एमपी: आदिवासी परिवार को 11 वर्ष पहले मिला पट्टा, कृषि भूमि पर अब तक नहीं मिला कब्जा!

मध्य प्रदेश प्रशासन की लापरवाही के चलते करीब 60 प्रतिशत दलित-आदिवासी पट्टे की जमीन पर नहीं हो पाए काबिज.
भैंसावन स्थित घर के बाहर बैठे ज्ञानी और जानकी आदिवासी.
भैंसावन स्थित घर के बाहर बैठे ज्ञानी और जानकी आदिवासी.फोटो: अंकित पचौरी, द मूकनायक

भोपाल। "2013 में मेरे पति ज्ञानी आदिवासी को गाँव के पास ही दस बीघा जमीन का पट्टा सरकार ने दिया था। लेकिन उस जमीन पर गाँव के कुछ प्रभावशाली लोगों का कब्जा है। कई बार हम उस जमीन पर गए तो वह लोग पट्टा निरस्त कराने और जान से मारने की धमकी देते हैं। हमने कलेक्टर से लेकर एसडीएम, पटवारी सभी को शिकायत की। कई बार कलेक्टर कार्यालय गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।"

शिवपुरी जिले के भैंसावन गांव की जानकी आदिवासी द मूकनायक से बातचीत में कहती हैं- जिस जमीन का पट्टा सरकार ने उन्हें दिया था, उस जमीन पर गाँव के लाखन यादव, सतीश धाकड़ पहले से ही कब्जा किए हुए थे। पति ज्ञानी ने जमीन को छुड़ाने के लिए खूब दौड़-भाग की लेकिन प्रशासन ने न सीमांकन किया और न ही उन्हें जमीन का कब्जा मिल पाया। जानकी ने कहा- "अब हम और नहीं लड़ सकते, परिवार भी पालना है। हम गरीबों की सुनवाई कोई नहीं करता।"

ज्ञानी आदिवासी का घर
ज्ञानी आदिवासी का घरफोटो: अंकित पचौरी, द मूकनायक

शिवपुरी जिले के पोहरी तहसील अंतर्गत भैंसावन में ज्ञानी और जानकी सहरिया आदिवासी का परिवार रह रहा है। छोटे से घर में इनका बेटा और उसका परिवार भी रहता है। इनके घर की कच्ची मिट्टी की दीवारें यह बता रहीं है कि यह ग़रीबी से जूझ रहे है। लेकिन प्रशासन की लापरवाही के कारण इन्हें सालों से अपना हक नहीं मिल पा रहा है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए ज्ञानी कहतें हैं- "कि वे अब इस जमीन पर खेती करने की उम्मीद छोड़ चुके हैं। उनका बेटा और वह मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते हैं।"

भू-अधिकार पुस्तिका एवं दस्तावेज.
भू-अधिकार पुस्तिका एवं दस्तावेज.

ऐसा ही और एक मामला सीहोर जिले के बुधनी तहसील के अंतर्गत आने वाले होड़ा गांव का है। जहाँ 14 साल से 70 वर्षीय बुजुर्ग आदिवासी महिला अपनी जमीन को प्रभावशाली लोगों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए भटक रही है। आदिवासी सुमन बाई अपने परिवार के साथ होडा गाँव में रहती हैं। भूमिहीन होने के कारण सरकार ने वर्ष 2010-11 में उन्हें कृषि भूमि के लिए 1.272 हेक्टेयर जमीन का पट्टा उनके गांव होड़ा में ही दिया था।

सरकार से मिला पट्टा क्रमांक 937923 और खसरा नंबर 44 / 6 पर सुमन बाई का परिवार उस जमीन पर कभी फसल नहीं उगा पाए, सुमन कभी उस जमीन से एक रुपये का लाभ नहीं ले पाई। सुमन बाई को सरकार से जब पट्टा मिला तो वह बेहद खुश थी कि अब उनके परिवार का खेती करके गुजारा आराम से हो पायेगा। जब जमीन का पट्टा सुमन बाई को मिला उसके बाद ही उस पर प्रभावशाली लोगों का कब्जा हो चुका था।

पट्टा मिलने के बाद से वह जमीन सुमन बाई के पास नहीं है बल्कि किसी और के कब्जे में है, और आज तक वह कब्जाधारी ही उस जमीन का उपयोग कर रहा है। सुमन बाई ने अधिकारियों के पास जाकर कई बार गुहार लगाई, लिखित प्रार्थना पत्र दिए, लेकिन प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। फिलहाल यह मामला शाहगंज के एसडीएम न्यायालय में विचाराधीन हैं।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए सुमन बाई के बेटे कैलाश पर्ते ने कहा - "14 साल बीत गए हैं, लेकिन हमें पट्टे की जमीन पर कब्जा नहीं मिला। तीन एकड़ खेती की जमीन है जिसपर हमारा परिवार खेती करके रोजी-रोटी कमाता। लेकिन अब हम मजदूरी करने को मजबूर हैं।"

मध्य प्रदेश में 22 साल पहले दलित-आदिवासियों को दिए गए भूमि पट्टों में आज भी लोग ज़्यादातर पट्टों पर कब्जे के इंतजार में हैं। तत्कालीन कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार में नदी, नाले, पहाड़ जंगल सबका पट्टा बांट दिया गया था। लेकिन जब पट्टे धारी मौके पर पहुंचे तो ठगे से रह गए। क्योंकि उन ज़मीनों पर पहले से ही प्रभावशाली लोगों का कब्जा था। सरकारें बदल गई लेकिन पट्टे की जमीन पर कब्जा नहीं मिला पाया। कुछ जमीन के पट्टे वर्ष 2010 से 2014 तक के बीच दिए गए थे। आज इन सभी पट्टों पर कब्जों को लेकर लोग कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं।

