महाराष्ट्र: सेक्स वर्कर को कैद में रखने के मजिस्ट्रियल आदेश को कोर्ट ने रद्द किया, जानिए क्या था मामला?

प्रतीकात्मक चित्र
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मुम्बई सेशन कोर्ट ने पुलिस द्वारा एक सेक्स वर्कर को कैद में रखने पर फटकार लगाई है। इसके साथ ही मजिस्ट्रेट द्वारा कैद में रखने के आदेश को भी रद्द कर दिया है। कोर्ट का कहना है देश में सेक्स वर्क अपराध नहीं है, लेकिन सार्वजनिक स्थान पर वेश्यावृत्ति एक अपराध हो सकता है। अगर कोई सेक्स वर्कर अपनी किसी निजी जगह पर इस काम में लिप्त है तो गलत नहीं है। यह कहते हुए एडिशनल सेशन जज सीवी पाटिल ने कथित सेक्स वर्कर को रिहा करने का निर्देश दिया।

क्या है पूरा मामला?

मुम्बई पुलिस ने उपनगरीय मुलुंड में एक वेश्यालय पर छापा मारकर 34 साल की महिला को हिरासत में लिया गया था। इसके बाद महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और उसे दो अन्य लोगों के साथ मझगांव में एक मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया गया। मेडिकल रिपोर्ट पर गौर करने के बाद मजिस्ट्रेट ने महिला को एक साल के लिए हिरासत में लेने का आदेश दिया, लेकिन छापे के दौरान गिरफ्तार किए गए बाकी दो लोगों को रिहा करने की अनुमति दे दी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक महिला बालिग थी। महिला ने मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ सेशन कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में किसी भी अनैतिक गतिविधियों में लिप्त न होने का दावा किया गया था। महिला ने कहा कि मजिस्ट्रेट भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत उसकी उम्र या उसके निवास के अधिकार पर विचार करने में विफल रहा है। राज्य ने महिला की अपील का विरोध किया। कहा कि उसने पहले ही भांडुप पुलिस को एक अंडरटेकिंग दिया था कि वो सेक्स वर्क में लिप्त नहीं होगी। इसके बावजूद भी वो सेक्स वर्क में लिप्त रही। अदालत ने बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इसमें सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की बात की गई थी। साथ ही राज्य सरकार को सर्वे करने और उन वयस्क पीड़ितों को रिहा करने के निर्देश भी दिए थे, जिन्हें प्रोटेक्टिव होम्स में उनकी इच्छा के खिलाफ हिरासत में रखा गया था।

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जज ने कहा, दूसरों की तरह इस महिला को भी काम करने का अधिकार है। नियम के मुताबिक सेक्स वर्क में लिप्त होना अपराध नहीं है। यौन-कार्य को तभी अपराध कहा जा सकता है, जब ऐसा सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है और जिससे दूसरों को दिक्कत होती है। जज ने आगे कहा, महिला दो नाबालिग बच्चों की मां है। निश्चित रूप से बच्चों को अपनी मां की जरूरत है। अगर महिला को हिरासत में रखा जाता है तो निश्चित रूप से ये पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से कहीं भी आने-जाने और रहने के उसके अधिकार को कम करेगा।

कोर्ट ने कहा, "सेक्स वर्कर्स समान सुरक्षा के हकदार हैं। क्योंकि स्वैच्छिक यौन संबंध अवैध नहीं है, केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। मामले में पति ने महिला की कस्टडी मांगी थी। हालांकि कोर्ट ने महिला की कस्टडी उसके पति को देने से इनकार कर दिया। और कहा कि महिला बालिग है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत उसके कुछ मौलिक अधिकार हैं। उसे कहीं भी आने-जाने और रहने का अधिकार है."

कोर्ट ने आगे कहा, "अनुच्छेद 19(1)(डी) के तहत भारत के बाहर स्वतंत्र रूप से आने-जाने का अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। पीड़िता बालिग है। वो भारत की नागरिक है और इसलिए उसके पास ये अधिकार हैं। अगर पीड़िता को बिना किसी कारण के हिरासत में लिया जाता है तो ये कहा जा सकता है कि उसके स्वतंत्र रूप से आने-जाने के अधिकार और रहने और बसने के अधिकार का उल्लंघन है।”

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