रायपुर: बिलासपुर स्थित गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय (GGCU) और दिल्ली-स्थित ट्राइबल रिसर्च एंड नॉलेज सेंटर (TRKC) के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता (MoU) हुआ है। इस सहयोग के तहत बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की जनजातीय समुदायों पर उन्नत शोध किया जाएगा। राज्य सरकार ने बुधवार को इसकी जानकारी दी।
सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस समझौते का उद्देश्य छत्तीसगढ़ की जनजातीय परंपराओं, सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक-आर्थिक ढाँचे का गहन अध्ययन करना है।
यह समझौता जीजीसीयू के रजिस्ट्रार प्रो. अभय एस. रांदिवे और टीआरकेसी के छत्तीसगढ़ प्रभारी राजीव शर्मा ने हस्ताक्षरित किया। आने वाले तीन वर्षों तक इस समझौते के तहत कई शोध गतिविधियाँ संचालित की जाएंगी।
राजीव शर्मा ने कहा कि टीआरकेसी देशभर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में जनजातीय अध्ययन को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है। “इस एमओयू के साथ छत्तीसगढ़ की जनजातीय समुदायों पर शोध की गति तेज होगी। यह प्राचीन परंपराओं, सामाजिक-राजनीतिक ढाँचों, स्वदेशी उद्यमिता, सतत विकास की परंपराओं और नवाचारों जैसे पहलुओं को सामने लाने में मदद करेगा,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा कि शोध के निष्कर्ष न केवल सार्वजनिक ज्ञान को समृद्ध करेंगे बल्कि जनजातीय युवाओं को उनकी गौरवशाली विरासत और सांस्कृतिक मूल्यों से भी पुनः जोड़ेंगे।
प्रो. रांदिवे ने बताया कि इस साझेदारी से संयुक्त शोध परियोजनाएँ, क्षेत्र-आधारित केस स्टडीज़ और युवाओं, प्रशासकों एवं जनजातीय हितधारकों के लिए क्षमता-विकास कार्यक्रम चलाए जाएंगे। प्रस्तावित गतिविधियों में नेतृत्व विकास कार्यशालाएँ, प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम, जनजातीय युवाओं द्वारा संचालित सामाजिक प्रभाव वाले स्टार्टअप्स और नवाचारों के लिए मार्गदर्शन सत्र तथा समुदायों के बीच जागरूकता अभियान शामिल हैं।
रांदिवे ने कहा, “इन अध्ययनों के परिणाम शैक्षिक पाठ्यक्रमों में जनजातीय मुद्दों और ज्ञान-परंपराओं को शामिल करने की नींव भी रखेंगे। इससे छत्तीसगढ़ की जनजातीय धरोहर को अकादमिक मान्यता और नया स्थान मिलेगा।”
राज्य सरकार ने कहा कि यह सहयोग छत्तीसगढ़ की आदिवासी समुदायों को एक मजबूत अकादमिक पहचान दिलाने की दिशा में अहम कदम है। साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि उनकी परंपराएँ, इतिहास और नवाचार संरक्षित हों और वैश्विक स्तर पर साझा किए जा सकें।
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