क्या आज़ादी के 75 साल बाद भी दलितों को पानी लेने के लिए इजाज़त चाहिए? मद्रास हाईकोर्ट ने बताया देश का कड़वा सच!

मद्रास हाईकोर्ट ने जातिगत भेदभाव पर कड़ा रुख अपनाते हुए टेंकासी प्रशासन को पानी के समान वितरण और दलितों के साथ हो रहे अन्याय को रोकने के निर्देश दिए।
मद्रास हाईकोर्ट: पानी के लिए दलितों को इंतजार कराना शर्मनाक, टेंकासी प्रशासन को दिए सख्त निर्देश
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि, पानी के लिए दलितों को इंतजार कराना शर्मनाक, टेंकासी प्रशासन को दिए सख्त निर्देश
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चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी भरने में अनुसूचित जाति समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि यह "वैज्ञानिक युग में भी चौंकाने और दुखद" है कि कुछ समुदायों को अभी भी अपने हक के पानी के लिए इंतजार करना पड़ता है।

न्यायमूर्ति आर. एन. मंजुला ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी कुछ समुदायों को दूसरे समुदायों के बाद ही सार्वजनिक संसाधनों तक पहुंच मिलती है, जबकि संविधान और कानून सभी नागरिकों को समान अधिकार देते हैं।

न्यायालय ने कहा, “पानी जैसी प्राकृतिक संपदा सभी के लिए है। यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ समुदायों को अपनी बारी के लिए खड़ा रहना पड़ता है। क्या हम सब एक ही मानव समाज का हिस्सा नहीं हैं?”

‘प्रशासन मूकदर्शक नहीं रह सकता’

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि भले ही जाति और वर्ग आधारित मानसिकता को जड़ से खत्म करना आसान नहीं है, लेकिन जो लोग सत्ता और प्रशासनिक जिम्मेदारी में हैं, वे मूकदर्शक नहीं बने रह सकते।

कोर्ट ने कहा, “प्रशासन में बैठे लोग यदि इन घटनाओं पर चुप रहते हैं, तो वे भी इस संकीर्ण मानसिकता में भागीदार माने जाएंगे। हमें दिखावे की नहीं, बल्कि व्यावहारिक और शांतिपूर्ण कार्रवाई की ज़रूरत है।”

न्यायालय ने पानी को ‘जीवन का अमृत’ बताते हुए कहा कि किसी भी नागरिक, विशेषकर बुजुर्ग महिलाओं को पीने के पानी के लिए जीवनभर संघर्ष नहीं करना चाहिए।

मामले का विवरण

यह टिप्पणियां उस वक्त की गईं जब न्यायालय थिरुमलाईसामी नामक एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने टेंकासी की जिला सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा को निलंबित करने और जमानत देने की मांग की थी।

थिरुमलाईसामी को अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1)(r) के तहत दोषी पाया गया था। आरोप था कि 3 दिसंबर 2016 को उसने खेत में काम कर रहे दो लोगों को जातिसूचक गालियां दीं और जान से मारने की धमकी दी। उसे एक वर्ष के कठोर कारावास और ₹1,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि घटना सार्वजनिक दृश्य में नहीं हुई थी, इसलिए अधिनियम की धाराएं लागू नहीं होतीं। शिकायतकर्ता (एक 65 वर्षीय महिला) ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यदि थिरुमलाईसामी को जमानत दी गई, तो वह उसे पानी भरने तक में असुविधा और भय का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उसे उसके घर के पास से गुजरना पड़ता है।

थिरुमलाईसामी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह शिकायतकर्ता के सामने नहीं आएगा, न ही किसी प्रकार की धमकी या इशारा करेगा।

कोर्ट ने यह देखते हुए कि अपील की सुनवाई शीघ्र संभव नहीं है और याचिकाकर्ता ने कोई खतरा उत्पन्न न करने का वादा किया है, उसे जमानत दे दी और उसकी सजा को निलंबित कर दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता प्रत्येक माह न्यायालय में हाजिर हो।

भेदभाव समाप्त करने के लिए कोर्ट के निर्देश

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि 65 वर्षीय शिकायतकर्ता को पीने का पानी लेने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस पर कोर्ट ने टेंकासी के जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि गांव में जातीय आधार पर पानी वितरण में कोई भेदभाव न हो।

कोर्ट ने अधिकारियों को निम्नलिखित आदेश दिए:

  • सभी गलियों में पर्याप्त जल कनेक्शन और जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

  • जल वितरण में किसी भी समुदाय को प्राथमिकता न दी जाए।

  • कोई भी व्यक्ति या समूह अत्यधिक मात्रा में पानी न ले जिससे दूसरों को कठिनाई हो।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जल जैसी सार्वजनिक संपदा पर सभी नागरिकों का समान अधिकार है और इस अधिकार की रक्षा करना प्रशासन की जिम्मेदारी है।

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