हाथरस केस: पीड़िता के परिवार को मिला अधूरा न्याय!

हाथरस केस: पीड़िता के परिवार को मिला अधूरा न्याय!

हाथरस में बलात्कार—पीड़ित महिला के घर की पुलिस ने किलेबंदी कर

उसकी लाश का अपहरण कर, पीड़ा से कराहती उसकी माँ को अनदेखा कर

एक जानलेवा रात को उसका करती है अग्निदाह

ऐसे देश में जहाँ दलित शासन नहीं कर सकते, क्रोध नहीं जता सकते, शोक तक नहीं मना सकते

यह पहले भी हुआ है, यह दोबारा भी होगा

...यह पहले भी हुआ है, यह दोबारा भी होगा

सनातन, इस समाज पर लागू एकमात्र कानून,

सनातन, जहां कुछ भी, कुछ भी कभी नहीं बदलेगा।

हमेशा, हमेशा, एक पीड़िता पर दोष ठहराने वाला मलिन नमूना,

एक बलात्कारी को बचाने वाला पुलिस-राज, एक जाति की सच्चाई को नकारने वाला प्रचार तंत्र

(मीना कन्दस्वामी की कविता ‘हाथरस’ की कुछ पंक्तियों का मंजीत राठी द्वारा अनुवादित)

7 मार्च के अखबारों और चौनलों पर खबर आई. एक 17 साल की युवती ने एडीजी पुलिस, बरेली के कार्यालय में जहर खाकर खुदखुशी करने की कोशिश की. उसकी बहन ने बताया कि युवती के साथ 6 महीने पहले, पीलीभीत के उनके गाँव में दो पुरुषों ने बलात्कार किया था. स्थानीय पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार कर दिया. एडीजी से भी संपर्क किया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ तो दोनों बहनें उनके कार्यालय पहुंची थीं. वहां मौजूद एक इन्स्पेक्टर ने युवती से कह कि उसकी रिपोर्ट लिखी नहीं जायेगी, तो उसने जहर खा लिया. उसे अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन इसका पता नहीं चला की उसकी रिपोर्ट दर्ज हुई की नहीं.

उत्तर प्रदेश में बलात्कारी-पीड़िताओं के लिए न्याय पाना कितना मुश्किल है उसकी यह केवल एक मिसाल है. पीलीभीत की युवती नाबालिग है. POCSO कानून के अंतर्गत उसकी रिपोर्ट को दर्ज करना और मामले की सही जांच करना अनिवार्य हैं, लेकिन इस सबसे उ.प्र. की सरकार को कोई मतलब नहीं है. बलात्कार के उन आरोपियों के प्रति जो उनकी पार्टी के सदस्य हैं, जैसे उन्नाव के विधायक सेंगर या पूर्व सांसद और राज्य गृह मंत्री, चिन्मयनन्द, योगी सरकार का रुख हमदर्दी और सुरक्षित रखने का रहा है. सेंगर पर चल रहे मुकद्दमे के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय का कथन था कि उप्र में पीड़ित पक्ष को न्याय मिल ही नहीं सकता है और उन्होंने मुकदमा और पीड़िता को परिवार सहित दिल्ली स्थान्नान्तरित कर दिया था.

प्रदेश में बलात्कार और बलात्कार व हत्या के पीड़ित अधिकतर दलित समुदाय के हैं. 2019 और 2020 के बीच जहां बलात्कार-पीड़ित दलित महिलाओं की संख्या देश के पैमाने पर 6.2 प्रतिशत कम हुई, प्रदेश में उनकी संख्या 3.4 प्रतिशत बढ़ी है. यह आंकड़े बहुत कुछ छिपाते भी हैं. ज्यादातर मामले दर्ज नहीं किये जाते हैं. अगर दर्ज होते भी हैं तो जांच के दौरान पीड़ित पक्ष को इतना जलील किया जाता है कि वे तो हिम्मत हार ही जाती हैं, अन्य तमाम पीड़िताएं थाने तक जाती ही नहीं हैं.

