Ground Report- यूपी में ओडीएफ का सच: शौचालय यूज़ कर रहे सिर्फ बच्चे, बड़े जाते खुले में

स्वच्छता मिशन की ज़मीनी हकीकत; खुले में शौच के कारण बढ़ रहे हैं डायरिया और निमोनिया के मरीज,बच्चों में कुपोषण के कारण बौनेपन की समस्या बढ़ी
घटिया सामग्री से निर्मित शौचालय एक से दो साल में ही जर्जर हो जाते हैं।
घटिया सामग्री से निर्मित शौचालय एक से दो साल में ही जर्जर हो जाते हैं।द मूकनायक

अयोध्या/अमेठी/बाराबंकी। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के जिलों में पड़ने वाले सभी गांवों को सौ फीसदी ओडीएफ (खुले में शौचमुक्त) घोषित कर दिया है। दरअसल, सरकारी आंकड़ों और व्यवस्था के अनुसार स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रत्येक ग्रामीण को शौचालय बनाकर दे दिए हैं। उस आधार पर इसे पूर्ण रूप से ओडीएफ घोषित करना स्वभाविक है। किंतु जिलों में बारिश के बाद लगातार बढ़ रही डायरिया,मलेरिया,निमोनिया और डेंगू के मरीजों की संख्या ने स्वच्छता मिशन की पोल खोलकर रख दी है।

यूनिसेफ के मुताबिक खुले में शौच के कारण केवल एक गांव में लाखों वायरस, बैक्टीरिया और परजीवी सिस्ट शामिल होते हैं, और यह भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया से होने वाली लगभग 100,000 मौतों का कारण बनता है। इसके साथ ही बच्चों की शिक्षा और पोषण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शौच के कारण होने वाली बीमारियों की तस्दीक करने के लिए द मूकनायक टीम पूरे मामले की पड़ताल करने ग्राउंड जीरो पर निकली।

अयोध्या मेंओडीएफ प्लस की ये है जमीनी हकीकत

द मूकनायक ने ओडीएफ प्लस की पड़ताल करने के लिए यूपी के तीन जिलों के गांव के लोगों से मिलकर इस व्यवस्था की हकीकत जानी। इस दौरान द मूकनायक की टीम पहले अयोध्या के रुदौली रोड पर मौजूद बाबा का बाजार क्षेत्र के अमौनी गांव पहुंची।

अयोध्या में परमदत्त तिवारी के घर स्वच्छ भारत मिशन स्कीम 2018 -19 में बना शौचालय
अयोध्या में परमदत्त तिवारी के घर स्वच्छ भारत मिशन स्कीम 2018 -19 में बना शौचालयद मूकनायक

अनियारी गाँव के रहने वाले परम दत्त तिवारी ने द मूकनायक प्रतिनिधि को बताया-'सरकार ने हमें शौचालय बनाकर दिए हैं। इससे काफी राहत मिली है। लेकिन इस शौचालय में सिर्फ बच्चे ही जा सकते हैं। इस शौचालय का चेम्बर एक फीट गहरा और चौड़ा है। घर के पुरुष और महिलाएं शौच के लिए खुले में ही जाती हैं। अगर हम सब लगातार इसे इस्तेमाल करने लगे तो इसका चेम्बर भर जाता है। बार-बार इसकी सफाई करनी पड़ती है। इसकी सफाई में भी काफी समस्या आती है। चेम्बर को बार-बार खोलने और बन्द करने पर कई बार इसका पत्थर टूट चुका है।'

परम दत्त की पत्नी द मूकनायक प्रतिनिधि से कहती हैं-'हम सब शौचालय के लिए बाहर ही जाते हैं। रात में हमें समस्या होती है। सरकार ने हमें शौचालय बनाकर दिया है। लेकिन इसे टम्प्रेरी (अस्थायी) तौर पर ही इस्तेमाल करते हैं। इसमें सिर्फ बच्चे ही जाते हैं। इसका गड्ढा छोटा है। ज्यादा इस्तेमाल करने पर भर जाता है।'

