बाल विवाह मुक्त समाज बनाने एकजुट हुआ जनजाति समुदाय, निकाली मशाल यात्रा

मार्च का मकसद गांवों और कस्बों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक करना‌ था। इस दौरान विवाह समारोहों में अपनी सेवाएं देने वालों जैसे कि शादियों में खाना बनाने वाले हलवाइयों, टेंट-कुर्सी लगाने वालों, फूल माला बेचने‌ व‌ सजावट करने‌ वालों, पंडित और मौलवी जैसे पुरोहित वर्ग को जागरूक करने पर विशेष ध्यान दिया गया।
बाल विवाह के रोकथाम को भले ही सख्त कानून बना दिए गए हो, लेकिन यह कुप्रथा आज भी जारी है
बाल विवाह के रोकथाम को भले ही सख्त कानून बना दिए गए हो, लेकिन यह कुप्रथा आज भी जारी है

उदयपुर / सलूंबर - बाल विवाह सामाजिक बुराई होने के साथ पूरे समाज पर कलंक है l सरकारी प्रयास के साथ स्वयं सेवी संस्थाओं, आमजन को आगे आकार इस कलंक को मिटाने एकजुट होना होगा तभी सार्थक परिणाम आयेंगे l उक्त विचार राजस्थान बाल आयोग, राजस्थान सरकार के नवनियुक्त सदस्य ध्रुवकुमार कविया ने कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फ़ाउण्डेशन एवम् गायत्री सेवा संस्थान द्वारा सलूंबर पंचायत के ग्राम पंचायत घाटी में “बाल विवाह मुक्त भारत अभियान” के तहत आयोजित वृहद स्तरीय संवाद एवम् मशाल यात्रा कार्यक्रम में व्यक्त किये.

बाल अधिकार विशेषज्ञ एवम् अभियान संयोजक डॉ. शैलेंद्र पण्ड्या ने बताया कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की अपील पर पूरे राष्ट्र में संचालित “बाल विवाह मुक्त भारत” अभियान के तहत 11 अक्टूबर से विशेष कार्यक्रम, यात्रा एवम् संवाद का आयोजन विभिन्न शहरों से लेकर दूर-दराज जनजाति अंचल के गाँवो में हो रहा था, जिसके तहत आमजन की सहभागिता के साथ समापन के अवसर सोमवार रात को मशाल यात्रा निकाली गई l

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (एनएचएफएस-2019-21 ) के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में 20 से 24 आयुवर्ग के बीच की 23.3 प्रतिशत युवतियों का विवाह 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था l बाल विवाह वो अपराध है जिसने सदियों से हमारे समाज को जकड़ रखा है। लेकिन नागरिक, समाज और सरकार द्वारा राज्य को बाल विवाह मुक्त बनाने के प्रति दिखाई गई प्रतिबद्धता और प्रयास जल्द ही एक ऐसे माहौल और तंत्र का मार्ग प्रशस्त करेंगे जहां बच्चों के लिए ज्यादा सुरक्षित वातावरण होगा।साथ मिल कर उठाए गए कदमों और लागू किए गए कानूनों के साथ समाज व समुदाय की भागीदारी 2030 तक बाल विवाह मुक्त भारत सुनिश्चित कर सकती है l

मशाल यात्रा का मकसद गांवों और कस्बों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक करना‌ था।
मशाल यात्रा का मकसद गांवों और कस्बों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक करना‌ था।

कार्यक्रम समन्वयक नितिन पालीवाल ने बताया बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के तहत उदयपुर एवम् सलूंबर ज़िले के कुल 143 गाँवो में संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसके तहत कुल 15551 लोगों ने अपने गांवों और बस्तियों में बाल विवाह का चलन खत्म करने की शपथ ली। समापन कार्यक्रम के तहत आयोजित मुख्य कार्यक्रम के तहत घाटी ग्राम पंचायत में पूरे दिन इस अभियान के समर्थन में उतरे लोगों की चहल पहल रही और इस दौरान बाल विवाह रोकने का संदेश देते नाटक के प्रदर्शन के साथ जादूगर का कार्यक्रम आयोजित कर बाल विवाह की हानियों से आमजन को परिचित करवाया गया l