हाथरस मामले में एक वाल्मिकी समुदाय की महिला ने 4 ठाकुर जाति के पुरुषों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया. घटना के 2 हफ्ते बाद, महिला अपने शरीर पर किये गए वार के कारण अस्पताल में मर गयी. यह मामला देश-विदेश में जबरदस्त चर्चा का विषय रही. तमाम अखबारों और चौनलों पर छाई रही. राजनैतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हाथरस और अन्य जगहों में प्रदर्शन किये और योगी आदित्यनाथ ने अपने चिर-परिचित अंदाज में दहाड़ा कि अपराधियों को छोड़ा नहीं जाएगा. इस सबके बावजूद, 2 मार्च, 2023 को हाथरस एससी/एसटी अदालत के न्यायाधीश ने जो फैसला सुनाया उससे तमाम लोग हथप्रभ रह गए. फैसले ने बलात्कार की बात को मानने से इंकार किया, 4 में से 3 आरोपी छोड़ दिए गए और 1 को गैर-इरादतन हत्या के आरोप का दोषी पाया। एससी/एसटी कानून के अंतर्गत भी उसे दोषी पाया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई.

न्यायाधीश महोदय ने 176 पन्ने का फैसला सुनाया. इसमें उन तमाम तथ्यों, बयानों इत्यादि पर जोर दिया गया है जो उनके अपने नतीजों की पुष्टि करते हैं. नतीजतन कई ऐसे तथ्यों और बयानों को छोड़ दिया गया है जो उनके तर्क को केवल कमजोर ही नहीं बल्कि समाप्त ही कर देते.

उदाहरणतः उ.प्र. सरकार द्वारा स्थापित सीबीआई जांच की रिपोर्ट जो दिसंबर 2020 में समाप्त हुई थी, उसकी रिपोर्ट को न्यायाधीश महोदय ने ध्यान देने लायक नहीं समझा है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 14 तारीख को ही स्थानीय पुलिस ने पीड़िता को सही परामर्श दिया होता और उसके लिए संवेदनशील माहौल उपलब्ध किया होता तो वह उस स्थिति में ही लैंगिक आक्रमण के बारे में बता देती। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्थानीय थाने में पीड़िता का उसकी दलित पहचान के चलते, सम्मान नहीं किया गया और पुलिस की जांच भी लचर रही. सीबीआई की चार्जशीट में पीड़िता के साथ हुई सामूहिक बलात्कार की पुष्टि की गयी और चारों अभियुक्तो — संदीप, रवि, रामू, लवकुश को 376 और 302 की धाराओं का दोषी ठहराया.

14 तारीख को पीड़िता की माँ और उसके भाई द्वारा थाने में दिए गए विरोधाभासी बयानों पर न्यायधीश महोदय ने कई बार बहुत जोर दिया. उन्होंने उनकी मानसिक स्थिति को समझने की कोई कोशिश नहीं की. पीड़िता समेत इन तीन लोगों पर क्या बीत रही होगी. एक जानलेवा हमले के परिणामों से जूझ रही थी और बाकी दोनों उसकी पीड़ा और उसके साथ हुए हादसे से बेहाल हो रहे थे. न्यायाधीश महोदय बार-बार बस यही कहते हैं कि इन तीनों ने थाने में बलात्कार की कोई बात नहीं की. वह इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं करते की पुलिस वालों ने पीड़िता को पत्थर के चबूतरे पर पड़ा रहने दिया, उसके परिवार को उन्होंने वहां से भगाना चाहा क्योंकि वे ‘ड्रामा’ कर रहे थे, उनको खुद जिला अस्पताल तक सवारी का इन्तेजाम करने के लिए मजबूर किया.