दरअसल, 1999 से 2002 के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने निर्धन भूमिहीन दलित/आदिवासी परिवारों के लिए उनके ही गाँव की सरकारी चरनोई जमीन से खेती के लिए जमीन के पट्टे बाँटे थे। प्रदेश के 344329 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों को 698576 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। वंचित वर्ग के अधिकारों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि 22 वर्ष बाद भी करीब 60 प्रतिशत लोग पट्टे की जमीन पर काबिज नहीं हो पाए।

फरवरी 2013 में तत्कालीन राजस्व मन्त्री करण सिंह वर्मा ने कांग्रेस विधायक केपी सिंह के प्रश्न के जवाब में बताया था, कि प्रदेश के कई जिलों में पट्टेधारकों को उनकी जमीन पर काबिज नहीं कराया जा सका है। हालाँकि उन्होंने 60 प्रतिशत का ही आँकड़ा विधानसभा में बताया था लेकिन प्रदेशभर में सर्वे करने वाली संस्था भू-अधिकार अभियान का दावा है कि 70 प्रतिशत परिवार पट्टा–पावती हाथ में लिए इन्तजार कर रहे हैं।

लापरवाह प्रशासन !

सरकार ने जमीन के पट्टे जब दलित आदिवासियों को सौंपे थे तभी घोषणापत्र में स्पष्ट उल्लेख किया था कि इन्हें अपनी जमीन पर काबिज करने का पूरा जिम्मा प्रशासन का होगा और जिला कलेक्टर इसकी मोनिटरिंग करेंगे। बावजूद इसके प्रदेश में कहीं कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, उज्जैन, देवास, शाजापुर, नीमच, मंदसौर, विदिशा, सागर, शिवपुरी, गुना और इंदौर जिलों की है। यहाँ पर सर्वाधिक पट्टों की जमीन विवादों में घिरी हैं।

आदिवासी अधिकारों के लिए काम कर रहे एडवोकेट सुनील कुमार आदिवासी ने द मूकनायक को बताया कि प्रदेश में आदिवासियों की पट्टे की ज़मीनों पर कब्जा है। इसका कारण राजस्व विभाग का सीमांकन नहीं करना है। पीड़ित परिवार तहसीलदार, एसडीएम को शिकायत भी करते है, लेकिन शिकायतों को यह कह कर निराकरण कर दिया जाता है कि मौके पर कब्जा नहीं मिला। जब आदिवासी परिवार उक्त जमीन पर खेती करने जाता है तो दबंग उन्हें वहां हल चलाने से रोक देते हैं। सुनील ने कहा- "मध्य प्रदेश में हज़ारों एकड़ पट्टे की जमीन दबंगो के कब्जा होने के कारण विवाद में फसी हैं।"

आदिवासी समुदाय के पट्टे की जमीनों पर कब्जे के मामले में हमने मध्य प्रदेश सरकार के जनजातीय कार्य विभाग के मंत्री विजय शाह और विभाग के कमिश्नर संजीव सिंह को फोन किया पर दोनों से ही बात नहीं हो सकी।

जमीनी विवाद की यह घटनाएं आई सामने

मध्य प्रदेश के गुना जिले के बमोरी थाना इलाके के धनोरिया गांव में 3 जुलाई 2022 को आदिवासी महिला को कुछ लोगों ने जिंदा जलाने की कोशिश की थी। आरोपियों ने खेत पर काम कर रही महिला के ऊपर डीजल डालकर उसमें आग लगा दी, जिससे महिला 70 से 80 फीसदी  झुलस गई थी। जिसके उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी।

यह घटना जमीनी विवाद के चलते हुई थी, पीड़ित आदिवासी परिवार की पट्टे की जमीन पर आरोपी कब्जा करना चाहते थे जब महिला ने विरोध किया तो उस पर डीजल डालकर आग लगा दी।

साल 2023 में एक और घटना पेश आई, जिसमें अनुसूचित जाति परिवार के पट्टे की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की गई। और परिवार के सदस्यों के इतनी बेरहमी से पीटा गया कि एक व्यक्ति को मौत हो गई थी। मामला इंदौर जिले के गौतमपुरा क्षेत्र के देपालपुर के मुंडला कलमा गांव के दलित परिवार का था.

शिवपुरी में मनबढ़ों ने एक दलित परिवार की डेढ़ बीघा कृषि भूमि पर 25 साल से कब्जा कर रखा है। यह घटना अप्रेल 2023 की है। यहां भी दलित परिवार के पट्टे की जमीन पर कब्जा के कारण विवाद हुआ था। जानकारी के मुताबिक मामला सिरसौद थाना के खरई भाट गांव का था। परिवार ने जमीन का सीमाकंन कराया तो उनकी डेढ़ बीघा जमीन दबंगों के कब्जे में पाई गई थी। लेकिन मनबढ़ दलित परिवार को कब्जा नहीं दे रहे थे। उल्टा परिवार के साथ मारपीट कर दी। पीड़ित परिवार ने सिरसौद पुलिस में शिकायत कराई लेकिन वहां उनकी सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने पहले एसपी बाद में कलेक्ट्रेट परिसर में धरने पर बैठ गए थे।

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