राजस्थानः दलित युगल 'अग्नि' नहीं 'संविधान' को मानेंगे साक्षी, मूल अधिकारों की शपथ लेकर रचाएंगे शादी

दहेज न बैंडबाजा, उपहार में किताब व पौधे देने की अपील।़
एडवोकेट ममता मेघवंशी और कृष्ण वर्मा.
एडवोकेट ममता मेघवंशी और कृष्ण वर्मा.

जयपुर। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की माण्डल तहसील के सिडियास गांव के अम्बेडकर भवन में आगामी 18 मार्च को एडवोकेट दलित युगल ममता मेघवंशी और कृष्ण वर्मा की शादी होने जा रही है. इस शादी को सामाजिक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. शादी में दूल्हा और दुल्हन संविधान को साक्षी मानकर सात कदम साथ चल कर संविधान पर आधारित सात संकल्प लेंगे. बता दें ममता ख्यात दलित सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी की बेटी हैं।

यह शादी प्रेम, करुणा, स्नेह और उदारता तथा न्याय व समानता के साथ पर्यावरण का संदेश भी देगी. शादी में दहेज की जगह दुल्हा-दुल्हन को किताबें व पौधे उपहार में दिए जाएंगे। नया समाज रचने के संकल्प के साथ समस्त चराचर के जीव जंतुओं, पशु पक्षियों, नदी पर्वतों, पर्यावरण को संरक्षित करने का भी संकल्प लिया जाएगा.

अग्नि को साक्षी मानकर फेरे होंगे न डीजे की धुन पर शोर शराबा होगा. केवल पाणिग्रहण संस्कार बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर और डॉक्टर शारदा कबीर की शादी के अनुरूप होगा, जिसे भंते डॉक्टर सिद्धार्थ वर्धन सम्पन्न करवाएंगे. पाणिग्रहण संस्कार के दौरान भंते डॉ. सिद्धार्थ मंगल सुत पढ़ेंगे. पाणिग्रहण के बाद दूल्हा-दुल्हन पौधारोपण कर पर्यावरण का संदेश देंगे।

यह दूसरी शादियों से अलग कैसे?

लेखक व सामजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने द मूकनायक को बताया कि मेरी बेटी की शादी दहेज, प्रदूषण, परंपरा रहित है. सामान्यता शादियों में मुहूर्त निकाला जाता है। लगन लिखे जाते हैं। हल्दी, चंदन व मेहंदी की रस्म होती है. आजकल प्री वेडिंग शूट भी होता है. बारात आती है. दूल्हा तलवार से तोरण मारता है. फिर उसके बाद फेरे होते हैं। देवी-देवताओं के यहां जाकर प्रणाम या नमन करने की परंपरा है. दहेज का प्रदर्शन कर विदाई होती है. मेरी बेटी की शादी में ऐसा कुछ नहीं होगा।

मेघवंशी ने आगे कहा- "बात यहीं नहीं रुकती, दुल्हा घोड़ी पर बैठकर बिंदोली निकालता हैं. तेज आवाज में डीजे साउंड बजाते हैं. इस शादी में डीजे साउंड सिस्टम से बचा जाएगा. क्योंकि इन दिनों एक तो परीक्षाएं चल रही हैं. दूसरा लोगों के स्वास्थ्य को लेकर भी साउंड सिस्टम खतरनाक हो सकता है. इसलिए इससे बचेंगे. यह विवाह विशेष अधिनियम के तहत होगा. इसे कानूनी शादी भी कह सकते हैं. "

कौन से हैं वो सात संकल्प ?

इस शादी में दुल्हा-दुल्हन एक कदम पर एक संकल्प लेंगे। इसी तरह सात कदम साथ चलकर सात संकल्प लेंगे। दुल्हा-दुल्हन पहले कदम पर संकल्प लेंगे-'आज हम अपने परिजनों व प्रियजनों के समक्ष भारत के संविधान को साक्षी मानकर यह संकल्प लेते हैं कि आज से हम परस्पर एक दूसरे के जीवन के पूरक के रूप में सहभागी होंगे।'

दूसरे कदम पर- 'हम संकल्प लेते हैं कि हमारी यह सहभागिता आपसी विश्वास और बराबरी पर आधारित होगी। हम एक दूसरे के व्यक्तित्व का मैत्री भाव से सम्मान करते हुए जीवन विकास की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे।'

तीसरे कदम पर- 'हम संकल्प लेते हैं अपने सह जीवन के समस्त दायित्वों का निर्वाह पूर्ण निष्ठा से करेंगे। हमारा सहभागी जीवन देश, दुनिया और समाज की बेहतरी के लिए समर्पित रहेगा। हम संकल्प लेते हैं हमारा आचरण भारत के संविधान के सार्वजनिक मूल्यों, न्याय, समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के अनुरूप होगा। हम एक दूसरे को पूरा मान सम्मान प्रतिष्ठा व गरिमा देंगे।'

