घर चलाने में असमर्थ हुए पति तो महिलाओं ने पेट पालने का उठाया बीड़ा, घरों में बर्तन मांज कर बच्चों की परवरिश कर रहीं महिलाओं की कहानी

कहानी उन महिलाओं की चुनौतियों की जो शराबी व परिवार चलाने में असमर्थ पतियों के चलते परिवार का पेट भरने के लिए ससुराल में घर से बाहर निकलकर लोगों के घरों में बर्तन साफ करने, खाना बनाने के लिए मजबूर हैं. इन महिलाओं को उन सभी सामाजिक बुराइयों का रोजाना सामना करना पड़ता है जो आम महिलाओं के लिए अकल्पनीय है.
अनीता (45) उर्फ छम्मक एक घर में बर्तन साफ करती हुई
अनीता (45) उर्फ छम्मक एक घर में बर्तन साफ करती हुईफोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

कम उम्र में ही गीता देवी की शादी हो गई थी। उसे नहीं पता था कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी वैसे-वैसे उसकी चुनौतियां भी बढ़ती जाएंगी। जब शादी हुई तब उसे “शादी” का मतलब भी शायद नहीं पता था। आज गीता (26) सिंगल पैरेंट के रूप में अपनी 4 बेटियों का पेट भरने, उन्हें पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी संभाल रही है। ट्रक की चपेट में आने से 10 साल पहले पाँचवी बेटी की दर्दनाक मौत हो चुकी है। लगभग तीन साल होने को हैं, शराब की लत के चलते उसके पति की भी मौत हो चुकी है। सास-ससुर पहले ही चल बसे। घर में अकेली महिला अपने चार बच्चों — अनीता (18), नीशा (15), बेबी (10), आंशिका (6) के पेट भरने की चुनौती से हर दिन अकेली जूझती है।

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के रुधौली कस्बा निवासी गीता लगभग 18 सालों से अपने कस्बे के स्थानीय घरों में जाकर बर्तन साफ करके अपना और बच्चों की जीविका चला रही है। वर्तमान में वह कुल 3 घरों में प्रतिदिन सुबह-शाम बर्तन माँजने (बर्तन साफ करने) का काम कर रही है। उसे 1 घर से मात्र 1000 रुपये मिलते हैं। मतलब प्रतिदिन एक घर से 40 रुपये से भी कम पारिश्रमिक मिलते हैं। कई बार घरों (जहां गीता काम करती है) से उसे पैसे की जगह राशन भी मिल जाते हैं।

एनजीओ ऑक्सफैम की इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022 इस बात की ओर इशारा करती है कि भारत जैसे देश में महिला-पुरुष  के पारिश्रमिक (वेतन) में कितना अंतर हैं। लेकिन गीता के मामले में गीता की आय इन आंकड़ों को भी पीछे छोड़ देती है। उक्त अध्ययन में सामने आया कि देश भर में महिलाओं को भर्ती और भुगतान दोनों में पक्षपात का सामना करना पड़ता है।

गीता द मूकनायक को बताती है कि घर में खाने के लिए कुछ नहीं होता था। पति शराब का आदी था, जो पैसा कमाता उसे शराब पीने में खर्च कर देता था। बूढ़ी सास कहती थी कि घरों में जाओ और बर्तन साफ करो क्योंकि दो जून खाने के इंतजाम करने के लिए आय का कोई भी साधन नहीं था। “मेरी बड़ी बेटी 1 साल की भी नहीं हुई थी तभी से मुझे बर्तन मांजने जाना पड़ता है,” गीता ने बताया कि, “सास भी पहले घरों में बर्तन मांजने जाती थी। जब बूढ़ी हो गई तो मुझे मजबूरी में यह काम करने बाहर निकलना पड़ा, क्योंकि काम नहीं करती तो बच्चे खाते क्या?”

गीता सिंगल पैरेंट के रूप में लोगों के घरों में बर्तन मांज कर अपनी 4 बेटियों का पेट भरती है।
गीता सिंगल पैरेंट के रूप में लोगों के घरों में बर्तन मांज कर अपनी 4 बेटियों का पेट भरती है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

गीता के पति झिन्नू को शराब पीने की लत थी। वह एक मिठाई की दुकान पर काम करता था और जो भी पैसे मिलते उसका शराब पी जाता। घर कैसे चले उसकी उसे कोई चिंता नहीं रही कभी. देश में कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में झिन्नू का काम बंद हो गया और शराब पीने के लिए जेब में पैसे नहीं बचे। “वह (पति) बहुत शराब पीते थे, लॉकडाउन में काम बंद होने के कारण पैसा नहीं मिला तो शराब छूट गया. शराब बंद होते ही उनकी सांस फूलने लगी. और हम उन्हें नहीं बचा पाए.”

