बीएचयू में काम करने वाले ‘मालियों’ को पांच महीने से नहीं मिला वेतन, परिवार का पेट भरने की चुनौती से जूझ रहे श्रमिक

बीएचयू में काम करने वाले 'मालियों' को पांच महीने से नहीं मिला वेतन [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
बीएचयू में काम करने वाले 'मालियों' को पांच महीने से नहीं मिला वेतन [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मालियों ने प्रोफेसर पर बागवानी का काम कम और निजी काम ज्यादा कराने का आरोप लगाया है। विश्वविद्यालय के मालियों ने कहा कि, सुपरवाइजर अपनी मर्जी के हिसाब से उनकी उपस्थिति-अनुपस्थिति लगाते हैं। जिसके कारण सिर्फ 20 से 22 दिन का ही वेतन उन्हे मिल पाता है।

यूपी। देश का प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) अपनी शिक्षा पद्धति के लिए हमेशा सुर्खियों में बना रहा है। हाल में जारी हुई एनआईआरएफ की सूची में विश्वविद्यालय ने शीर्ष दस में अपना नाम दर्ज किया है। लेकिन विश्वविद्यालय में काम करने वाले दैनिक कर्मचारी लगातार अपनी मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय में दैनिक श्रमिक के रुप में काम करने वाले माली इस वक्त भूखमरी की कगार पर आ गए हैं। जिसके कारण यह सभी लगातार धरना प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हैं। इनमें कुछ माली ऐसे भी हैं जो पिछले दो दशकों से विश्वविद्याल में दैनिक श्रमिक के रुप में काम कर रहे हैं। मौजूदा समय में लगभग 75 माली इस धरना प्रर्दशन में शामिल हैं। जिसमें कुछ महिलाएं भी शामिल हैं। लगातार चल रहे धरना प्रदर्शन के बीच द मूकनायक की टीम ने धरने में पहुंचे मालियों से बात की।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हार्टिकल्चल विभाग में माली के रुप में काम करने वाले गुरचरण सिंह का कहना है कि, उनके धरना करने का सबसे बड़ा कारण है कि उनके साथ अधिकारियों द्वारा गाली गलौच किया जाता है। उन्हें पिछले पांच महीने से वेतन नहीं दी गई है। इतना ही नहीं उनका बढ़ा हुआ मानदेय भी नहीं दिया जा रहा है। वह बताते है कि, "पहले दैनिक मजदूरी 448 थी, जो अब बढ़कर 536 हो गई है। लेकिन बढ़ा हुआ पैसा नहीं दिया जाता है। हमारा न तो ईपीएफ कटता और न ही हमें मेडिकल सुविधा दी जाती है। जबकि साल 2017 से हमें यह सारी सुविधा देने की मंजूरी है।"

बागवानी कम निजी काम ज्यादा कराया जाता है

गुरुचरण के समीप खड़े एक अधेड़ उम्र के शख्स बताते हैं कि, वह उस वक्त से विश्वविद्यालय में माली का काम कर रहे हैं। जिस वक्त प्रतिदिन की हाजिरी (मेहनताना) 40 रुपया हुआ करती थी। "अब मुझे यहां लगभग 22 साल हो गए हैं। लेकिन स्थिति में कोई खास सुधार नहीं है।" वह सवाल करते हुए कहते हैं कि, "विश्वविद्यालय में कोई भी व्यक्ति आता है तो उसका एक आईडी कार्ड होता है। लेकिन हम लोगों का तो यहां कुछ भी नहीं है। हालात यह है कि हमें मानसिक, शारीरिक और आर्थिक तीनों रुपों से प्रतिड़ित किया जा रहा है। इतने महीने से वेतन भी नहीं मिली है। महंगाई चरम पर है। ऐसे में हम लोग अपना परिवार कैसे पाले?"

