वह सिनेमा ही क्या, जो समाज का सच न दिखाए? 1980 के दशक में भारत में सार्थक सिनेमा का एक शानदार दौर देखा गया। समानांतर सिनेमा, कला फ़िल्म, यथार्थ सिनेमा जैसे नाम भी दिए गए। इन फिल्मों ने बॉलीवुड के स्टारडम और चकाचौंध की सतही दुनिया से निकलकर दर्शकों को यथार्थ समझने की दृष्टि दी।
अब सार्थक सिनेमा का ऐसा कोई आंदोलन तो नहीं चल रहा, लेकिन उम्मीद जगाने वाली कुछ फिल्में आती रही हैं। ऐसा ही एक प्रयोग कुंदन शशिराज ने किया है। महज तीस मिनट की फ़िल्म 'द सेडिस्ट' ने मौजूदा भारतीय समाज का आईना दिखाया है। दूसरों को दुखी देखकर खुश होने वाले समाज की हकीकत दिखाने वाली यह एक कलात्मक प्रस्तुति है। फिलहाल इसका सीमित प्रदर्शन हो रहा है। जल्द ही आम दर्शकों तक पहुंचेगी।
यह फ़िल्म क्यों? लेखक निर्देशक कुंदन शशिराज कहते हैं- 'जब नफरत आपके अंतर्मन की हकीकत बन जाए, तो क्या होता है? शायद 'द सेडिस्ट' आपको इन सवालों के जवाब देगी।'
लगभग नौ महीने की मशक्कत के बाद यह फिल्म रिलीज के लिए तैयार है। इसमें विपित शर्मा, दानिश हुसैन, विनीत कुमार, शिशिर शर्मा जैसे कलाकारों ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
फ़िल्म प्रारंभ से अंत तक उत्सुकता और आकर्षण बनाए रखती है। हरेक दृश्य में उस भयावह सच्चाई की सहज प्रस्तुति दिख पड़ती है जो हाल के दिनों में नफरत के घुलते जहर की तरह समाज की रगों में फैलता जा रहा है।
कथानक पर चर्चा करके फ़िल्म के क्लाइमेक्स में छिद्र करना अनुचित होगा। लेकिन ट्रेलर से स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे नफरत की पृष्ठभूमि में बनी फ़िल्म है। इस जहर की खुराक ने समाज के बड़े हिस्से को दूसरों के दुख में सहानुभूति के बजाय आनंद के लिए प्रेरित किया है। इस सेडिज्म का प्रतिनिधि चरित्र खुलेआम टीवी रिपोर्टर से कहता है- "आई इंजॉय दंगाज! जब भी कहीं दंगा होता है, मैं हथियार लेकर निकल पड़ता हूँ। इंजॉय करता हूँ जी!"
फ़िल्म के निर्माण की पृष्ठभूमि दिलचस्प है। फ़िल्म कथा लेखक कुंदन शशिराज ने पहले इस फ़िल्म की कहानी मुम्बई में प्रोड्यूसर्स को सुनाई। कहानी पसंद आने के बावजूद सब्जेक्ट को देखते हुए उनमें हिचक बनी रही। आख़िरकार एक पुराने मित्र सुधांशु कुमार ने यह फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया। फ़िल्म को सपोर्ट करने के लिए एक्टर विपिन शर्मा और दानिश हुसैन भी कॉ-प्रोड्यूसर की भूमिका में आ गये।
उल्लेखनीय है कि सभी कलाकारों ने बिना फ़ीस लिए काम किया है। वे इस ज़रूरी फ़िल्म का हिस्सा बनना चाहते थे। फ़िल्म अगले कुछ महीनों तक विभिन्न फ़िल्म फेस्टिवल का हिस्सा बनेगी। 2025 में आम लोगों के लिए प्रदर्शित की जायेगी।
फ़िल्म के लेखक-निर्देशक कुन्दन शशिराज ने क़रीब 11 साल विभिन्न न्यूज़ चैनल में काम किया है। मीडिया की दुनिया क़रीब से देखी है। अब उसका एक चेहरा पेश करने किया है। अवसर मिले तो इस फ़िल्म को देखना सार्थक होगा। संभव है, 'सेडिस्ट' के आईने में अपना ही चेहरा दिख जाए।
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