अनियारी गांव के रहने वाले कपिल ने द मूकनायक को प्रतिनिधि को बताया-'हमें भी सरकार ने शौचालय दिया है। लेकिन इसमें केवल 12 हजार रुपये दिए गए थे। इसका चेम्बर 1 फुट गहरा था। हमारे परिवार में ज्यादा सदस्य हैं। इसमें 20 हजार रुपये मिलाकर हमने कुल 32 हजार का शौचालय बनाया है। इसका चेम्बर 10 फीट गहरा है।'

अमेठी के शुक्लन पुरवा में रमेश के घर बना 2018-19 में बना शौचालय जिसकी छत गिर गई
अमेठी के शुक्लन पुरवा में रमेश के घर बना 2018-19 में बना शौचालय जिसकी छत गिर गईद मूकनायक

अमेठी में हाल बदहाल

द मूकनायक की टीम अमेठी जिले के रानीगंज रोड पर मौजूद शुक्लन का पुरवा पहुंची। इस गांव में 2018-2019 में लोगों को शौचालय आवंटित हुए थे। अब अधिकांश लोगों के शौचालय खराब हो चुके हैं। शुक्लन का पुरवा के रहने वाले विशम्भर द मूकनायक को बताते हैं-'हमें शौचालय मिला था। पिछले साल तक इसे बच्चों ने इस्तेमाल किया था। लेकिन इस बार की बारिश में यह शौचालय गिर गया। मैंने और मेरी पत्नी ने इस शौचालय का प्रयोग दो साल पहले बन्द कर दिया था। इसकी सीट बैठने लगी थी।'

शुक्लन का पुरवा की रहने वाली मालमती बताती हैं-'हमारे घर के बाहर ही शौचालय बना था। धीरे-धीरे यह गिर गया। अब हमें खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। खुले में शौच के कारण हमें मच्छर काटते हैं। गंदे पानी के कारण उल्टी दस्त के साथ पेचिश पड़ने लगती है। यह समस्या माह में दो बार अक्सर हो जाती है।'

द मूकनायक की टीम बाराबंकी जिले के सुबेहा पहुंची। सुबेहा के रहने वाले सलीम ने बताया-'सरकार ने शौचालय तो दिया था। लेकिन इसका उपयोग सिर्फ कुछ महीनों तक ही हो सका। घर की बच्चियां ही इसका इस्तेमाल करती हैं। और सभी बाहर ही जाते हैं। बारिश के समय मे जंगली जानवरों का खतरा बढ़ जाता है। कई बार रात में लोग शौच के लिए गए और घटना का शिकार हो गए हैं।'

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े क्या कहते हैं?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत में 2016 से 2020 तक बचपन में दस्त की व्यापकता 9% से बढ़कर 9.2% हो गई है। यह पांच साल से कम उम्र की मृत्यु दर के लिए तीसरी सबसे आम जिम्मेदार बीमारी है। 10 गहन अध्ययनों से पता चला है कि भारत में डायरिया के कारण पांच साल से कम उम्र में मृत्यु दर बनी रहती है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि यह बीमारी भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है।

भारत स्वच्छता मिशन 2018-19 योजना में विशम्भर को शौचालय मिला था,जो अब गिर गया है।
भारत स्वच्छता मिशन 2018-19 योजना में विशम्भर को शौचालय मिला था,जो अब गिर गया है।द मूकनायक

सरकारी शौचालय बनाने के लिए घटिया सामग्री

सरकार द्वारा मुफ्त दिए गए शौचालय का निर्माण कर चुके शुक्लन का पुरवा अमेठी के रहने वाले राजगीर मिस्त्री रूपनारायण द मूकनायक प्रतिनिधि को बताते हैं-'सरकारी शौचालय निर्माण की कीमत मात्र 12 हजार रुपये होती है। गांव में अधिकांश शौचालय ठेकेदार द्वारा ही बनाये जाते हैं। मैंने भी ठेकेदारों लिए गए शौचालय निर्माण का काम किया है। ईंट तीन प्रकार की आती हैं। इसके निर्माण के लिए सबसे निम्न क्वालिटी की पीली ईंट का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही 10-1 (10 बालू और 1 सीमेंट) के मिश्रण का इस्तेमाल कर इसे बनाया जाता है। इसका चेम्बर एक फुट गहरा और एक फुट चौड़ा होता है। इस तरह निर्मित शौचालय एक से दो साल में ही जर्जर हो जाते हैं।'

