मणिपुर का सीधे-सीधे नाम तक नहीं ले पाया दुनिया का सबसे ताकतवर “प्रधानमंत्री”

मणिपुर का सीधे-सीधे नाम तक नहीं ले पाया दुनिया का सबसे ताकतवर “प्रधानमंत्री”
Pic- Idrees Mohammed
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मैं रोना चाहती हूं लेकिन रो नहीं पा रही हूं, मैं चीखना चाहती हूं लेकिन चीख नहीं पा रही हूं. मेरे पास क्या कोई रास्ता है अपनी पीड़ा, दुख, नाराज़गी, गुस्से का इज़हार करने का? नहीं, तमाम रास्ते हुकमरानों ने बंद कर दिए हैं. ताकि देश में चल रहे अमृतकाल पर कोई सवाल ना उठा दे, कहीं कोई दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे ताकतवर, 56 इंची सीने वाले पीएम की लंबी खामोशी की वजह ना पूछ ले. हमारे ही जिस्म का कोई हिस्सा जला दिया जा रहा हो, हमारे ही जिस्म के किसी हिस्से को काट दिया जा रहा हो और हमारे मुंह से चीख तो दूर उफ़ भी ना निकले, क्या ऐसा मुमकिन है. हां ऐसा मुमकिन है जब इंसान का जिस्म मर चुका हो, उसका शरीर अकड़ चुका हो तब उसे किसी भी तकलीफ़ का एहसास नहीं होगा.

दुनिया के महानतम संस्कृति और सभ्यता का दावा करने वाले देश के लोग, उसके हुकमरा लगातार देश को शर्मसार कर रहे हैं. हमारे देश का एक बेहद खूबसूरत प्रदेश लगभग तीन महीने से दंगों से झुलस रहा है, हत्याएं, बलात्कार हो रहे हैं, गांव के गांव जलाए जा रहे हैं और सब तरफ़ खामोशी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलते झुलसते मणिपुर को नकारते उसे अनदेखा करते हुए विदेश भ्रमण पर निकल जाते हैं. 78 दिन बाद उनकी ज़ुबान मजबूरी में खुलती है, क्योंकि मणिपुर का एक भयानक, हैवानियत से भरा हुआ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है. कहा जा रहा है कि वीडिया मई के शुरुआती दिनों का है जो अब जाकर सामने आया है. वीडियो में जो नज़र आ रहा है वो मैं ना देखना चाहती थी ना ही उस पर कुछ लिखने की हिम्मत कर पा रही थी. दरिंदगी की सारी हदें पार करती भीड़ कुकी समुदाय की महिलाओं को नंगा करके परेड करा रही होती है, महिलाएं रोती बिलखती, अपने हाथों से अपने जिस्म को ढकने की कोशिश करती, खुद को बचाने की कोशिश करती हुई नज़र आती हैं, लेकिन उन्मादी दंगाई पुरुषों की भीड़ उन बेलिबास औरतों के अंगों से खेलती चलती है, ऐसे उनको नोंचा जा रहा है जैसे गिद्ध किसी जानवर को नोंचते हैं. गिद्ध को फिर भी मरे हुए जानवर को खाते हैं, यहां तो ये भीड़ गिद्ध को भी मात दे देती है.

जब मणिपुर में इंटरनेट खुला तो वहां से ये वीडियो वायरल हुआ और मजबूरी में देश के ताकतवर प्रधानमंत्री को घड़ियाली आंसू बहाने पड़े. घड़ियाली आंसू इसलिए क्योंकि उन्होंने इस हैवानियत और महीनों से दंगा झेल रहे मणिपुर का नाम सीधे-सीधे लिया ही नहीं. अकेला चलने वाला शेर इस हैवानियत पर दहाड़ा नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों का सहारा लेते हुए कहता है कि इससे देश का सिर शर्म से झुका है. इस घटना की निंदा करने के लिए उन्हें राजस्थान, छत्तीसगढ़ का सहारा लेना पड़ा है. दहाड़ने वाला, ललकारने वाला पीएम मणिपुर पर बोलने के लिए 78 दिन का समय लेता है. जिन्हें शांति की अपील करनी चाहिए, जिन्हें राज्य सरकार को आड़े हाथों लेना चाहिए वो दार्शनिक बातें कर रहा है.