सलूंबर ब्लॉक प्रभारी खेमराज कुमार ने बताया की सूरज ढलने के बाद सैकड़ो लोगों ने हाथों में मशाल लेकर मार्च किया‌ और लोगों को जागरूक करते हुए संदेश दिया कि नए भारत में बाल विवाह की कोई जगह नहीं है। इस मार्च में स्कूली बच्चों, ग्रामीणों, धार्मिक गुरु सहित समाज के सभी वर्गों और समुदायों के लोगों ने हिस्सा लिया। इस मार्च का मकसद गांवों और कस्बों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक करना‌ था। इस दौरान विवाह समारोहों में अपनी सेवाएं देने वालों जैसे कि शादियों में खाना बनाने वाले हलवाइयों, टेंट-कुर्सी लगाने वालों, फूल माला बेचने‌ व‌ सजावट करने‌ वालों, पंडित और मौलवी जैसे पुरोहित वर्ग को जागरूक करने पर विशेष ध्यान दिया गया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय बाल अधिकार सेवा ट्रस्ट के निदेशक गोविंद जांगीड, बाल कल्याण समिति के पूर्व सदस्य सुरेश चन्द्र शर्मा, पायल कनेरिया ने भी अपने विचार प्रकट किए l

स्कूल जाने की उम्र में मां बन रही बेटियां

सदियों पुराने बाल विवाह का दंश आज आजादी के 75 साल बाद भी खत्म नहीं हो पाया ( child marriage in Rajasthan) है. बाल विवाह के रोकथाम को भले ही सख्त कानून बना दिए गए (child marriage prevention law) हो, लेकिन यह कुप्रथा आज भी बदस्तूर जारी है. वहीं, राजस्थान में बाल विवाह के मामलों में इजाफा दर्ज किया गया है.भले की देश आधुनिक युग की तरफ बढ़ रहा है लेकिन कुरीतियों से पीछा नहीं छूट पा रहा है. सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए भले ही कई योजनाएं चला रखी हैं लेकिन लोग अब भी जागरूक नहीं हो रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह हैं कि आज के युग में भी राजस्थान में हर चौथी महिला का 18 साल से कम उम्र में विवाह (Child Marriage) हो जाता है. 

भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 12,91,700 का बाल विवाह हुआ है. यह पूरे देश के बाल विवाह का 11 प्रतिशत है.
भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 12,91,700 का बाल विवाह हुआ है. यह पूरे देश के बाल विवाह का 11 प्रतिशत है.

राजस्थान में आदिवासी क्षेत्र में बाल विवाह की शिकायत काफी ज्यादा आती है. खासकर आखातीज और देव उठनी एकादशी के बाद काफी संख्या में बाल विवाह होते हैं जिसके पीछे प्रमुख कारण शिक्षा और जागरूकता का अभाव है. आज भी गांवों में लोगों अपनी पुरानी परंपराओं के आधार पर जीवन यापन कर रहे हैं. हालांकि बच्चियों में जागरूकता और हिम्मत आई है.

बाल आयोग के सदस्य ध्रुव कुमार कविया ने बताया कि कानून कठोर करने से नहीं लोगों में जागरूकता से ही बाल विवाह की रोकथाम होगी, लेकिन पहले की तुलना में फर्क पड़ा है. स्कूलों में भी इस प्रकार की शिक्षा का प्रचार किया जाता है, ताकि बच्चियों में भी हिम्मत आए. डॉ. पण्ड्या के मुताबिक भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 12,91,700 का बाल विवाह हुआ है. यह पूरे देश के बाल विवाह का 11 प्रतिशत है.

बाल विवाह के रोकथाम को भले ही सख्त कानून बना दिए गए हो, लेकिन यह कुप्रथा आज भी जारी है
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