विश्वविद्याल में कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक कार्यालय के समक्ष धरने पर बैठे मालियों का भी एक स्वर में यही कहना है कि, प्रोसेफर अनिल सिंह उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं। इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे श्रमिक रामबाबू का कहना है कि, "प्रोफेसर अनिल कुमार हमसे बागवानी का काम कम निजी काम ज्यादा कराते हैं। जिसमें अपने परिचितों के यहां सब्जी, फल भिजवाने का काम सबसे ज्यादा कराया जाता है।"

मालियों के समूह में शामिल एक माली ने द मूकनायक को बताया कि, धरने के पांचवें दिन उन्होंने रजिस्टार के समक्ष अपनी लिखित रुप में सारी समस्या रखी। लेकिन उनकी तरफ से सिर्फ आश्वासन दिया गया कि जल्द ही इस पर संज्ञान लिया जाएगा। लेकिन कुछ भी लिखित में नहीं दिया गया है। श्रमिकों ने अपनी बात को रखते हुए कहा है कि जब तक उनकी मांग नहीं मानी जाएगी तब तक वह काम पर वापस नहीं लौटाएंगे।

काम पूरा महीना करते हैं और वेतन 20 से 22 दिन का ही मिलता है

विवेक बड़े गंभीर भाव में कहते हैं कि, श्रमिकों द्वारा किसी प्रकार की भी कोई गलती होने पर उन्हें बिना किसी नोटिस के तुरंत अगले दिन से काम पर आने से मना कर दिया जाता है। लेकिन अधिकारियों के साथ यह नहीं होता है। वह श्रमिकों के साथ कैसा भी व्यवहार करें। उन्हें हमेशा सुरक्षित रखा जाता है। वह कहते हैं, "लगभग सभी मालियों के अंडर में 200 पौधे आते हैं। स्थिति यह है कि पिछले पांच दिनों से सभी माली अपनी मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं। जिसके कारण पौधों को पानी नहीं दिया जा रहा है, और पौधे पूरी तरह से सूख रहे हैं।"

लगातार पांचवें दिन चल रहे धरना प्रदर्शन में शामिल राजेश कुमार सिंह का कहना है कि, पिछले पांच महीने से वेतन न मिलने पर जब मालियों ने इंचार्ज प्रोफेसर अनिल सिंह से इस बारे में कहा तो अनिल सिंह ने कहा कि मालियों की फाइल वीसी के पास भेजी गई है। जैसे ही वहां से आगे का प्रोसेस शुरु होगा तो मालियों को वेतन दी जाएगी।

"स्थिति यह है कि पांच मिनट देरी से आने पर मालियों की अनुपस्थिति लगा दी जाती है। जबकि, इसमें कई माली ऐसे भी हैं जो साईकिल से आते हैं। कई दूर से आते हैं। हम लोगों से काम तो पूरे महीने कराया जाता है। लेकिन वेतन 20 से 22 दिन का ही दिया जाता है। यहां तक की हमारी हाजरी पर भी हमारे हस्ताक्षर नहीं होते हैं। सुपरवाइजर अपनी मर्जी के हिसाब से उपस्थिति-अनुपस्थिति लगाते हैं। जिसके कारण सिर्फ 20 से 22 दिन का ही वेतन मिल पाता है।"

लगातार धरना प्रदर्शन पर बैठे मालियों का विश्वविद्यालय के छात्रों का भी समर्थन मिल रहा है। इसी दौरान अपनी मांग को लेकर मालियों ने एक पत्र रजिस्टार को दिया है और वीसी को ईमेल किया है। लेकिन मांग पत्र देने के बाद भी मालियों को किसी तरह की आशा दिखाई नहीं दे रही है। क्योंकि उनका कहना है कि, भले ही रजिस्टार ने उनसे  मिलकर समस्या का समाधान करने का आश्वसन दिया है। लेकिन यह लिखित में नहीं है। इसलिए किसी तरह की उम्मीद करना बेकार है। 

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