कुम्हेर हत्याकांड: जातीय हिंसा के 9 दोषियों की सजा पर रोक, जानिए हाईकोर्ट ने क्यों दिया ऐसा आदेश?

इससे पूर्व जून 1992 में हुए कुम्हेर हत्याकांड मामले में भरतपुर की एससी-एसटी मामलों की विशेष अदालत ने 30 सितंबर 2023 को लख्खो, प्रेम सिंह, मान सिंह, राजवीर, प्रीतम, पारस जैन, चेतन, शिव सिंह उर्फ शिब्बो व गोपाल को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
एससीएसटी न्यायालय परिसर में दोषी व अन्य। (फाइल फोटो)
एससीएसटी न्यायालय परिसर में दोषी व अन्य। (फाइल फोटो)

जयपुर। राजस्थान के भरतपुर जिले के बहुचर्चित कुम्हेर कांड में हाईकोर्ट ने 16 दलितों की हत्या के 9 दोषियों की उम्रकैद की सजा निलंबित कर उन्हें रिहा करने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट की जयुपर बेंच के जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने गत बुधवार को सभी दोषियों की अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए।

इससे पूर्व जून 1992 में हुए कुम्हेर हत्याकांड मामले में भरतपुर की एससी-एसटी मामलों की विशेष अदालत ने 30 सितंबर 2023 को लख्खो, प्रेम सिंह, मान सिंह, राजवीर, प्रीतम, पारस जैन, चेतन, शिव सिंह उर्फ शिब्बो व गोपाल को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।  

हत्या के दोषी ठहराए गए अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में अपील कर भरतपुर की एससी-एसटी मामलों की विशेष अदालत के 30 सितंबर 2023 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कोर्ट ने उन्हें कुम्हेर हत्याकांड में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

यह बनाया रिहाई का आधार 

अभियुक्तों की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर कहा गया था कि उनका नाम एफआईआर में नहीं था। जिन तीन दोषियों के नाम चार्जशीट में आए थे। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है। अनुसंधान के दौरान शिनाख्त परेड नहीं हुई थी और ऐसे में उनकी पहचान नहीं हुई है। मामले के अधिकतर गवाह पक्षद्रोही (Hostile) हो गए थे और गवाहों ने क्रॉस परीक्षण में माना कि उन्होंने प्रार्थी अभियुक्तों को पहली बार देखा था।

ऐसे में हजारों लोगों की भीड़ में उन्हें पहचानना और उनके नाम पहली ही बार में पता चलना संदेहपूर्ण है। प्रार्थी मामले की ट्रायल के दौरान भी जमानत पर थे और अपील के निस्तारण में समय लगेगा इसलिए उम्रकैद की सजा निलंबित करते हुए उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया जाए। हाईकोर्ट ने प्रार्थी अभियुक्त पक्ष की दलीलों से सहमत होकर उनकी उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी।

सरकारी स्तर पर नहीं हुई सही पैरवी

सामाजिक संगठन दलित अधिकार के निदेशक एडवोकेट सतीश कुमार ने कहा 6 जून 1992 को भरतपुर के कुम्हेर में पांच से छह हजार लोगों की भीड़ ने दलितों की बस्ती पर हमला किया। सीबीआई की जांच में दलितों के सैकड़ों घरों को द्वेष भावना से जलाने, महिलाओं को नग्न कर बेइज्जत करने की पुष्टि हुई। कई लोगों को जिंदा जलाया गया। इस जातीय घटना में 16 दलितों की हत्या की गई। सीबीआई ने 83 लोगों के खिलाफ चालान पेश किया। सरकार इस मामले को सीबीआई को सौंप कर बरी हो गई। सही से पैरवी होती तो इस जघन्य हत्याकांड में दोषी नहीं बच पाते और दलितों को न्याय मिलता।

