दिल्ली: निर्भया कांड को 11 साल, क्या महिलाओं के प्रति बदले हैं हालात?

कानून बनने के बाद भी रेप की घटनाओं में नहीं आई कमी, एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में हुए सबसे ज्यादा रेप।
दिल्ली: निर्भया कांड को 11 साल, क्या महिलाओं के प्रति बदले हैं हालात?
Pic- ABP news

नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2012 की रात को दिल्‍ली की सड़कों पर दौड़ती एक प्राइवेट बस में ऐसा जघन्‍य सामूहिक रेप कांड हुआ था। यह वो काला द‍िन था जिसने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। यही वो घटना थी, जिसके बाद से देश की राजधानी दिल्‍ली को रेप कैपिटल कहा जाने लगा, लोगों को बलात्कार की दरिंदगी और क्रूरता का अहसास हुआ और रेप की अन्‍य गुमनाम पीड़‍िताओं का दर्द भी समझ आया था। यही वो समय था जब दिसंबर की कड़कडाती ठंड में देशभर की लड़कियां पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया को इंसाफ दिलाने और देश की सरकार से सुरक्षा की गुहार लगाते हुए दिल्‍ली की सड़कों पर उतर आईं थीं।

निर्भया कांड के नाबालिग गुनहगार के बारे में कहा जाता था कि सबसे ज्यादा दरिंदगी उसी ने की। मौत की सजा पाने वाले बाकी चार दोषियों पवन, विनय, मुकेश, अक्षय का कहना था कि उसने सभी को उकसाया था। जुवेनाइल कोर्ट से उस दोषी को महज तीन साल की सजा हुई थी। इसे पूरा करने के बाद छह साल पहले ही वह रिहा हो गया था।

हालांकि, कानून के मुताबिक इस गुनाहगार का नाम, चेहरा या पता जगजाहिर नहीं किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के एक गांव का रहने वाले उस नाबालिग दोषी के घर की खराब आर्थिक हालत पिछले कुछ सालों से कुछ सुधरी है। मानसिक रूप से बीमार उसके पिता के अलावा घर में उसकी मां, दो छोटी बहनें और दो भाई भी है। गांव वालों के मुताबिक, उसके दोनों बहनों की भी शादी हो गई है। रिहाई के बाद नाबालिग दोषी की भी शादी हो चुकी है।

एक बड़े एनजीओ के मुताबिक नाबालिग दोषी इन दिनों दक्षिण भारत के एक बड़े शहर में गुमनाम जिंदगी जी रहा है। नाबालिग गुनाहगार की रिहाई के वक्त दिल्ली सरकार ने उसे 10 हजार रुपए दिए थे। दर्जी का काम करने के लिए एक एनजीओ ने सिलाई मशीन दी थी। उसके अलावा भी कई संगठनों ने उसकी मदद की थी।

निर्भया कांड के बाद इतना सब होने पर आपको भी लग रहा होगा कि देश में जरूर बच्चियां और महिलाएं सुरक्षित हो गई होंगी। भारत में बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के मामलों में जरूर ही कमी आई होगी। निर्भया के दोषियों का हश्र देखकर जरूर अपराधियों की रूह कांप गई होगी, लेकिन दुर्भाग्‍य की बात है कि ये सिर्फ कागजों में है। देश में लड़कियों की सुरक्षा और रेप के मामलों को लेकर भारत की लीडिंग नेशनल एजेंसी एनसीआरबी के आंकड़े कुछ और ही बयां कर रहे हैं।

भारत में आज हालात और भी ज्‍यादा खराब हो गए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्‍यूरो की ओर से हाल ही में जारी की गई साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल देश में रेप के कुल 31516 मामले रजिस्‍टर किए गए हैं। यानि कि हर एक दिन में करीब 87 और हर एक घंटे में 3-4 युवतियां या बच्चियां रेप की शिकार हो रही हैं। इस रिपोर्ट में राजस्‍थान रेप केपिटल बन गया है, यहां पिछले एक साल में सबसे ज्‍यादा 5399 रेप के मामले दर्ज हुए हैं। वहीं दिल्‍ली में 1212 मामले दर्ज हुए। इसके अलावा उत्‍तर प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, महाराष्‍ट्र और अन्‍य राज्‍यों में भी स्थिति अच्‍छी नहीं है.

दिल्ली और देश में किस साल कितने मामले दर्ज हुए?

दिल्ली में 2012 में रेप के 706,

2013 में 1,636 रेप,

2014 में 2,096 रेप

2015 में 2,199 रेप

2016 में 2,155 रेप

2017 में 1,229 रेप

2018 में 1,215 रेप

2019 में 1,253 रेप

2017 में 997 रेप

2021 में 1,250 रेप

2022 में 1,212 रेप

राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो 2012 में देश में 24,923 मामले दर्ज हुए और उसके बाद हर साल रेप के मामलों की संख्या 30,000 से अधिक ही रही। 2016 में तो लगभग 39,000 मामले सामने आए।

निर्भया की मां का दावा, नहीं बदले दिल्ली के हालात

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक देश के 19 महानगरों में राजधानी में 2022 के दौरान महिलाओं पर अत्याचार के सबसे ज्यादा केस दर्ज हुए। निर्भया की मां का कहना है कि 11 साल बीतने के बावजूद हालात नहीं बदले महिलाओं पर होने वाले अपराध अभी भी कम नहीं हुए हैं। कानून बन गया है। लेकिन हुआ कुछ नहीं। कुछ भी नहीं बदला, यह सोचकर कभी-कभी काफी निराशा होती है।

द मूकनायक ने दिल्ली में रहने वाली उषा (बदला हुआ नाम) से बात की जो जॉब करती हैं। वह दिल्ली के दक्षिणी इलाके में रहती है। वह बताती है कि, इन 11 सालों में कुछ नहीं बदला है। जब यह घटना हुई थी, तब हम स्कूल में थे। तब से लेकर अब तक कोई बदलाव नहीं आया। तब भी हम असुरक्षा महसूस करते थे। आज भी हम असुरक्षा महसूस करते हैं। रात को जब से लेट आते वक्त यही लगता है कि दो-तीन दोस्त साथ में ही हो। तभी जाने में थोड़ा सुरक्षित लगता है। अब तो केब में भी डर लगता है। इसलिए यही कहना सही होगा कि दिल्ली के हालात अभी भी नहीं बदले हैं। यहां के लोगों की मानसिकता भी वैसी की वैसी ही है। दिल्ली ही नहीं पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के लिए बने कानून को शक्ति से पालन करवाना पड़ेगा तब जाकर हालात सुधरेंगे।

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