रांची: झारखंड में कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग को लेकर सियासत गरमा गई है। राज्य के विभिन्न आदिवासी संगठनों ने इस मांग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और किसी भी कीमत पर इसका विरोध करने का फैसला किया है। इस मुद्दे को लेकर आदिवासी और कुर्मी समुदाय के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।
सोमवार को राजधानी रांची में हुई एक अहम बैठक में कई आदिवासी समूहों ने एकजुट होकर यह निर्णय लिया। बैठक के बाद एक आदिवासी नेता, लक्ष्मी नारायण मुंडा ने स्पष्ट किया, "हम आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आरक्षण और भूमि अधिकारों को छीनने की इस साजिश का पुरजोर विरोध करेंगे।" उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर आगे की रणनीति तैयार करने के लिए 28 सितंबर को रांची में सभी स्वदेशी संगठनों की एक बड़ी बैठक बुलाई गई है, जिसमें भविष्य के आंदोलन की रूपरेखा तय की जाएगी।
यह पूरा विवाद उस समय और बढ़ गया जब बीते शनिवार को 'आदिवासी कुर्मी समाज' (AKS) के बैनर तले हजारों प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों को लेकर राज्य भर में कई जगहों पर रेलवे ट्रैक जाम कर दिए थे। उनकी मुख्य रूप से दो मांगें हैं - कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देना और कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना।
इस 'रेल रोको' आंदोलन के कारण 100 से अधिक ट्रेनों को रद्द, डायवर्ट या फिर बीच रास्ते में ही कैंसिल करना पड़ा था, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
जिस दिन कुर्मी समुदाय रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन कर रहा था, उसी दिन आदिवासी संगठनों ने भी उनकी मांग के विरोध में रांची में राजभवन के पास एक प्रदर्शन किया था।
जय आदिवासी केंद्रीय परिषद, झारखंड की महिला अध्यक्ष निरंजना हरेंज टोप्पो ने कुर्मी समुदाय के आंदोलन की कड़ी निंदा की है। उन्होंने दावा किया, "सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कुर्मी समुदाय द्वारा किए गए हालिया रेल चक्का जाम की निंदा की। समुदाय का यह तथाकथित आंदोलन केंद्र सरकार के साथ मिलीभगत का परिणाम है। यह जाति-आधारित आंदोलन पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और अवैध था।"
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