बात बात पर राहुल गांधी, कांग्रेस से सवाल पूछने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की भी शायद ज़ुबान टूट कर गिर गई है. मणिपुर मामले में किसी भी केंद्रीय मंत्री से कोई बयान नहीं आया. गोदी मीडिया गोदी से गिरकर केंद्र सरकार के तलुए चाट रहा है. मुझे नहीं पता कि कैसे इनको नींद आती है, कैसे इनका ईमान ये सब करने के लिए गंवारा करता है. लेकिन क्या ही कहें. ये सब ज़िंदा नज़र आते, सांस लेते मर चुके इंसान हैं. मणिपुर की हैवानियत के वीडियो को भी दूसरे प्रदेशों में हो रहे महिला हिंसा से जस्टीफाई किया जा रहा है. नीचता की ऐसा पराकाष्टा, ढीटता की नज़ीर और कहां देखने को मिलेगी. मणिपुर में डबल इंजन की सरकार है और 78 दिन लग गए देश के प्रधानमंत्री को मणिपुर का नाम लेने में. ये अब भी ख़ामोशी ही रहते अगर सोशल मीडिया पर मणिपुर में चल रही हैवानियत का वीडियो वायरल नहीं होता. वहां की खबरें दबाई गईं, वहां की हैवानियत दुनिया के सामने ना आए इसलिए इंटरनेट बंद रखा गया. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन बड़ी बेशर्मी से कहते हैं कि इस तरह के सैंकड़ों मामले हैं. इसके बावजूद ना उनसे इस्तीफ़ा मांगा जा रहा है ना ही उनमें इतनी शर्म बची है कि वो खुद अपनी नाकामी माने और कुर्सी से उतर जाएं. हालांकि उनके सामने तो नज़ीर है वो तो सांसद बृजभूषण की है, जो यौन शोषण के आरोप, एफआईआर होने के बावजूद इस्तीफ़ा देने से इंकार कर देते हैं, तो एन बीरेन क्यों ही अपनी नाकामी मानें.

ये लिखते लिखते मुझे अचानक से याद आया कि अरे इस देश में महिला आयोग जैसी भी कोई संस्था है. हां होगी जो कांग्रेस शासित राज्यों या गैर बीजेपी शासित राज्यों में महिला अपराध पर बोलने के लिए ही ज़िंदा है. मणिपुर में कुकी महिलाओं के दिल दहला देने वाले यौन उत्पीड़न की शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग से 12 जून को ही कर दी गई थी. चर्चित वेबसाइट न्यूज़ लॉन्ड्री ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में ये खुलासा किया है. लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग भी केंद्र सरकार के नक्शे कदम पर गूंगा, बहरा अंधा बना रहा. न्यूज़ लॉन्ड्री ने आयोग की अध्यक्ष से उनका पक्ष जानना चाहा पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. और वो जवाब देंगी भी नहीं क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग मरी हुई संस्था है.

सोशल मीडिया पर महिलाओं के बलात्कार, उनके साथ हैवानियत की वीडियो वायरल हुआ तो थोड़ी बहुत औपचारिकता गोदी मीडिया ने भी करनी शुरु कर दी. स्टार ऐंकर्स ने रुबिका लियाकत बड़ा कड़ा मन करके एन बीरेन से सवाल पूछ लिया, हालांकि केंद्र सरकार को तो वो टैग करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई. और जैसे ही पीएम मोदी ने मणिपुर पर बयान दिया रुबिका लियाकत फौरन ट्वीट करती हैं कि मणिपुर में बेटियों के साथ हुआ वारदात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सख़्त लहजा सुनिए, कोई बख्शा नहीं जाएगा. ख़ैर ये तो सिर्फ़ बानगी है गोदी मीडिया मोदी जी के मुंह खोलने पर पर लहालोट हुआ जा रहा है. इसमें हैरानगी जैसा कुछ है नहीं है, क्योंकि मेन स्ट्रीम मीडिया की रीढ़ टूटी नहीं है बल्कि चकनाचूर हो गई है जिसके दोबारा जुड़ने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती है.