गीता के पति झिन्नू जिसकी 3 साल पहले मौत हो गई।
गीता के पति झिन्नू जिसकी 3 साल पहले मौत हो गई। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

पति की मौत के बाद लगभग तीसरा साल चल रहा है. विधवा पेंशन को लेकर द मूकनायक के सवाल पर गीता ने बताया कि “उनके चले जाने के कुछ ही महीने बाद मैंने विधवा पेंशन के लिए ऑनलाइन आवेदन कराया था लेकिन उसका एक भी रूपया आज तक बैंक खाते में नहीं आया.” गीता अपने साथ रोजाना कितनी चुनौतियों का भार लेकर चलती है यह लगातार बता पाना उसके लिए असंभव हो रहा था, पति के बारे में बात करने के बाद उसके चहरे पर भावुकता ठहर गई. मानो लग रहा था कि उसकी मुश्किलों को कभी कोई सुलझा ही नहीं सकता।  

गीता को अपनी बड़ी बेटी अनीता (18) की शादी को लेकर चिंतित है. वह जितना कमाती है उससे ज्यादा उसके ऊपर जिम्मेदारियों और चुनौतियों का बोझ है. शादी कैसे होगी इस बात की चिंता उसे खाए जाती है। “बर्तन मांज कर बस बच्चों को जिला रही हूँ,” गीता ने कहा, “अनीता को कक्षा 8 तक ही पढ़ा पाई। कोरोना लॉकडाउन में स्कूल बंद हुए उसके बाद कभी इतना पैसा नहीं जुटा कि दोबारा उसे स्कूल भेज पाऊँ।” 

गीता की बड़ी बेटी अनीता पैसे न होने के कारण स्कूल छोड़ चुकी है। गीता को अब इसके शादी की चिंता है।
गीता की बड़ी बेटी अनीता पैसे न होने के कारण स्कूल छोड़ चुकी है। गीता को अब इसके शादी की चिंता है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

हालांकि, गीता की अन्य दो बेटियां — निशा और बेबी स्कूल जाती हैं। महंगे स्कूल फीस का जिक्र करते हुए गीता पहली प्राथमिकता चारों बेटियों का पेट भरने पर देती हैं। गीता का राशन कार्ड बना है, लेकिन परिवार में 5 जनों के बावजूद उसे केवल दो यूनिट का 10 किलो राशन ही मिलता है। पूछे जाने पर गीता ने बताया कि बच्चों का आधार कार्ड नहीं बन पाया था, इसलिए राशन कार्ड में अन्य बच्चों का नाम नहीं जुटा।

“सुबह का समय था। बेटी चौरहे पर सुबह का नाश्ता खरीदने गई थी। घर लौटते समय ट्रक के नीचे आ गई,” लगभग 8 साल पहले ट्रक की चपेट में आई बेटी मनीषा की दर्दनाक मौत के बारे में भी गीता ने बताया। 

गीता की एक बेटी की 8 साल पहले ट्रक से दब कर दर्दनाक मौत हो चुकी है।
गीता की एक बेटी की 8 साल पहले ट्रक से दब कर दर्दनाक मौत हो चुकी है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

गीता के पास रहने के लिए उसके घर के अलावा कोई भी खेती की जमीन नहीं है। पाँच साल पहले घर बनने के साथ बिजली का कनेक्शन लिया था। लेकिन गीता के पास इतने पैसे कभी इकट्ठा नहीं हुए कि वह कभी अपने बिजली के बिल का भुगतान कर पाए। गीता ने बताया कि उसका बिजली बिल का बकाया लगभग 30,000 रुपये है। जो दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इतने दिनों से बिल न जमा करने के द मूकनायक के सवाल पर गीता ने बताया “जब मेरे पास पैसे ही नहीं हैं तो बिल कहां से जमा करूं? जिनके घरों में 2-4 पुरुष कमाने वाले हैं वह भी अपना बिजली बिल समय से जमा नहीं कर पाते हैं, यहां तो मैं अकेली काम करने वाली हूँ। 4 बच्चों को संभालना आसान नहीं इतने पैसों में। जितना पाती हूँ (कमाई) उससे ज्यादा खर्च है। बच्चों के स्कूल की फीस-ड्रेस, दवाई सब कुछ नहीं हो पाता है।”

गीता की तरह अनीता (45) उर्फ छम्मक की भी कहानी है। अनीता के माता-पिता कब गुजरे यह अनीता को नहीं मालूम है, तब वह 4-6 साल की रही होगी। अनीता को उनके चाचा के परिवार ने सहारा दिया, यहां तक कि अनीता की शादी भी उन्हीं लोगों ने ही कराई थी। अनीता की शादी को अब 25 साल हो गए हैं। गीता की तरह अनीता को भी रुधौली कस्बे में घरों में जाकर बर्तन माँजते हुए 20 साल हो चुके हैं। 

