आंध्र प्रदेश: काले रंग से नाखुश पिता ने मासूम बेटी को जहर देकर मारा

आरोपी ने अपनी पत्नी को झूठ बोला कि दौरा पड़ने से उनकी बेटी की जान गई है।
आंध्र प्रदेश: काले रंग से नाखुश पिता ने मासूम बेटी को जहर देकर मारा

नई दिल्ली: आज के समय में भले ही लोग ये कहने लगे हों कि 'ब्लैक इज ब्यूटीफ़ुल', लेकिन यह लाइन बस बोलने के लिए है। फर्क बस इतना है कि विज्ञापनों में गोरे रंग की जगह ‘चमक’ शब्द ने ले लिया है। इस बात का अदांजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि जब किसी लड़की की शादी होने वाली होती है तो 6 महीने पहले से ही गोरेपन के लिए ट्रीटमेंट से लेकर तरह-तरह के उबटन लगाया जाने लगता है। अधिकतर घरों को औरतों की सांवली सूरत सहन नहीं होती, इसलिए वे लोगों के तानों से जीवनभर पीड़ित रहती हैं। हालांकि, कुछ परिवारों में तो ये हालात कुछ बदल रहे हैं लेकिन वास्तव में ये सिर्फ़ दिखावा है, जिसकी वास्तविकता जस की तस है।

सांवले रंग की वजह से एक पिता ने अपनी बेटी की जान

सांवले रंग की वजह से एक पिता ने अपनी मासूम बेटी की जान ले ली। पिता ने अपनी 18 महीने की बेटी की सिर्फ इसलिए जान ले ली क्योंकि उसका रंग काला था। ये शर्मसार करने वाली घटना है आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा की। आरोप है कि पिता ने अपनी बेटी को जहरीला प्रसाद खिलाया, जिससे उसकी जान चली गई। आरोपी ने अपनी पत्नी को झूठ बोला कि दौरा पड़ने से उनकी बेटी की जान गई है। हालांकि, उसका झूठ बाद में सामने आ गया।

अक्सर देखा जाता है कि गोरे रंगत को नेचुरल का पैमाना समझा जाता है। भारतीयों के पास अपने-अपने, अलग-अलग तरह के अलंकरण होते हैं. माता-पिता को एक खुशी महसूस होती है जब उनका बच्चा गोरे रंग के साथ पैदा होता है।

सौंदर्य संरचना में भेदभाव

एक ऐसा प्रोडक्ट जिसे टीवी विज्ञापनों में देखकर भारतीय घरों का लगभग हर बच्चा बड़ा होकर वही फेयर एंड लवली ट्यूब खोजता है। सालों से, रंगत निखारने वाली अन्य क्रीम बाज़ार में आई और साथ ही हमारी ड्रेसिंग टेबल पर भी, लेकिन जो चीज़ नहीं बदली वो है हमारा जुनूनI

भारतीय राजस्व सेवा (एआईआरएस) के 2009 के आंकड़े बताते हैं कि रंग गोरा करने वाली क्रीम के उपयोगकर्ता सबसे कम उम्र के हैं और 12 साल के युवा हैं. 12 से 14 साल तक लगभग 13% के लिए ग्रुप साॅस्कर है।

बच्चों के काले रंग के कारण उन्हें अपमानित करने वाले उदाहरण कम नहीं हैं। रंग-आधारित भेदभाव के सिद्धांतों से पता चलता है कि बच्चे के आत्मसम्मान में कमी, उसकी भावना के साथ बड़ा होना हो सकता है।

द मूकनायक ने इस बारे में दिल्ली के संगम विहार इलाके में रहने वाली एक लड़की से बात की। वह बताती है कि, "मेरे रंग की वजह से कई बार मुझे अपमानित और दुख का सामना करना पड़ता था। चाहे वह कपड़े हो या कहीं जाना हो। जब मैं छोटी थी, कई बार मुझे सांवले रंग की वजह से कुछ अजीब तरीके देखा जाता था। मेरी बड़ी बहन जो पार्लर में जॉब करती थी। वह मम्मी से बोलती रहती थी कि 'इसको थोड़ा गोरा होने के कुछ उपाय बताओ'. मैं सोचती थी कि क्या गोरा होना जरूरी है। मैं भी अपनी बहन की बात मानकर चेहरे पर बहुत कुछ लगाती थी। पर उससे कुछ ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता था। यह सब बातें 2004 की हैं। उस समय तो जागरूकता की कमी थी। मेरी शादी के लिए कितने रिश्ते इसलिए नहीं हुई क्योंकि मेरा रंग साफ नहीं था। धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि काला गोरा कुछ नहीं होता है। मेरे पति मेरे से बहुत गोरे हैं। पर उन्होंने कभी मुझे सावला नहीं कहा। यह तो हर लड़की को समझना चाहिए कि लड़की के रंग से कुछ नहीं होता है। वह हर तरह से सुंदर ही होती है। बस उसे अपने ऊपर आत्मविश्वास होना चाहिए।"

दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके के निवासी राज (बदला हुआ नाम), जिनकी एक बेटी है, वह कहते हैं कि यह समाज की गंदी सोच है कि इंसान के रंग में भेदभाव होना चाहिए। मेरी बेटी चाहे गोरी है, या सांवली। उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस उसको पढ़ाना चाहता हूं। उसके अंदर आत्मविश्वास दिलाना चाहता हूं। इतना ही काफी होता है कि भगवान ने आपको बेटी दी है।

समाजशास्त्री, डॉ. बृजेश द मूकनायक को बताते हैं कि, "रंग भेदभाव के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि अभी भी लोग शिक्षित नहीं है। दूसरी बात यह है कि उनमें अभी जागरूकता की बहुत ज्यादा कमी है। अभी तक लोग परंपराओं से घिरे हुए हैं। अभी तक वह पीछे ही हैं। कोई कैसे अपनी बेटी को मार सकता है। बहुत दुख देने वाली घटना है। हम परंपराओं से कब तक बाहर निकलेंगे, पता नहीं है। लोगों में जागरूकता लानी होगी। तभी जाकर बदलाव आएंगे।"

"कितनी बार हम यह देखते हैं कि हमारे समाज में विवाह किए जाने के कारणों में एक मुख्य कारण होता है संतान पैदा करना। जब भी विवाह के लिए लड़की का चुनाव होता है तो लड़के वाले सोचते हैं कि यदि काली लड़की से अपने लड़के की शादी करेंगे तो उनकी पैदा होने वाली संताने भी काली ही होंगी और इस तरह उनकी अगली सारी पीढ़ियों पर इसका असर आएगा. इस वजह से लोग काली लड़की को पसंद नहीं करते हैं। इसी वजह से छोटे कद वाली लड़कियों को भी पसंद नहीं किया जाता. लोगों को डर होता है कि कहीं उनकी अगली पीढ़ी के बच्चों का कद भी छोटा ना रह जाए। अब लोग थोड़ा खुल कर बोलते हैं. कितने सारे सेलिब्रिटी कितने सारे लोग अपने एक्सपीरियंस बताते हैं कि उनके सांवले रंग के लेकर उनके साथ भी भेदभाव हुआ है. कब तक यह ऐसे ही चलता रहेगा, इसके लिए हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. खूबसूरत हर इंसान होता है", उन्होंने कहा.

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