थाने पर कुछ पत्रकार भी पहुँच गए थे. उन्होंने पीड़िता और उसकी माँ से सवाल पूछे और वीडियो बनाया. एक वीडियो में पीड़िता कहती है की उसके साथ ‘जबरदस्ती’ हुई है. इसका संज्ञान न्यायाधीश महोदय नहीं लेते हैं, लेकिन अन्य दो वीडियो की बात वे करते हैं, जिसमें इस तरह की बात नहीं मौजूद है.

थाने से पीड़िता को जिला अस्पताल और फिर वहां से अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरु अस्पताल ले जाया गया. कहीं भी उसकी डाक्टरी जांच नहीं हुई. कितने आश्चर्य की बात है. इस हालत में एक महिला को अस्पताल लाया जा रहा है और उसकी जांच नहीं की जाती है और उसके कपड़ों को भी साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित रखा नही रखां जाता है. यह कपड़े 22 सितम्बर को ही फारेंसिक जांच के लिए भेजे जाते हैं जबकि तब तक किसी तरह के साक्ष्य का बचा रहना असंभव था. लेकिन जब यह साक्ष्य नहीं पाए गए तो एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इसका सहारा लेकर घोषणा कर डाली की बलात्कार का आरोप तो झूठा था.

न्यायाधीश महोदय बार-बार आरोप लगाते हैं कि पीड़िता ने 22 तारीख को ही यह बताया कि 4 लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया था और उन्हें नामित भी किया. वह बहुत ही आपत्तिजनक आरोप लगाते हैं कि पीड़िता को सिखाया-पढ़ाया गया था. उसके परिजनों और उससे मिलने वाले राजनैतिक कार्यकर्ताओं ने जान-बूझकर ऐसा किया था. सच तो यह है की पीड़िता ने 16-17 की रात में, जब उसे होश आया, अपने माँ से बताया था कि संदीप, रवि, रामू और लवकुश ने उसके साथ बलात्कार किया था. जब यह बात उसकी मां ने अस्पताल के डाक्टरों को बताई तो उन्होंने उससे कहा कि जब तक एफआईआर में बलात्कार की दफा नहीं जोड़ी जायेगी तब तक वे पीड़िता की जांच नहीं कर सकते हैं. यह बात बिलकुल गलत थी.

हाथरस केस: पीड़िता के परिवार को मिला अधूरा न्याय!
"आदमी सिर्फ एक वोट, एक नंबर, एक चीज बन कर रह गया है", विचारों में जिंदा हैं रोहित वेमुला

पीड़िता के पिता ने बेटी के बयान की जानकारी सीओ और एसपी को 18 तारीख को ही देने का प्रयास किया और उसका बायान को इतनी लचर तरीके से 22 तारीख को लिया की बाद में उन्हें इसी कारण निलंबित कर दिया गया था. बहरहाल, उस बयान में पीड़िता ने साफ-साफ सामूहिक बलात्कार की बात कही और चारों आरोपियों को नामित भी किया. इतना ही नहीं, सीओ के सामने बयान देने से पहले, पीड़िता के परिवार ने उसका इसी तरह का बयां देते हुए वीडियो भी डाला. शायद पीड़िता को अपनी मौत का अंदेशा था या उसे सरकारी मशीनरी पर कतई भरोसा नहीं रह गया था. या दोनों.

इसके बाद, पहला डाक्टरी जांच हुई और उसकी रिपोर्ट बताती है कि पीड़िता ने कहा कि उसके साथ बलात्कार हुआ है. रिपोर्ट के अंत में लिखा है ‘लोकल जांच के आधार पर मेरी राय है कि जबरदस्ती के संकेत हैं. पूरी तरह से सम्भोग हुआ की नहीं उस पर राय तब तक नहीं दी जायेगी जब तक फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं आ जाती.’ यह आखिरी बिंदु तो निरर्थक है क्योंकि डाक्टर जानते थे की इतने दिनों के बाद पीड़िता के कपडों पर से किसी तरह का प्रमाण मिलना नामुमकिन था. लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इस रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार होने की आशंका थी.