“शादी के दो साल बाद ही लोगों के घरों में जाकर बर्तन मांजने का काम करने लगी, क्योंकि मेरे पास और कोई काम ही नहीं था, न ही कोई दूसरा रास्ता” अनीता ने बताया।

अनीता की शादी दिलीप (48) उर्फ भल्लू से हुई है। लेकिन पति दिलीप की मानसिक हालत ठीक नहीं है। “सड़क पर कभी झाड़ू लगाते हैं, कभी किसी होटल पर जाकर काम करने लगते हैं तो कोई उन्हें चाय पिला देता है या 2-4 रुपए दे देता है,” अनीता ने द मूकनायक को बताया “वह (पति) शुरू से ही इसी हालत में थे, लेकिन पहले शादियां एक-दूसरे को देखकर करने का रिवाज कम था इसलिए उसके बारे में शादी के समय पता नहीं था। लेकिन जब मैं घर आई तब देखा की वह मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं।”

लोगों के घरों में बर्तन साफ करने के साथ अनीता (45) उर्फ छम्मक रोजाना सामाजिक चुनौतियों का डटकर सामना करती है।
लोगों के घरों में बर्तन साफ करने के साथ अनीता (45) उर्फ छम्मक रोजाना सामाजिक चुनौतियों का डटकर सामना करती है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

अनीता के दो बेटे हैं — आलोक (15), अभय (12)। दोनों बच्चों को वह स्कूल भेजती हैं। लेकिन अपने बच्चों के भविष्य के लिए आगे की पढ़ाई को लेकर अनीता चिंतित हैं। क्योंकि उसकी कमाई उतनी नहीं है जिससे वह आगे की पढ़ाई के लिए अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में भेज सके।

अनीता की शादी के बाद उसके सास-ससुर दोनों की मौत हो गई, पति मानसिक रूप से असक्षम था। उसके दो बच्चे भी थे। इस स्थिति में अनीता ने ससुराल में लोक-लाज छोड़ घर चलाने के लिए लोगों के घरों में काम करने का रास्ता चुना। अनीता कस्बे के 5 घरों में सुबह-शाम बर्तन मांजने का काम करती है। काम एक ही हैं, इसके बावजूद उसे कहीं 500, कहीं 600 तो कहीं 800 प्रति माह मिलता है। जिससे वह अपने दो बच्चों और अपने पति का पेट पालती है।

एक महिला होने के नाते समाज में जिन बुराईयों से लगभग महिलाओं का सामना होता है, उन बुराईयों से अनीता भी अछूती नहीं रही। अनीता बताती है कि “मैंने ऐसी कई चीजें झेलीं जिसे किसी के सामने कह नहीं सकती। शुरू में जब यह काम शुरू किया तो पड़ोस, समाज के लोग मुझे ताने मारते, चरित्रहीन बताते,” वह बताती है कि “लोग कुछ भी कहें मुझे फर्क नहीं पड़ता, अब इन सब चीजों के साथ जीने की आदत हो गई है।”

एक बार की घटना को याद करते हुए वह बताती हैं कि, “काम करके घर जा रही थी, तो रास्ते में कुछ लोगों ने आवाज दिया तो रुक गई। मुझे लगा कि कोई काम के लिए बात करने के लिए बुला रहा है। लेकिन बुलाने वाले लोगों ने मुझे कार में जबरन खींच कर बैठाने का प्रयास किया। लेकिन चौराहा होने के कारण मैं किसी तरह बच पाई।”

घरेलू कामगारों में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की महिला कार्यबल का 30 प्रतिशत हिस्सा हैं। हालांकि, भारत की 40 लाख महिला घरेलू कामगारों के लिए, जिन्हें यौन उत्पीड़न का सबसे अधिक शिकार माना जाता है, इससे अनीता के साथ हुई घटना को नाकारा नहीं जा सकता। वैसे भारत में अधिकांश राज्य सरकारों ने घरेलू काम को अनुसूचित रोजगार की सूची में जोड़ दिया है, लेकिन इसका कार्यान्वयन एक मुद्दा बना हुआ है। 

2020 में, भारतीय संसद ने पुराने श्रम कानूनों में संशोधन और समेकित किया और कुछ अनौपचारिक व्यवस्थाओं में मजदूरों को बीमा, एक सेवानिवृत्ति निधि और मातृत्व सहायता जैसे लाभों का विस्तार करने के उद्देश्य से सामाजिक सुरक्षा पर संहिता पारित की। लेकिन इसने घरेलू कामगारों की मदद नहीं की है क्योंकि व्यक्तिगत परिवारों को कार्यस्थल के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

मिथलेश (45) की कहानी गीता और अनीता से थोड़ा अलग है. मिथलेश लोगों के घरों में खाना बनाने जाती है। पति की शराब की लत के चलते मिथलेश को भी शादी के कुछ ही सालों बाद ससुराल में घर से बाहर निकलकर बच्चों का पेट भरने के लिए घरों में जाकर खाना बनाने का काम करना पड़ा. वह लगभग 15 सालों से यह काम कर रही है. वह दो घरों में सुबह शाम खाना बनाने जाती है. जिसके बदले उसे एक जगह से लगभग 3000 रुपए प्रति माह मिल जाते हैं.