नीचता की पराकाष्ठा ये है कि मणिपुर में जो हुआ और हो रहा है उसको भी जस्टीफाई किया जा रहा है. नफ़रत में बुझे हुए, जॉम्बी बने हुए लोग कश्मीर, बंगाल, फलाना ठिकाना राज्य में महिला हिंसा को गिना रहे हैं. ये लोग नफ़रत में इतने अंधे हो चुके हैं कि इन्हें नज़र नहीं आ रहा है कि इनका जिस्म सड़ रहा है और धीरे धीरे मवाद पूरे जिस्म में फैल चुका है. ख़ैर धर्म और नफ़रत के नाम पर इंसान देखना, सुनना और समझना बंद ही कर देता है. इनके लिए दूसरे विचारधार के लोगों के साथ ऐसा हैवानियत का नंगा नाच बिल्कुल सही है. कभी कभी लगता है कि औरतों के लिए तो ये दुनिया शायद बनी ही नहीं है. यहां औरतों का जन्म होना ही नहीं चाहिए. पुरुषों की वर्चस्व की लड़ाई, नफ़रत में, जंग में, दंगों में हर किसी चीज़ में बदला तो महिलाओं से लिया जाता है. उन्हें लूटा जाता है, नोंचा जाता है, उनको किसी बेजान की तरह ट्रीट किया जाता है.

सोशल मीडिया पर लोग गुस्से में हैं, लगातार लिख रहे हैं, लेकिन वहां भी सेंसरशिप इतनी तगड़ी है कि मणिपुर लिखते ही पोस्ट लोगों को दिखनी बंद हो जा रही है. लोग कह रहे हैं कि जिनका परिवार नहीं, बेटियां नहीं वो क्या महिलाओं का दर्द तकलीफ़ समझेंगे. और मैं कह रही हूं कि बेलिबास औरतों की भीड़ को नोंचते पुरुषों के घरों में भी उनकी बेटियां, मां, बहनें होंगी ना. हां ज़रूर होंगी लेकिन वो बलात्कारी, दंगाई बन कर सब भूल जाते हैं. ये एक घटना नहीं है बल्कि ऐसे लगातार ऐसी हैवानियत भरी तस्वीरें, वीडिओ सामने आते रहते हैं. जो ज़िंदा बचे लोग हैं, जिनकी आत्मा ज़िंदा हैं, जिनका ज़मीर अब तक सांस ले रहा है वो लगातार बोलते हैं, चीखते हैं और फिर थक जाते हैं. ये अंधी गूंगी बहरी सरकार वही देखती, सुनती है जिससे उसको फायदा हो. ना इन्हें देश की रगों में फैल रहे ज़हर की चिंता है ना इन्हें लोगों के जॉम्बी में तब्दील होने की परवाह. दरअसल ये यही चाहते भी हैं कि लोग देखना, सुनना, समझना बंद कर दें और शायद उनके भक्तों ने ऐसा कर भी दिया है. सत्ता की कुर्सी चिपके रहने का ऐसा लालच कि देश को बर्बादी के कगार पर ला दिया. आर्थिक नुकसान की भरपाई की जा सकती है लेकिन समाज के तानेबाने को टूटने के बाद जुडने से नहीं बचाया जा सकता है. जिनकी रगों में खून की जगह ज़हर भर गया हो उनको फिर से ठीक नहीं किया जा सकता है. मुझे खुशी है कि मैंने ऐसे रहनुमा नहीं चुने हैं जो दंगाइयों को संरक्षण दें, उन पर खामोश रहे हैं और जिन्होंने इन्हें चुना है वो अपने बच्चों को नरक सा समाज देकर जाएंगे.

मणिपुर में जो हुआ और हो रहा है उसके लिए वो सब ज़िम्मेदार हैं जो चुप हैं, इस पाप के भागीदार वो सब हैं जिन्होंने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं. मणिपुर के दोषी सिर्फ़ वहां के दंगाई नहीं हैं बल्कि हज़ारों किलोमीटर बैठे वो रहनुमा भी हैं जिन्हें बोलना चाहिए लेकिन वो खामोश हैं. मणिपुर तो तबाह करने के लिए ज़िम्मेदार हर वो शख्स है जिसे लगता है कि हम क्यों बोलें. दरअसल इस देश में वही हो रहा है जिसके लिए इस सरकार को चुना गया है. एक बड़ा तबका फर्ज़ी राष्ट्रवाद की आड़ में नफ़रत फैला रहा है बिना उसके अंजाम की परवाह किए. तो जाइए आप जस्टीफाई करिए जुल्म को, ज्यादती को, नफ़रत को और मिटा दीजिए इस देश के तानेबाने को, तोड़ दीजिए इस देश की रीढ़ जो आपसी भाईचारे से मिलकर बनी है. लेकिन आपको शायद होश तब भी नहीं आएगा क्योंकि आप जानवर से भी बदतर हो गए हैं क्योंकि जानवर भी खुद को नुकसान नहीं पहुंचाता है. थू है ऐसे समाज पर थू है ऐसे रहमुनाओं पर.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
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