सजा निलंबित हुई है, सरकार मजबूती पैरवी करे 

मानव अधिकार मामलों पर काम करने वाली संस्था से जुड़ एडवोकेट ताराचंद वर्मा ने कहा कि हाईकोर्ट ने सजा निलंबित की है। स्थगित नहीं की। अपील पर सुनवाई होगी। सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखेगा या फिर कुछ बदलाव होगा। यह तो समय ही बताएगा। यहां यह कहना सही होगा कि दलितों के जघन्य हत्याकांड में सरकारी पैरवी में कमी रही है। अब सरकार को चाहिए की दलितों के सामूहिक हत्याकांड से जुड़े इस मामले में न्यायालय में ठीक से पैरवी करे तथा दलितों को न्याय दिलाए।

यह था मामला

6 जून 1992 को कुम्हेर कस्बे में जातीय हिंसा में दलित समाज के 16 लोगों की हत्या कर दी गई थी। 11 मृतकों की मौके पर शिनाख्त की गई थी। जबकि शेष पांच शवों की शिनाख्त नहीं हो पाई थी। 43 लोग गंभीर घायल हुए थे। दलित जाटवों के 79 घर आंशिक रूप से तथा 120 घर पूर्ण रूप क्षतिग्रस्त कर दिए थे। मामले की जांच पहले पुलिस ने की और बाद में इसे सीबीआई को सौंपा गया।

सीबीआई ने अनुसंधान के बाद 2006 में 83 लोगों को दोषी मानते हुए आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया था। 31 साल के लंबे ट्रायल के दौरान 32 आरोपियों की मौत हो गई। एक आरोपी मफरूर हो गया। 30 सितंबर 2023 शनिवार को भरतपुर एससी, एसटी मामलों की विशेष अदालत ने 50 लोगों की सुनवाई कर फैसला सुनाया गया। इनमें नौ को दोषी मान कर उम्रकैद की सजा सुनाई तथा 41 को बरी कर दिया था।

कुम्हेर कांड 1992 की गर्मियों में हुआ था। भरतपुर जिले के कुम्हेर कस्बे में दो समुदायों के बीच टॉकीज में  फिल्म देखने के दौरान जातीय टकराव हुआ था। दो जातियों के लोगों के बीच हुए इस झगड़े को लेकर कुम्हेर पुलिस थाने में परस्पर मामले दर्ज हुए थे। यह विवाद आस-पास की बस्तियों में फैलने लगा।

घटना के बाद पुलिस की और से दर्ज एफआईआर के अनुसार जातीय हिंसा को बढ़ावा देने के लिए कुछ लोगों ने 5 जून को पंचायत बुलाई थी और दलित समाज के लोगों को सबक सिखाने का निर्णय लिया। 6 जून को एक स्थान पर एकजुट हुए लोगों ने बैठक के बाद घातक हथियारों के साथ दलितों की बस्तियों में घुस कर हमला कर दिया। 

हमलावरों ने दलितों के कई घरों व छान-छप्परों को आग के हवाले कर दिया। जानवरों को भी नुकसान पहुंचाया। जान बचाकर भागते, खेतों में काम करते दलित समाज के 16 महिला-पुरुषों की हत्या कर दी गई थी। 40 से ज्यादा लोग गंभीर घायल हुए। मरने वाले 5 लोगों की शिनाख्त तक नहीं हो सकी थी। इस हिंसा में दलित  घरों में लूटपाट की बात भी कही गई थी। इस घटना के बाद जिला प्रशासन द्वारा गठित राजस्व अधिकारियों के सर्वेक्षण दल ने घरों व छप्परों की क्षति 20 लाख रुपए से अधिक मानी थी। इसी तरह चल संपति 46 लाख रुपए में से 25 लाख रुपए आभूषणों की क्षति मानी थी। इसके अतिरिक्त पशुधन की क्षति हुई थी।

एससीएसटी न्यायालय परिसर में दोषी व अन्य। (फाइल फोटो)
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