मिथलेश (45), सालों से लोगों के घरों में जाकर खाना बनाती है।
मिथलेश (45), सालों से लोगों के घरों में जाकर खाना बनाती है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

पति शिव शंकर (48) लगभग 30 सालों से रोड के किनारे फल के ठेला लगाने का काम करता है. लेकिन बीते दो महीने से वह घर पर ही बैठे हैं. क्योंकि ठेला घर लाते समय गिरने से उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई, जिसका ऑपरेशन करवाना पड़ा. पति अपनी कमाई का लगभग पूरा पैसा शराब और अन्य व्यसन पर खर्च कर देता है. मिथलेश द मूकनायक को बताती है कि, “जब इनको (पति) चोट लगी तब मेरे पास पैसे नहीं थे. जहां काम करती हूं वहां से मुझे 42,000 रुपए कर्ज मिले दवा और ऑपरेशन कराने के लिए. अब उनके यहां काम करके पैसे चुका रही हूं.”

मिथलेश के परिवार में पति और उनके बच्चों सहित कुल 6 लोग हैं— सूरज (14), रोली (25), शैली (15), नैंसी (10). लेकिन सभी के रहने खाने, पढ़ाई-दवाई का सारा जिम्मा मिथलेश पर ही है. मिथलेश के पास भी उसके घर के अलावा खेती की कोई जमीन नहीं है. कई घरों में काम करके मिले पैसों से और सरकारी राशन की दुकान से हर महीने मिलने वाले 25 किलो राशन से उसका परिवार पेट भरता है.

मिथलेश के पति शिव शंकर ने शराब पीने की आदत से जिंदगी बर्बाद कर ली। जिससे मिथलेश को दूसरों के घरों में जाकर काम करना पड़ता है।
मिथलेश के पति शिव शंकर ने शराब पीने की आदत से जिंदगी बर्बाद कर ली। जिससे मिथलेश को दूसरों के घरों में जाकर काम करना पड़ता है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

मिथलेश के घर पर द मूकनायक की मुलाकात उसके पति से भी हुई. उन्होंने बताया कि 5-6 महीनों से बिजली का बिल बकाया है. पैसे नहीं होने के कारण बिल का भुगतान नहीं हो पाया है. द मूकनायक के सामने शिवशंकर ने शराब की लत को छोड़ने के सवाल पर स्वीकार किया कि “यह मेरी गलती है कि मैं पीता हूँ. कितना भी कोशिश करूं लेकिन मन नहीं मानता। आज मेरा परिवार बाहर जाकर दूसरे घरों में काम करता है, यह मुझे अच्छा नहीं लगता। अब शराब पीना छोड़ दूंगा।”

मिथलेश ने अपने बल-बूते पर अपनी बड़ी बेटी रोली की शादी भी कर चुकी हैं. मिथलेश का हौसला देखने ही लायक था. इतनी जिम्मेदारियों के बावजूद बच्चों को पढ़ाने, परिवार चलाने के लिए हर मुश्किल से गुजरने को तैयार चहरे पर मायूसी की तनिक भी सिकन तक नहीं थी.

भारत में घरेलू कामगार महिलाएं

गीता, अनीता और मिथलेश जैसी अनगिनत महिलाएं हर रोज पूरे देशभर में घरेलू कार्य और अपने दैनिक जीवन में इसकी चुनौतियों से जूझ रही हैं. घरेलू कार्य में झाडू लगाना, बर्तन साफ करना, कपड़े धोना, खाना बनाना, बच्चों की देखभाल करना शामिल हैं। देश में अक्सर घरेलू काम अशिक्षित महिलाओं या बहुत कम शिक्षा प्राप्त महिलाओं के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

आंकड़े बताते हैं कि, 27% पुरुषों की तुलना में 2019 में 90% से अधिक भारतीय महिलाओं ने घर पर अवैतनिक घरेलू काम में भाग लिया। दूसरी ओर, 71% पुरुषों की तुलना में केवल 22% महिलाओं ने रोजगार और संबंधित गतिविधियों में भाग लिया।

अनीता (45) उर्फ छम्मक एक घर में बर्तन साफ करती हुई
घर, परिवार और खेती संभालती महिला किसान के संघर्षों की कहानी

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