राजस्थानः हाईकोर्ट परिसर में मनु की मूर्ति हटेगी या रहेगी, सुप्रीम कोर्ट ने दिया यह निर्णय

जयपुर हाईकोर्ट में लगी मनु की मूर्ति हटाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज, याचिकाकर्ताओं ने कहा-अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जाएंगे
राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर (जयपुर बेंच) में स्थापित मनु की प्रतिमा
राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर (जयपुर बेंच) में स्थापित मनु की प्रतिमा

जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर (जयपुर बेंच) में स्थापित मनु की प्रतिमा को हटाए जाने संबंधी एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों खारिज कर दिया। अब याचिकाकर्ता प्रकरण को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ले जाने की तैयारी में जुट गए है।

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाले एडवोकेट चेतन बैरवा ने कहा है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जयपुर में लगी मनु की मूर्ति को हटाने की जनहित याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है। लिहाजा अब वह इस मामले को मानव अधिकारों के हनन का मामला मानते हुए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाएंगे जो कि होलैंड की राजधानी हेग में है। वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ का हिस्सा है।

आपको बता दें कि राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के निवासी रामजीलाल बैरवा, जगदीश प्रसाद गृर्जर व जितेंद्र कुमार मीणा ने 13 जनवरी 2023 को एडवोकेट चेतन बैरवा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर जयपुर शहर स्थित हाईकोर्ट परिसर में लगी मनु की प्रतिमा हटाने की मांग की थी।

न्यायाधीशों ने यह कहा

जस्टिस संजय खन्ना व जस्टिस एमएम सुन्द्रेश ने गत 24 फरवरी को अपने आदेश में कहा कि हमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका के रूप में वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने का कोई अच्छा आधार और कारण नहीं मिला और इसलिए, रिट याचिका खारिज की जाती है। इसके अलावा लंबित आवेदन, यदि कोई हो, का निस्तारण किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने कहा

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिट में बताया गया था कि हाईकोर्ट जयपुर परिसर में लगी मनु की मूर्ति भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा और न्याय के खिलाफ है। यह संविधान में दिए भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ भी है।

एक याचिकाकर्ता जगदीश प्रसाद गृर्जर ने द मूकनायक से कहा कि संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ लगी मनु की प्रतिमा हटाने की मांग बिना सुनवाई के खारिज कर दी गई। यह मानव अधिकारों से जुड़ा मामला है। ऐसे में अब वह अंतरराष्ट्रीय न्यायलय तक जाएंगे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक जाने से सम्बंधित कानून व नियमो की जानकारी होने से इनकार करते हुए कहा कि हम हमारे वकील के माध्यम से न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले एडवोकेट चेतन बैरवा ने याचिका में मनु की मूर्ति को न केवल संविधानविरोधी बताया बल्कि इसे नफरत का संदेश देने वाली भी बताया था।

आपत्तिजन श्लोकों का दिया हवाला

याचिका में एडवोकेट ने मनु स्मृति के कई श्लोकों का हवाला देते हुए यह साबित करने का प्रयास किया कि मनु स्मृति के रचियता मनु की मूर्ति ना केवल अनुसूचित जाति व जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगांे के खिलाफ है, बल्कि यह क्षत्रिय, वैश्य और महिलाओ के खिलाफ भी है। याचिका में एडवोकेट बैरवा ने यह आरोप भी लगाया था कि मनु की वर्ण व्यवस्था के कारण ही भारतीय समाज पूर्व में छिन्न भिन्न हुआ है और आज भी हो रहा है। मनु की वर्ण व्यवस्था के कारण ही धर्म परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।

हाईकोर्ट में ही होगी सुनवाई

ज्ञात रहे कि तीन दशक पूर्व प्रतिमा स्थापना के बाद से ही अंबेडकरवादी एवं कई दलित समूह इस मूर्ति को हाईकोर्ट परिसर से हटाने की मांग करते आए हैं। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश संजीव खन्ना और एम एम सुंदरेश की बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसी आशय की एक समान याचिका हाई कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में याचिकाकर्ता को संबंधित हाईकोर्ट को ही एप्रोच करना चाहिए।

1989 से चल रही प्रतिमा हटाने की मांग

फरवरी 1989 में राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ के परिसर में इसकी स्थापना के बाद से मनु की 11 फीट ऊंची मूर्ति विवादों में रही है। राज्य की उच्च न्यायपालिका के अधिकारियों के संघ के तत्कालीन अध्यक्ष पदम कुमार जैन के आग्रह पर जस्टिस एनएम कासलीवाल के कार्यकाल में उक्त प्रतिमा को लगाया गया था। हालाँकि इसके उद्घाटन के महीनों के भीतर उच्च न्यायालय द्वारा एक प्रशासनिक आदेश जारी किया गया था, जिसमें इसे हटाने का निर्देश दिया गया था।

उसके बाद हुए घटनाक्रम में विश्व हिंदू परिषद के नेता द्वारा प्रतिमा की रक्षा के लिए एक जनहित याचिका लाए जाने के बाद उच्च न्यायालय ने अपने ही आदेश पर रोक लगा दी। यह जनहित याचिका कथित तौर पर उच्च न्यायालय में सबसे पुरानी लंबित रिट याचिका है। आखिरी बार अदालत ने मामले की सुनवाई 2015 में की थीा जब ब्राह्मण वकीलों के एक गुट द्वारा किए गए प्रदर्शनों के कारण कार्यवाही कथित रूप से बाधित हुई थी। गौरतलब है कि 1989 में इस प्रतिमा की स्थापना के बाद से ही दलित और जाति विरोधी नागरिक समाज संगठनों की मूर्ति को हटाने की मांग की जा रही है।

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