन्दू विवाह में एक अन्य प्रथा थी जिसमें पिछड़ी और अनुसूचित समाज में होने वाले विवाहों में दुल्हन जब घर आती थी तो उसे घर में प्रवेश से पहले मन्दिर में एक दिन शुद्धिकरण के नाम पर रोका जाता था। शुद्धिकरण के नाम पर नई विवाहित महिला के साथ उस रात शारीरिक शोषण (बलात्कार) किया जाता था। इस प्रथा का अंश अब भी देखने को मिलता है। नए विवाहित जोड़े को घर में प्रवेश से पहले मन्दिर जाकर माथा टिकवाते हैं। बात यदि देवदासी प्रथा की है तो दक्षिणी राज्यों में देवदासी का प्रचलन सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। इसके लिए विभिन्न सरकारों ने कानून भी पारित किए। लेकिन मनुवाद और दकियानूसी विचारों के कारण इस पर रोक लगा पाना मुश्किल रहा है। इसे खत्म करने के लिए समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। नियमों को सख्ती से लागू किये जाने की भी आवश्यकता है। इसके लिए स्त्री पुरुष सभी को आगे आने की जरूरत है।"

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अब जनिये आयोग ने क्या कहा?

आयोग 6 राज्यों यानी कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र से 6 हफ्ते के भीतर देवदासियों की संख्या, उनकी मौजूदा स्थिति, राज्य की तरफ से उनके लिए उठाए गए कदम जैसे तमाम पहलुओं पर सख्ती से जवाब मांगा है। दरअसल, देवदासी प्रथा कानूनी तौर पर सख्ती से प्रतिबंधित हो चुकी है। इसके बाद भी दक्षिण भारत के राज्यों में कानून की अनदेखी कर धर्म के नाम पर दलित महिलाओं का यौन, सामाजिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है। देवदासी बनाने के लिए लड़की की किसी भी मंदिर के देवता से शादी करवा दी जाती है और बाकी की जिंदगी वह मंदिर के पुरोहित के नाम पर काटती है। देवदासियों का पुरुषों द्वारा यौन शोषण हो रहा है, उन्हें प्रेग्नेंट किया जा रहा है और बाद में उन्हें छोड़ा दिया जा रहा है।

जनिये क्या है प्रथा?

देवदासियों का गढ़ बेंगलुरु से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर स्थित उत्तरी कर्नाटक का जिला कोप्पल माना जाता है। पूर्णिमा की रात और चांद की रोशनी से नहाया हुलगेम्मा देवी का मंदिर भक्तों से खचाखच भरा रहता है। हुदो, हुदो…श्लोक चारों ओर हवा में तैर रहे होते हैं। इस श्लोक का उच्चारण करने वाली हर तीसरी महिला के गले में सफेद और लाल मोतियों की माला यानी मणिमाला और हाथों में हरे रंग की चूड़ियां और चांदी के पतले कंगन पहनाए जाते हैं। उनके हाथ में बांस की एक टोकरी होती है। जिसे स्थानीय लोग पडलगी कहते हैं। इसमें हल्दी-कुमकुम, अनाज, सब्जी, धूप, अगरबत्ती, सुपारी, पान पत्ता, केला और दक्षिणा रखी है। वे देवी मां को पडलगी में रखे सामान अर्पित करती हैं। मंदिर में मौजूद बाकी लोगों से इनकी पहचान अलग होती है। देवदासियों के लिए मणिमाला ही मंगलसूत्र होता है। इन्हें पूर्णिमा की रात का खास इंतजार होता है। अपनी देवी को खुश करने के लिए वे इस मंदिर में आती हैं। इसके बाद देवताओं के नाम पर उनका विवाह करा दिया जाता है। जिसके बाद उनको पूरा जीवन मन्दिर में ही गुजारना पड़ता है। पुरोहित इन देवदासियों का यौन शोषण करते हैं। इन देवदासियों से पैदा होने वाले बच्चों को उनके पिता का नाम नहीं दिया जाता है।

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सरकार की रोक के बाद भी तेजी से बढ़ी संख्या लगभग 70 हजार

  • कर्नाटक सरकार ने 1982 में और आंध्र प्रदेश सरकार ने 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया।

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2013 में बताया था कि अभी भी देश में 4,50,000 देवदासियां हैं।

  • जस्टिस रघुनाथ राव की अध्यक्षता में बने एक कमीशन के आंकड़े के मुताबिक सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 80,000 देवदासिया हैं।

  • कर्नाटक में सरकारी सर्वे के मुताबिक राज्य में कुल 46,000 देवदासियां हैं। सरकार ने केवल 45 साल से ऊपर की देवदासियों की ही गिनती की है।

  • कर्नाटक राज्य देवदासी महिडेयारा विमोचना संघ के मुताबिक इनकी गिनती 70,000 है।

  • सरकार से 1500 रुपए मिलते हैं और राशन में सिर्फ चावल। खाने का बाकी सामान खुद अपने पैसे से इन्हें लाना होता है।

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