MP: मासूम से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के दोषी को हाईकोर्ट से फांसी में राहत, 25 साल कैद में बदली सजा

हाईकोर्ट ने कहा— अपराध जघन्य है, लेकिन आरोपी की सामाजिक पृष्ठभूमि को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
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सांकेतिक तस्वीरफोटो साभार- इंटरनेट
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भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने एक बेहद संवेदनशील और बहुचर्चित फैसले में 4 वर्षीय मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के दोषी राजकुमार उर्फ राजाराम की फांसी की सजा को 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ ने सुनाया।

कोर्ट ने माना कि यह अपराध बेहद जघन्य और निर्मम है, लेकिन दोषी की सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उसे सुधार का एक अवसर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए सजा में बदलाव किया।

पूरा मामला क्या था?

यह घटना मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की है। 30 और 31 अक्टूबर 2022 की रात को एक चार वर्षीय बच्ची अपने घर से सोते वक्त गायब हो गई थी। परिजनों की तलाश के बाद बच्ची अगले दिन एक सुनसान आम के बाग में मरणासन्न अवस्था में मिली। उसके शरीर पर गंभीर चोटें थीं और गले पर दबाव के निशान थे।

बच्ची को तुरंत अस्पताल ले जाया गया और हालत गंभीर होने पर इंदौर के बाम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया। मेडिकल जांच और डीएनए रिपोर्ट से यह साफ हुआ कि बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ था और आरोपी राजकुमार उर्फ राजाराम की भूमिका इसमें साबित हुई।

पाक्सो कोर्ट ने सुनाई थी फांसी

खंडवा स्थित विशेष पाक्सो अदालत ने 21 अप्रैल 2023 को आरोपी को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ यानी दुर्लभतम मामलों में गिना और कहा कि समाज को संदेश देने के लिए कड़ी सजा जरूरी है।

इसके बाद मामला हाईकोर्ट में आया, जहाँ फांसी की सजा की पुष्टि के लिए सुनवाई हुई। साथ ही आरोपी की ओर से इस फैसले को चुनौती भी दी गई।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि बच्ची से बलात्कार कर उसका गला घोंटना और फिर उसे सुनसान स्थान पर फेंक देना निस्संदेह क्रूर और नृशंस कृत्य है। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि— "दोषी 20 वर्षीय आदिवासी युवक है। वह निरक्षर है और उसका पालन-पोषण बेहद कठिन परिस्थितियों में हुआ। बचपन से ही उसे परिवार का सहारा नहीं मिला और जीविका के लिए उसे ढाबे में काम करना पड़ा। वहां भी उसे उचित वातावरण नहीं मिला। समाज और व्यवस्था की असफलता ने उसे इस स्थिति में पहुँचाया।"

कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में फांसी की सजा उचित नहीं है और उसे 25 साल के कठोर कारावास की सजा दी जाती है।

डीएनए रिपोर्ट बनी मुख्य आधार

इस मामले में आरोपी के खिलाफ कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था। लेकिन डीएनए रिपोर्ट ने इस अपराध में उसकी भूमिका की पुष्टि की। राज्य सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि डीएनए एक वैज्ञानिक और विश्वसनीय साक्ष्य है, जो यह साबित करता है कि बलात्कार आरोपी ने ही किया।

आरोपी पर लगे थे ये आरोप

IPC धारा 376AB – 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची से बलात्कार का आरोप।

IPC धारा 307 – हत्या के प्रयास की गंभीर धारा।

IPC धारा 363 और 366 – बच्ची का अपहरण और उसे जबरन ले जाने से संबंधित आरोप।

POCSO एक्ट की धारा 5 और 6 – नाबालिग के साथ गंभीर यौन अपराध से जुड़ी धाराएं।

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