नई दिल्ली – दलित साहित्य और किताबों में रूचि रखने वालों के इंतज़ार की घड़ी अब समाप्त होने वाली है. चौथा दलित साहित्य महोत्सव (DLF) 28 फरवरी और 1 मार्च को आर्यभट्ट कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (साउथ कैंपस) में आयोजित किया जाएगा। इसे अंबेडकरवादी लेखक संघ (ALS) द्वारा आर्यभट्ट कॉलेज, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (DASAM) और कई अन्य संगठनों के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। यह महोत्सव दलित साहित्य की परिवर्तनकारी शक्ति को प्रदर्शित करने और सामाजिक न्याय, समानता व मानवाधिकारों पर समकालीन विमर्श को आगे बढ़ाने का मंच प्रदान करेगा।
इस वर्ष के महोत्सव की थीम “दलित साहित्य के माध्यम से विश्व शांति संभव है” रखी गई है। यह थीम दलितों, महिलाओं, आदिवासी समुदायों और LGBTQIA+ व्यक्तियों द्वारा सहे जा रहे सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों को उजागर करने और दलित साहित्य की भूमिका को स्थापित करने पर केंद्रित होगी। साथ ही यह महोत्सव पर्यावरणीय चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन, इतिहास, सिनेमा, कविता, संगीत और साहित्य जैसे विषयों पर भी विचार-विमर्श करेगा।
महोत्सव के संस्थापकों के अनुसार, “आज का विश्व संघर्षों से जूझ रहा है, ऐसे में यह थीम यह दर्शाने का प्रयास करेगी कि साहित्य संघर्ष समाधान और शांति निर्माण का एक सशक्त माध्यम हो सकता है। दलित साहित्य, विशेष रूप से, शांति को बढ़ावा देने, रूढ़ियों को तोड़ने और हाशिए पर मौजूद समुदायों की गहरी समझ विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।”
चौथे दलित साहित्य महोत्सव में निम्नलिखित गतिविधियाँ आयोजित की जाएँगी:
पैनल चर्चाएँ, जिनमें प्रमुख दलित विद्वान, कार्यकर्ता और लेखक भाग लेंगे।
शोध पत्र प्रस्तुतियाँ, जो जातिगत भेदभाव, सामाजिक न्याय और बहुस्तरीय मुद्दों पर केंद्रित होंगी।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, जो दलित और आदिवासी समुदायों की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करेंगी।
पुस्तक प्रदर्शनी, जिसमें प्रभावशाली दलित साहित्यिक कृतियों को शामिल किया जाएगा।
कला प्रदर्शनी, जो प्रतिरोध, पहचान और सशक्तिकरण को दर्शाएगी।
यह महोत्सव लम्बे समय से चली आ रहे सामाजिक अन्याय और भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त मंच प्रदान करता है, जहाँ हाशिए के समुदायों की आवाज़ को मान्यता और स्थान मिलेगा। साहित्य, कला और चर्चा के माध्यम से, यह मानव चेतना को जागृत करने और अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज की ओर सामूहिक प्रयासों को प्रेरित करने का कार्य करेगा।
यह महोत्सव डॉ. भीमराव अंबेडकर के उस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उन्होंने हाशिए पर मौजूद समुदायों को सशक्त और समानता प्रदान करने की बात की थी। दलितों के संघर्ष और प्रतिरोध की कहानियों को मुखर करते हुए, यह महोत्सव न केवल उनकी उपलब्धियों का उत्सव मनाएगा बल्कि साहित्य के माध्यम से इतिहास में उनका स्थान पुनः स्थापित करेगा।
आयोजकों ने बताया कि, “आज के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में इस महोत्सव का महत्व अत्यंत गहरा है। दलित साहित्य केवल कहानियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अस्तित्व, अभिव्यक्ति और पहचान का एक संघर्ष भी है। यह महोत्सव दलित समुदायों की दृढ़ता और उनके न्याय व सम्मान की अडिग माँग का प्रतीक है।”
जैसे-जैसे जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, आदिवासी और LGBTQIA+ समुदायों के अधिकारों जैसे मुद्दे प्रमुख होते जा रहे हैं, दलित साहित्य महोत्सव सशक्तिकरण, संवाद और जागरूकता के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। यह आयोजन छात्रों, विद्वानों, कार्यकर्ताओं, कलाकारों और साहित्य प्रेमियों को सार्थक चर्चाओं में भाग लेने और सामाजिक परिवर्तन के इस अभियान में योगदान देने के लिए आमंत्रित करता है।
चौथा दलित साहित्य महोत्सव केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह न्याय, समानता और वैश्विक शांति की दिशा में एक सशक्त आंदोलन है।
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