बाल यौन शोषण: बढ़ जाती है पीड़ा जब अपने ही देते हैं उम्र भर का गम

बाल यौन शोषण: बढ़ जाती है पीड़ा जब अपने ही देते हैं उम्र भर का गम

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने हाल ही में एक चौंकाने वाले बयान में कहा कि बचपन में वह अपने पिता द्वारा यौन उत्पीड़न और मारपीट की शिकार हुई। मालीवाल ने कहा कि वह इतनी डर गई थी कि अक्सर वह बिस्तर के नीचे छिप जाती थीं और यह सोचती थी कि वह कैसे इस तरह के लोगों को सज़ा दिलाए।

दर्द का रिश्ता, मेरी जंग सरीखी हिंदी फिल्मों में काम कर चुकी ख्यातिनाम अदाकारा और राष्ट्रीय महिला महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुंदर ने भी हाल में एक सनसनीखेज़ खुलासे में बताया कि 8 बरस की उम्र में उसके अपने पिता ने उसका यौन उत्पीड़न किया और किसी को यह बात बताने पर मां और भाईयों को जान से मारने की धमकी दी।

वर्ष की शुरुआत में हैदराबाद की एक 14 वर्षीय लड़की ने अपनी स्कूल टीचर को बताया कि 2013 में उसकी मां के गुजर जाने के बाद पिता ने उसका कई बार बलात्कार किया। टीचर को ज्ञात हुआ कि किशोरी गर्भवती है, तो उसने पुलिस को शिकायत की जिसके बाद 45 वर्षीय आरोपी पिता को गिरफ्तार किया गया।

स्वाति और खुशबू सरीखी सशक्त और सफल महिलाओं को भी जब स्वयं के साथ बचपन में हुई यौन हिंसा की बात सार्वजनिक करने में बरसों लग गए तो सोचिए कि देश की आम लड़कियों और महिलाओं का क्या हाल होता होगा जो लोक-लाज, समाज के भय और परिवार के दबाव के चलते अपने साथ हुई ज्यादतियों के बारे में बोल भी नहीं पाती हैं।

देश में बाल यौन शोषण के मामले दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं। अधिकांश मामलों में देखा गया है की अपराध करने वाले बच्चों के जानकार या परिवार/पड़ोस के लोग ही होते हैं। किशोरियों के साथ होने वाले यौन अपराधों में अक्सर कई मामलों में पिता सहित निकटवर्ती पुरुष रिश्तेदार जैसे मामा, चाचा, फूफा, ममेरे-चचेरे, मौसी और बुआ के बच्चे आदि आरोपी के रूप में सामने आए हैं। कई बार ये दुर्व्यवहार मज़ाक में होता है तो कई बार सुधार या अनुशासन के नाम पर किया जाता है।

राजस्थान के उदयपुर जिले में कुछ वर्षों पूर्व एक किशोरी द्वारा अपने 75 वर्षीय दादा के ऊपर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे।

बच्चों खासकर बालिकाओं के साथ यौन शोषण के मामलों में काफी इजाफा हुआ है। एक सर्वे के मुताबिक हर 20 में से एक बच्चा किसी न किसी रूप में यौन शोषण अथवा छेड़छाड़ का शिकार होता है। बच्चे ना तो अपने बड़ों द्वारा किये इस घिनौने कृत्य का प्रतिरोध कर पाते हैं ना ही उनमें यौन चेतना का समुचित विकास होता है जिसकी वजह से ऐसे बच्चे आरोपियों के लिए आसान शिकार यानी सॉफ्ट टारगेट साबित होते हैं। कई मामलों में बालिकाओं द्वारा अपने पिता, मामा या चाचा आदि के दुर्व्यवहार की शिकायत मां को की भी जाती है तो माएँ बेटियों को ही डपटकर चुप करवा देती हैं जिससे अपराधियों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं।

कानूनी तौर पर बाल यौन शोषण गंभीर श्रेणी का अपराध माना गया है। जब किसी बच्चे के साथ शारीरिक रूप से गलत व्यवहार किया जा रहा हो या किया जा चुका हो, इसमें बच्चों को गलत तरीके से छूने, उसके साथ यौन संबंध बनाने या गलत हरकत करना अपराध में शामिल किया गया हैं।

बालमन पर पड़ता है दीर्घकालिक गहरा असर

इस मामले पर द मूकनायक ने मनोचिकित्सक डॉ. ओम प्रकाश से बात की। उन्होंने बताया कि बचपन में किसी बच्चे के साथ हुआ यौन शोषण ना केवल उसके बालमन पर बुरा प्रभाव डालता है बल्कि इसके असर दीर्घकालिक होते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होने के बाद भी कई बार सामान्य और सहज नहीं हो पाते। उनकी मानसिक स्थिति पहले जैसी नहीं होती है, और ना ही वह किसी से खुलकर कह पाता है।