एक आदर्श शौचालय कैसा होना चाहिए इसके लिए द मूकनायक प्रतिनिधि ने राजगीर मिस्त्री रामनरायण ने बताया-'एक अच्छा शौचालय बनाने के लिए 20 से 25 हजार की कीमत लग जाती है। इसका टैंक 8 फुट ग़हरा और 8 फुट चौड़ा होना चाहिए। इसके साथ ही इसमें अव्वल ईंट का इस्तेमाल करना चाहिए। शौचालय की मजबूती के लिए 6-1 (चार तीन बालू,2 मौरंग और एक तसला सीमेंट) का मिश्रण उपयोग करना चाहिए।

भारत स्वच्छता मिशन: अच्छी मुहिम पर आशानुरूप परिणाम नहीं

भारत देश को बीमारियों से बचाने के लिए यूनिसेफ की साझेदारी में 2014 से भारत स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय बनाने का काम शुरू किया गया। इस योजना में प्रत्येक ग्रामीण को भारत सरकार की तरफ से मुफ्त शौचालय बनवाने के लिए 8 हजार की धनराशि दी जाती थी। जो कि अब बढ़कर 12 हजार हो गई है। इस योजना के माध्यम से सरकार ने स्वच्छता के प्रति एक अच्छी मुहिम चलाई। 2014 से शुरू ही इस योजना में खुले में शौच मुक्त लक्ष्य तक पहुँचने में तेजी से काम हुआ। जनवरी 2020 में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 706 जिलों और 603,175 गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया था। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, खुले में शौचमुक्त 2,96,928 गांवों में से 2,08,613 गांवों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था है। 32,030 गांवों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और तरल अपशिष्ट प्रबंधन दोनों की व्यवस्था है। 56,285 गांव खुले में शौचमुक्त आदर्श गांव हैं।

एक गाँव में बदहाल शौचालय
एक गाँव में बदहाल शौचालयद मूकनायक

अब तक कितने प्रतिशत गांव हुए शौच मुक्त

भारत स्वच्छता मिशन के तहत वर्ष 2014-15 और 2021-22 के बीच केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण को कुल 83,938 करोड़ रुपये आवंटित किए। वर्ष 2023-24 में 52,137 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसके अलावा 15वें वित्त आयोग की निधियों से भी अलग आवंटन हुआ है। श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों में तेलंगाना (शत-प्रतिशत), कर्नाटक (99.5 प्रतिशत), तमिलनाडु (97.8 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (95.2 प्रतिशत), छोटे राज्यों में गोवा (95.3 प्रतिशत) और सिक्किम (69.2 प्रतिशत) हैं।

आंकड़ों में यूपी 100 फीसदी हुआ ओडीएफ प्लस

सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक प्रेस वार्ता के दौरान यूपी के सभी गांवों को ओडीएफ प्लस घोषित किया है। सीएम ने बताया -'ओडीएफ प्लस की मुहिम में उत्तर प्रदेश ने मौजूदा वित्त वर्ष में तेजी से प्रगति की है। एक जनवरी 2023 तक राज्य में केवल 15,088 गांव ऐसे थे जिन्हें ओडीएफ प्लस घोषित किया गया था। पिछले नौ माह में राज्य में मिशन मोड में चले अभियान के तहत 80 हजार से अधिक गांवों ने ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल किया।'

बता दें कि प्रदेश के 95,767 ओडीएफ प्लस गांवों में से 81,744 आकांक्षी गांव हैं, जहां ठोस अपशिष्ट प्रबंधन या तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था है। जबकि अब तक देश भर के 4.4 लाख (75 प्रतिशत) गांवों ने खुद को ओडीएफ प्लस घोषित किया है।

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