महिलाओं को सामाजिक सम्बल और संसद में मिले 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व

महिला अपराध पर अंकुश लगाने के लिए उठाने होंगे प्रभावी कदम.
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सांकेतिकफोटो साभार- borgenproject.org

वैज्ञानिक नियम है- प्रत्येक क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ठीक यही बात अपराध पर भी लागू होती हैं, जैसे किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया और उसे बचा लिया गया तो दूसरे व्यक्तियों को इससे हिम्मत मिलती है, वे भी अपराध करेंगे और सोचेंगे कि बच जाएंगे। हाथरस का मामला देख लीजिए। वहाँ रेप पीड़िता को पुलिस प्रशासन द्वारा रात में 2 बजे जलाया गया था। इससे अपराधियों की और हिम्मत बढ़ी फिर इसी तरह के अपराध को बुलंदशहर में कुछ और लोगों ने अंजाम दिया, जिन्हें बचाने के लिए एक बार फिर रेप पीड़िता को पुलिस प्रशासन द्वारा जलाया गया।

इन लड़कियों को आज तक न्याय नहीं मिला, क्या लड़कियाँ अपने ही देश में न्याय की भी हकदार नहीं? वर्तमान सरकार हिंदुत्व को बहुत बढ़ावा देती हैं। ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए, क्या ये लड़कियाँ हिंदू नहीं थीं? माना जाता हैं हिंदू धर्म में 16 संस्कार होते हैं, सोलवा संस्कार अंतिम संस्कार कहलाता है। धर्म ग्रंथ कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार विधि-विधान से नहीं होता तो उसे मोक्ष नहीं मिलता। क्या दलित महिलाओं पर आकर सरकार की हिंदू धर्म की परिभाषा बदल जाती है? फिर देखा जाता है रेप करने वाला ऊँची जाति का है या फिर निम्न जाति का, अगर वह उच्च जाति का हैं तो उसे बचा लिया जाता हैं। 21वीं सदी चल रही हैं, लेकिन देखा जाए तो इतने वर्षों में ज़्यादा कुछ बदला नहीं है, अन्याय और उत्पीड़न के आखिरी पायदान पर आज भी दलित महिलाएं ही हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले बेटियां बचा नहीं रहे, बल्कि उनके सामने अन्याय हो रहा हैं, उनके द्वारा। बिल्किस बानो के बलात्कारियों को संस्कारी ब्राह्मण बोल कर छोड़ दिया गया, जैसे उन्होंने बहुत अच्छा काम किया हो। क्या बेटी की परिभाषा बिल्किस बानो पर आकर बदल जाती है? क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय की मुस्लिम महिला है?

महिलाओं को रेप की धमकी देने वाले बजरंग मुनि दास को भी जमानत मिल गई थी, क्योंकि वह एक साधु हैं?

और जमानत के बाद वह बाहर आकर बयान देता है कि मुझे कोई पछतावा नहीं है, मैंने जो भी बोला है एकदम सही बोला है।

गुरमीत सिंह राम-रहीम पर यौन शोषण, रेप और हत्या के चार्जस लगे थे, साथ ही पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में अदालत ने 17 जनवरी, 2019 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। पर देखा जाए तो ढाई साल में सातवीं बार उसे फिर 20 जुलाई 2023 को पैरोल दी गई है। इस बार उसे 30 दिन की पैरोल मिली है। उसने ऐसा क्या अच्छा काम किया है जो उसे बार-बार पैरोल दी जा रही है।

बृजभूषण शरण सिंह पर 6 महिला पहलवानों ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे। एक नाबालिग महिला पहलवान ने भी पहले बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और उन पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस भी दर्ज हुआ था, लेकिन बृजभूषण को भी बचाने के लिए सरकार हर तरीका अपना रही है। यहाँ तक की महिला पहलवानों को धरना देना पड़ा है, सड़क पर बैठ कर और पुलिस प्रशासन द्वारा डंडे तक चलाए गए। महिलाओं पर और उन्हें सड़क पर घसीटा तक गया। जब देश में जानी-मानी महिलाओं का यह हाल है तो आम महिलाओं का क्या हाल होगा, कितने ही मामलों को दबा दिया जाता है और कितने ही मामलों की F.I.R तक नहीं लिखी जाती। सिर्फ कुछ ही मामले सामने आ पाते हैं।

मणिपुर में कुछ लड़कों के समूह ने दो लड़कियों का बलात्कार कर उन्हें नग्न अवस्था में सड़क पर घुमाया, ठीक यही मामला फिर कुछ लड़कों ने मेरठ में दोहराया है। क्योंकि जब अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती तो और लोगों में अपराध करने की हिम्मत आ जाती है।

भारत में 2019 से 2021 के बीच तीन साल की अवधि में लापता हुई महिलाओं की संख्या का आंकड़ा 13.13 लाख तक जाता है। कहाँ गई लड़कियाँ सरकार क्या कर रही है?

लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ी स्थित

चाहे अपराधी किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो। वह अपराधी ही है। अपराध करने पर उसे सज़ा मिलनी चाहिए। महिलाओं को भी न्याय मिलना चाहिए। किसी बड़े ओहदे के व्यक्ति ने भी अपराध किया हो तो उसे भी सज़ा मिलनी चाहिए क्योंकि कानून सबके लिए बराबर है। न्याय दिलाने का काम सरकारों का है। न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका और विधायिका को भी मजबूत होने की आवश्यकता है।

लड़कियों को यहाँ बचपन से सिखाया जाता है। शर्म औरत का आभूषण है। कुछ लड़कियों के माता-पिता ही उन्हें खुद के लिए लड़ने से मना कर देते हैं। क्योंकि अगर बात बाहर आ गई तो उनकी इज्जत पर बन जाएगी। जोकि सरासर ग़लत हैं। लड़कियों को उनके हक के लिए लड़ना सिखाया जाना चाहिए ताकि वे और लड़कियों के लिए भी प्रेरणा बने और सब इंसाफ़ के लिए लड़े। ये तभी मुमकिन हैं जब संसद में 50 प्रतिशत पढ़ी -लिखी महिलाओं की सीट आरक्षित हो, जिनमें पिछड़े वर्ग और दलित महिलाएं ज़्यादा शामिल हो। आज के समय में महिला सांसदों को सदन में प्रतिशत के रूप में देखें तो लोकसभा में 14.36% और राज्यसभा में 10% है। हालांकि अभी ऐसा होने में बहुत समय लगेगा। लेकिन कहते हैं कि नामुमकिन कुछ भी नहीं, बस एक सोच में बदलाव की जरूरत है।

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