डॉ. ओमप्रकाश कहते हैं कि मां-बाप को अपने बच्चों का व्यवहार का ध्यान रखना चाहिए। ज्यादातर केसों में यह देखा गया है कि बच्चों का शोषण करने वाले लोग उनके अपने ही होते हैं. पर यह सभी घटनाएं इसलिए ज्यादा हो जाती हैं क्योंकि ज्यादातर लोग इन बातों को छुपा कर रखते हैं। इस बात को सबके सामने नहीं लाना चाहते है, बच्चों का शोषण करने वाले अपने ही होते हैं तो समाज के भय से परिवार में इस बात को रफा-दफा करना चाहते हैं। पर वह यह नहीं जानते कि बच्चों पर इसका क्या असर होता है? बच्चों के शोषण के बाद बच्चों पर इसका असर कैसे पड़ता है? ओमप्रकाश कहते हैं कि यह सब कुछ बच्चे के बचपन को तो खराब कर ही देता है. पर इसके भविष्य को भी विनाश में धकेल देता है. आगे चलकर वे कई तरह से प्रभावित होते हैं, कुछ बच्चे गुस्सैल नशा करने वाले आदि बन जाते हैं।

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खतरनाक है चुप्पी की संस्कृति- डी वाई चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने बीते दिनों किशोर न्याय व बाल संरक्षण पर दो दिवसीय राष्ट्रीय हितधारक परामर्श के उद्घाटन समारोह में अपने उद्बोधन में बताया कि दुनियाभर में बच्चे शारीरिक, भावनात्मक और यौन हिंसा के मूक शिकार हैं और भारत इस घटना के लिए कोई अपवाद नहीं है. 2012 में यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम अधिनियम का अधिनियमन भारत में बाल अधिकारों के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि इसने अंततः बच्चों के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता देते हुए बच्चों से संबंधित यौन अपराधों के फैसले के लिए एक विशेष तंत्र प्रदान किया। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बाल यौन शोषण के बारे में चुप्पी की संस्कृति उन मौजूदा स्थितियों पर चिंता जताई जहां सामाजिक कलंक के कारण पॉक्सो के मामलों की रिपोर्ट नहीं की जाती है। चंद्रचूड़ ने कहाकि पीड़ित बच्चों के परिवार पुलिस में शिकायत दर्ज कराने में बहुत हिचकिचाते हैं, इसलिए हमें पुलिस को अत्यधिक शक्तियां सौंपने के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए. आपराधिक न्याय प्रणाली की धीमी गति निस्संदेह इसके कारणों में से एक है, लेकिन अन्य कारक भी इसमें खेलते हैं. साथ ही एक महत्वपूर्ण भूमिका है कि बच्चों के यौन शोषण से संबंधित मुद्दे अत्यधिक कलंक से ग्रस्त हैं।

बाल शोषण रोकने के लिए कुछ उपाय

बाल यौन शोषण को रोकने के लिए बच्चों को किसी भी गैर-जिम्मेदार व्यक्ति के संपर्क में आने से बचाना चाहिए. बाल यौन शोषण को रोकने के लिए अभिभावकों को अपने बच्चे की हर बात को ध्यान से सुनना चाहिए और उस पर गौर करना चाहिए. उसकी बातों पर भरोसा करना जरूरी है।

अभिभावकों का बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार आवश्यक है ताकि बच्चा उनसे कोई भी बात शेयर करने में हिचकिचाएं नहीं. यौन शोषण की जानकारी मिलने पर मामले को रफा दफा करने की बजाय इसकी शिकायत पुलिस में जरूर करवानी चाहिए ताकि वह व्यक्ति किसी दूसरे बच्चे के साथ ऐसा न कर पाएं।

बाल अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनी प्रावधान

बाल अधिकारों की रक्षा के लिये ‘संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार कन्वेंशन (CRC)’ एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो सदस्य देशों को कानूनी रूप से बाल अधिकारों की रक्षा के लिये बाध्य करता है।

बालक-बालिकाओं के विरुद्ध अपराध प्रोटेक्टशन ऑफ चिल्ड्रन अगेन्स्ट सेक्सुयल ऑफेंस (POCSO) अधिनियम 2012 के तहत दर्ज किए जाते हैं। ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित की गई हैं।

यह कानून बाल यौन शोषण के इरादों को भी अपराध के रूप में चिह्नित करता है तथा ऐसे किसी अपराध के संदर्भ में पुलिस, मीडिया एवं डॉक्टर को भी दिशानिर्देश देता है।

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