चौथे कदम पर- 'हम संकल्प लेते हैं सुस्नेह, सद्भाव, मैत्री व सहयोग के भाव से धरती के सभी प्राणियों, प्रकृति, पर्यावरण व परिस्थिति का संरक्षण व संवर्धन व सम्मान करेंगे। तथा समस्त जीव जंतुओं, पशु पक्षियों, नदियों, तालाबों, पर्वतों, समुद्रों के प्रति मैत्री भाव रखेंगे।'

पाचवां कदम पर - 'हम संकल्प लेते हैं जीवन में कठिन परिस्थितियों, नकारात्मकता, निराशा व संघर्ष के क्षणों का हम पूर्ण धेर्य, करुणा, उदारता व समझदारी के साथ सामना करेंगे। एक दूसरे का संबल बनेंगे।'

छठे कदम पर -'हम संकल्प लेते हैं समय के साथ अगर हमारे रिश्तों में कोई बदलाव आया तो भी हम एक दूसरे का सम्मान करेंगे। एक साथ बिताए समय को मैत्री, सद्भाव व संतुष्टि से देखेंगे। किसी भी परिस्थिति से निकलने में एक दूसरे की मदद करेंगे।'

सातवें कदम पर- 'हम संकल्प लेते हैं हम तथागथ गौतम बुद्ध, संत कबीर, रामसा पीर, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई, फातिमा शेख, बाबा साहब अंबेडकर, भगत सिंह, और महात्मा गांधी जैसे हमारे पुरखों व पुरखिनों की प्रेरणा अपने पूर्वजों व प्रकृति के संबल से आप सब की उपस्थिति में यह संकल्प लेते हैं।'

इन संकल्पों के क्या मायने है?

भावी दुल्हन ममता मेघवंशी ने कहा कि यह संकल्प संवैधानिक मूल्यों पर आधारित है. बराबरी, आपसी विश्वास, एक दूसरे को इज्जत व गरिमा देने पर आधारित है. इसमें लिंग व उम्र के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है. यह समाज में सांस्कृतिक बदलाव है.

ममता ने आगे कहा- "आम तौर पर शादी में अग्नी को साक्षी मानकर सात फेरे लिए जाते हैं. आधे समय फेरों में लडका आगे होता है। फिर लडकी. पंडित मंत्र बोलते हैं, वो लिंगभेद दर्शाते हैं। उनमें ज्यादातर ऐसे हैं, जो लड़की को कम व पुरुष को अधिक महत्व देते है. लडकी को यह वादा करना होता है कि वो हर काम पति की मर्जी से करेगी. सारी संपति की पति होगी. हमने फेरे के बजाय हर कदम पर संकल्प लेने की बात कही है. हम ऐसा करके किसी का विरोध नहीं कर रहे है. बल्कि अपनी नई दुनिया की संस्कृति रच रहे हैं. इस दुनिया में सबके लिए जगह है."

ममता आगे कहती हैं- "मैं राजस्थान के मेवाड़ इलाके से हूूं। यहां आज भी बेटी को समाजिक परंपराओं की जंजीरों से जकड़ दिया जाता है। मेरा मानना है कि जब में मांग भरूं तो लड़का क्यों नहीं भर सकता। मैंने पढ़ाई के दौरान यह निर्णय कर लिया था कि इस तरह की परंपरा वाली शादी नहीं करूंगी। मेरे पिता ने इसमें मेरा साथ दिया है। समाज रियल लाइफ को भूल रील लाइफ में जीना चाहता है."

वहीं एवोकेट कृषण वर्मा ने द मूकनायक से कहा कि मेरा सपना था कि में आडंबर वाद से अलग हट कर शादी करूं. इसके लिए मेरे परिवार ने सपोर्ट किया. दुल्हन का परिवार संवैधानिक मूल्यों को मानता है. इसलिए हमने विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने का निर्णय लिया. हम शिक्षित होंगे तो आडंबर से बाहर निकल कर संविधान के दायरे में जीवन यापन के तौर-तरीके सीखेंगे. शादी में पैसा खर्च करना अमीरों का शौक बन गया है. गरीब भी इनकी होड कर बर्बाद हो रहा है. गरीब भी सादगी से शादी कर बर्बादी से बच सकते हैं. इस लिए हमने इस तरह शादी करने का निर्णय लिया है. दो लोग सहमति से साथ निभाना चाहते हैं। यह शादी का मतलब है।

शादी से समाज को संदेश?

लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी कहते हैं कि किसी धार्मिक आडंबर या पारलौकिक ताकतों से डरकर के जीवन जीने की जरूरत नहीं है. यह आपके जीवन का निर्णय है. अपनी समझदारी से लेवें. संविधान को जिंदगी में सर्वोपरि माना जाए. इस शादी के पीछे यह भाव है. आज संविधान पर खतरा है. जिन्हें संविधान ने इंसान का दर्जा दिया, उन्हें संविधान का मूल्य समझना चाहिए. कानून का समाज बने. बिना दहेज किए परंपरा रहित संविधान के संकल्प के साथ जीवन में एक साथ रहने की शुरुआत करें. भारत का संविधान यह इजाजत देता है.

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