डाक्टरी जांच के बाद, पीड़िता के मृत्यु बयान को एक नायब तहसीलदार द्वारा रिकार्ड किया गया जबकि इस काम को मजिस्ट्रेट द्वारा करवाना चाहिए था. इस बयान को भी बड़े ही लचर तरीके से रिकोर्ड किया गया. न्यायाधीश महोदय यह तो मानते हैं कि इस बयान में पीड़िता कहती है की 4 आरोपियों ने उसे बाजरे के खेत में घसीटा लेकिन वे यह भी जोड़ देते हैं कि बलात्कार की बात नहीं कही गई है. वे पीड़िता के उन बयानों और वीडियो को बिलकुल ही नजर अंदाज कर देते हैं जिनमें उसने सामूहिक बलात्कार की बात स्पष्ट तौर पर की है. इस बयान में भी वह ‘जबरदस्ती’ शब्द का इस्तेमाल करती है, उसपर भी न्यायाधीश महोदय ध्यान नही देते हैं. ऐसा लगता है की वे आरोपियों की मदद करने में जुटे हुए हैं और एक पीड़िता, जिसकी बहुत ही दर्दनाक मौत हो चुकी है, उसके लिए उनके पास हमदर्दी के बजाय केवल हिकारत ही है. उस पीड़िता और उसके परिवार के लिए उनके पास संवेदना का एक शब्द नहीं है, उस जिलाधीश के लिए कोई आलोचना नहीं जिसने पीड़ित परिवार को बुरी तरह धमकाया था, उनके और पुलिस कप्तान के लिए निंदा के शब्द नहीं जिन्होंने जबरदस्ती पीड़िता की लाश का अंतिम संस्कार बिना परिवार की मौजूदगी के और उनके विरोध के बावजूद करवाया था.

हाथरस केस: पीड़िता के परिवार को मिला अधूरा न्याय!
OPINION: “सुरक्षित शहर में असुरक्षित लड़कियां”

पीड़िता और उसके परिवार पर जिंदगी और मौत में होने वाले तमाम प्रहारों में यह न्यायिक फैसला सिर्फ एक है. 14 सितम्बर, 2023 के उस दुःख भरे दिन के बाद से, परिवार का कोई सदस्य काम पर नहीं जा पाया है, परिवार का कोई बच्चा स्कूल नहीं जा पाया है, परिवार का कोई सदस्य बिना सीआरपीएफ की इजाजत के घर से बाहर निकल नहीं सकता है और उनकी इजाजत के बगैर उनसे कोई मिल भी नहीं सकता है. आज तक उन्हें सरकारी नौकरी और घर नहीं मिला है जबकि स्वयं मुख्यमंत्री ने उन्हें यह सब कुछ देने का वायदा किया था. लगातार उन्होंने मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की थी जो आज तक मानी नहीं गयी है.

अब 2 लम्बे वर्षों के बाद, तीन आरोपी इसके बावजूद छोड़ दिए गए हैं। न्यायाधीश महोदय ने यह माना कि पीड़िता ने अपने मृत्यु बयान में यह कहा था कि तीनों उसको बाजरे के खेत में घसीटने और फिर जबरदस्ती करने में शामिल थे. फिर भी, वह तीनों अब आजाद हैं लेकिन पीड़ित परिवार अपनी झोंपड़ी में ही कैद है. वे कांटेदार तार और सीआरपीएफ की बंदूकों से घिरे हुए हैं. न्याय उन्हें कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.

उत्तर प्रदेश के दलितों खास तौर से दलित महिलाओं के लिए न्याय की प्राप्ति और भी नामुमकिन लगने लगी है.

लेखिका सुभाषिनी अली, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्य, पूर्व सांसद, लोकसभा, उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ और एनसीडब्ल्यू की पूर्व सदस्य हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

Related Stories

No stories found.
The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com