MP: आदिवासी इलाकों में रेत खदानों के टेंडर में पेसा कानून का उल्लंघन, जनहित याचिका दायर

हाईकोर्ट जबलपुर में हुई प्रारंभिक सुनवाई, याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को कहा- "पेसा क़ानून 1996 की धारा 4 के अंतर्गत किसी भी प्रकार की खनन गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायतों की अनुशंसा व अनापत्ति लेना आवश्यक है। कोर्ट ने 4 सप्ताह के भीतर राज्य शासन से जवाब मांगा।"
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.

भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ पेसा कानून उल्लंघन एवं विधि विरुद्ध आदिवासी इलाकों में रेत खनन टेंडर अनुबंध करने पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि मण्डला जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहां रेत के अवैध उत्खनन के संबंध में ग्रामीणों द्वारा जिला प्रशासन और राज्य शासन को कई बार शिकायत की गई, लेकिन शासन ने ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों के ज्ञापनों पर कोई कार्यवाही नहीं की। इसके बाद सरकार ने विधि विरुद्ध एक कंपनी को रेत खनन का टेंडर भी दे दिया!

एमपी में 2022 में लागू हुआ था पेसा कानून

बता दें पेसा अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 15 नवम्बर 2022 को आदिवासी बहुल और अनुसूची छह के तहत घोषित अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट लागू किया था। यह नियम लागू कर तत्कालीन शिवराज सरकार ने आदिवासियों का हितैषी बताकर उन्हें लुभाने के लिए प्रदेश में नवंबर और दिसंबर 2022 में बड़े-बड़े आयोजन किए थे।

तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उस वक्त मंचों से कहा था कि सरकार आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अब यही भाजपा की सरकार पेसा कानून की धज्जियां उड़ा रही है।

मंडला के जनपद उपाध्यक्ष संदीप सिंगौर ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। जिसकी प्रारंभिक सुनवाई मंगलवार को मुख्य न्याय मूर्ति रवि माली मठ एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा की गई।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद साह ने कोर्ट को बताया कि वंशिका कंस्ट्रक्शन को अनुसूचित क्षेत्र मंडला जिला की 26 अधिसूचित रेत खदानों से रेत उत्खनन करने का तीन साल के लिए विधि विरुद्ध रूप से टेंडर दिया गया है। राज्य शासन ने उक्त कंपनी के साथ लिखित अनुबंध भी कर लिया है।

पेसा एक्ट 1996 की धारा 4 का उल्लंघन!

याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि उक्त अनुबंध नियम अनुसार शून्य है क्योंकि मंडला,डिंडोरी,शहडोल,धार,झाबुआ, बड़वानी आदि जिले संविधान की अनुसूची छह के तहत राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए है।

इन जगहों में पेसा क़ानून 1996 की धारा 4 के अंतर्गत किसी भी प्रकार की खनन गतिविधियों के ग्राम पंचायतों की अनुशंसा तथा अनापत्ति लेना आवश्यक है जो की नहीं ली गई है एवं उक्त कम्पनी के द्वारा बड़ी मात्रा में अवैध रूप से रेत का खनन किया जा रहा है। कोर्ट ने इस मामले में 4 सप्ताह के भीतर मुख्य सचिव राज्य शासन एवं अन्य से जवाब मांगा है।

द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए याचिकाकर्ता और मंडला जनपद उपाध्यक्ष संदीप सिंगौर ने बताया कि पेसा कानून के समस्त नियमों को दरकिनार करके सरकार ने अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में माइनिंग करने के ठेके दे दिए हैं। वंशिका कंस्ट्रक्शन नियम विरुद्ध पोकलेन मशीनों से भारी मात्रा में उत्खनन कर रही है।

निर्धारित क्षमता से कई गुना ज्यादा वजन लोड डम्फर सड़कों पर दौड़ रहे है। मंडला से रेत उत्खनन कर जबलपुर जिले में अवैध रूप से भंडारण किया जा रहा है। यहाँ बाईपास रोड किनारे रेत के पहाड़ बन गए हैं। आरोप लगाते हुए संदीप ने कहा कि जबलपुर जिले में रेत का भंडारण करना नियम विरूद्ध है, जबलपुर कलेक्टर और माइनिंग विभाग के अधिकारियों की रेत माफियाओं से मिलीभगत है।

अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने द मूकनायक को बताया कि इस मामले में प्रारंभिक सुनवाई हुई है। 1996 तथा मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022 के नियमों की अवहेलना करके सरकार ने रेत माफिया को खनन का ठेका दिया है।

एडवोकेट ठाकुर ने कहा- "अधिसूचित 26 रेत खदानों में उत्खन्न करने की अनुमति सम्बंधित ग्राम पंचायतों ने नहीं दी है, याचिका में कलेक्टर को प्रेषित आपत्ति पत्र संलग्न किए हैं। पेसा एक्ट के तहत अधिसूचित जनजाति क्षेत्रों में खनन किए जाने के पूर्व सम्बंधित ग्राम पंचायतों से अनुमति लेना आवश्यक होता है।"

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