
ईरानी शहरों में रहस्यमयी जहर देने से बीमार होने वाली छात्राओं का आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा है. खबरों के मुताबिक 900 लड़कियों को यह जहर दिया जा चुका है. हालांकि बड़ी बात यह है कि अभी तक सरकारी जांच में छात्राओं को जहर देने को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक इन्हें गैस के माध्यम से धीमा जहर दिया जा रहा है.
ईरान में स्कूली छात्राओं को जहर देने का मामला दिनों दिन उलझता जा रहा है. ईरानी स्कूली छात्राओं को जहर देने के संदेह पर संकट गत रविवार को बढ़ गया क्योंकि अधिकारियों ने स्वीकार किया कि 50 से अधिक स्कूल को निशाना बनाया गया है.
एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, विषाक्तता ने माता-पिता के बीच भय फैला दिया है क्योंकि ईरान ने महीनों की अशांति का सामना किया है.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर के बाद से ईरान में लगभग 700 लड़कियों को जहरीली गैस से जहर दिया गया है, कई लोगों का मानना है कि यह उनके स्कूलों को बंद करने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास है. किसी भी लड़की की मृत्यु नहीं हुई है, लेकिन दर्जनों को सांस की समस्या, मतली, चक्कर आना और थकान का सामना करना पड़ा है.
यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी घटनाओं के पीछे कौन और क्या जिम्मेदार है. रिपोर्ट्स अब सुझाव देती हैं कि ईरान के 30 प्रांतों में से 21 के स्कूलों में संदिग्ध मामले देखे गए हैं. इस पूरी घटना में यह भी साफ नहीं है कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है. ज़हर देने की घटनाओं की शुरुआत पवित्र शहर कोम में नवंबर में हुई थी.
शहरयार हैदरी ने एक अनाम विश्वसनीय स्रोत के चलते यह दावा किया. ईरान के सरकारी मीडिया के अनुसार, जहर देने का पहला मामला 30 नवंबर को कोम शहर से सामने आया था, जब एक हाई स्कूल की 18 छात्राओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
छात्रों को भी दिया गया जहर ?
सरकारी मीडिया ने हाल के महीनों में बोरुजेर्ड शहर और चारमहल और बख्तियारी प्रांत में छात्रों को जहर दिए जाने की सूचना दी है. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, कई रिपोर्ट में लड़कियों के स्कूलों के छात्र शामिल हैं, लेकिन सरकारी मीडिया ने 4 फरवरी को लड़कों के स्कूल में जहर देने की कम से कम एक घटना की सूचना दी है. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या घटनाएं जुड़ी हुई हैं और क्या छात्रों को निशाना बनाया गया था.
लड़कियों के स्कूलों को बंद करने की कोशिश
अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के प्रभारी ईरान के उप स्वास्थ्य मंत्री यूनुस पनाही ने गत दिनों कहा कि जहर प्रकृति में 'रासायनिक' था. लेकिन आईआरएनए के अनुसार, युद्ध में इस्तेमाल होने वाले यौगिक रसायन नहीं थे और लक्षण संक्रामक नहीं थे. पनाही ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि जहर दिए जाने का मामला लड़कियों के स्कूलों को लक्षित करने और बंद करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है.
राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कैबिनेट से कहा कि ज़हर देने के मामले पर तह तक जाने और उसे सामने लाने की जरूरत है. उन्होंने खुफिया मामलों के मंत्री इस्माइल खतीब की ओर से एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद यह टिपप्णी की. उन्होंने विद्यार्थियों और अभिभावकों में दहशत फैलाने के लिए इन कथित हमलों को इंसानियत के खिलाफ जुर्म बताया.
हमलों के पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों का हाथ
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कई ईरानियों को डर है कि हमलों के पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों का हाथ है, क्योंकि उनका उद्देश्य लड़कियों को आतंकित करना और उनके परिवारों को उन्हें स्कूल भेजने से रोकना है. इस तरह के तरीकों का इस्तेमाल 2010 में अफगानिस्तान में तालिबान और हाल ही में नाइजीरिया में इस्लामिक आतंकवादी समूह बोको हरम की ओर से किया गया था, जिसने 2014 में 276 स्कूली लड़कियों का अपहरण कर लिया था.
40 साल से नहीं दी गई लड़कियों की शिक्षा को चुनौती
ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद 40 साल से ज्यादा वक्त से कभी भी लड़कियों की शिक्षा को चुनौती नहीं दी गई है. ईरान ने पड़ोसी अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत से महिलाओं को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने की इजाज़त देने की मांग की है.
पिछले सितंबर में महसा अमिनी की मौत ने देश भर के दर्जनों ईरानी शहरों और कस्बों में महिलाओं और पुरुषों दोनों द्वारा बार-बार बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जो अपने नागरिकों और विशेष रूप से महिलाओं पर असंख्य प्रतिबंध लगाने वाले दमनकारी लिपिक शासन पर अपना गुस्सा निकालते हैं.
सोशल मीडिया ने हजारों महिलाओं और स्कूली छात्राओं के हिजाब को फाड़ते हुए और ईरानी लोकतंत्र के संस्थापक अयातुल्ला खुमैनी, सर्वोच्च नेता अली खामेनेई, राष्ट्रपति रायसी और अन्य वरिष्ठ मौलवियों के खिलाफ नारे लगाते हुए दिखाया.
आंदोलन के तहत: "नारी, जीवन, स्वतंत्रता," लड़कियों ने अपने स्कूलों में कई विरोध प्रदर्शन किए और अपने अनिवार्य हेडस्कार्व्स को हटा दिया. बाद में, "डेथ टू द डिक्टेटर" का नारा लगाते हुए, दसियों हज़ार लोग इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो गए. ये बड़े पैमाने पर विरोध निस्संदेह वर्षों में तेहरान लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी विपक्षी चुनौती है.
हार्ड-लाइन ईरानी समाचार एजेंसी फ़ार्स ने बताया कि स्कूली छात्रा को जहर देना देश के बाहर स्थित विपक्ष द्वारा "मूक बहुमत" को उकसाने की साजिश थी, जो सड़क पर विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लेते थे, लेकिन क्रांति के लिए बुलाए जाने वाले प्रदर्शनों की एक नई लहर में शामिल हो सकते थे.
हालाँकि, कई निर्वासित ईरानी इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि इतने शहरों और इतने प्रांतों में दर्जनों स्कूलों पर हमला किया गया था. यह इस्लामिक चरमपंथियों के एक छोटे संगठन की करतूत नहीं हो सकती थी, बल्कि ईरानी राज्य की एक शाखा की थी, जो सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लिए स्कूली छात्राओं का "बदला लेने" के लिए "झूठा झंडा" अभियान चला रहा है.
कोई यह नहीं कह सकता कि इन हमलों के असली दोषियों का अंत में खुलासा होगा या नहीं, लेकिन तथ्य यह है कि ईरानी अधिकारियों द्वारा दिए गए अलग-अलग स्पष्टीकरण भ्रम पैदा करते हैं, अपने देश की सरकार के प्रति सामान्य ईरानियों के उचित संदेह और विश्वास की कमी को तेज करते हैं.
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