मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य के आदिवासी संगठनों को 27 मार्च के उस विवादास्पद आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दे दी है, जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिये जाने की सिफारिश भेजने का निर्देश दिया गया था।
ताजा घटनाक्रम में न्यायमूर्ति अहनथेम बिमोल और न्यायमूर्ति गुणेश्वर शर्मा की खंडपीठ ने 19 अक्टूबर को आदेश पारित किया। अदालत ने आदिवासी निकायों का रास्ता साफ करते हुए कहा, मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा देने वाले आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है। पीठ ने कहा, "आवेदक की मुख्य शिकायत यह है कि अगर उन्हें मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के मामले में अपनी बात कहने या आपत्ति दर्ज कराने का मौका नहीं दिया गया तो उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"
27 मार्च को तत्कालीन एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की सिंगल बेंच ने मैतेई जनजाति संघ की याचिका पर आदेश पारित किया था। याचिका में मांग की गई थी कि मैतेई समुदाय को ST सूची में शामिल करने के लिए उनकी याचिका पर कार्रवाई करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया जाए।
इस आदेश पर कुकी जो संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई। इसके बाद 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (ATSUM) ने एक रैली आयोजित की। रैली के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग में हिंसा हुई। इसके बाद राज्य में जातीय हिंसा फैली जिसमें अब तक कम से कम 180 लोगों की जान जा चुकी है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी संगठनों के वकील कोलिन गोंसल्वेस ने अपनी दलील में कहा कि यदि मैतेई समुदाय को गलत तरीके से अनुसूचित जाति (ST) का दर्जा मिला तो इससे अभी ST आरक्षण में शामिल जनजाति के लोगों को नौकरी और शिक्षा में नुकसान पहुंचेगा। मैतेई समुदाय राजनीतिक, शिक्षात्मक और आर्थिक रूप से प्रभावी है। ST का दर्जा मिलने से आरक्षण का पूरा फायदा इन्ही को मिलेगा।
मैतेई पक्ष के वकील एम हेमचंद्र ने बताया कि, भारतीय संविधान में शामिल करने के लिए ST सूची की तैयार करते समय मैतेई समुदाय को रिकॉर्ड होने के बावजूद छोड़ दिया गया था। मैतेई समुदाय पिछले कई सालों से ST सूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है लेकिन उसमें अभी तक सफलता नहीं मिली।
हालांकि मार्च 27 के आदेश को राज्य में जातीय विवाद का तुरंत कारण माना गया है लेकिन CM एन बिरेन सिंह का कहना है कि राज्य सरकार ने नशे, पहाड़ी इलाके में अफीम की खेती, और म्यांमार के अवैध प्रवासियों की गतिविधियों के खिलाफ अभियान चलाया। हिंसा की असली वजह वे ही लोग हैं जो इन अवैध कामों में शामिल हैं।
9 अगस्त को संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी बताया था कि पड़ोसी देश म्यांमार में अस्थिरता के कारण मणिपुर में बड़ी संख्या में कुकी लोग घुस आए हैं। इससे राज्य में हिंसा फैली है।
तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन ने 27 मार्च को आदेश पारित किया था। इस आदेश के बाद कुकी-ज़ो समुदाय के निकायों ने व्यापक आपत्ति जताई। इसके बाद 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयूएम) ने एक रैली आयोजित की। इस दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग में हिंसा हुई और यह जातीय हिंसा का कारण बन गया। खबरों के अनुसार, जातीय हिंसा में अब तक कम से कम 180 लोगों की जान जा चुकी है।
अदालत ने कहा, "मुकदमे में शामिल पक्षों की दलीलों की प्रकृति को मद्देनजर रखते हुए अपील की अनुमति दी जाती है। हाईकोर्ट के अनुसार, संबंधित रिट अपील और रिट याचिका में उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर जांच और निर्णय लेने की जरूरत है। आवेदकों की तरफ से की गई शिकायतों पर विचार किया जाना चाहिए। आवेदकों की तरफ से मांगा गया समय देने में अदालत को कोई ऐतराज नहीं है।"
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी निकायों की ओर से पेश वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने अदालत से कहा, अगर मैतेई समुदाय को गलत तरीके से एसटी का दर्जा दिया गया है, तो इससे रोजगार और शिक्षा में मौजूदा आदिवासी एसटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यहां एसटी को आरक्षण मिलता है और मैतेई समुदाय प्रमुख है। उन्होंने आरोप लगाया कि मैतेई राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से उन्नत एसटी आरक्षित सीटों में से अधिकांश पर कब्जा कर लेंगे।
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