"आदमी सिर्फ एक वोट, एक नंबर, एक चीज बन कर रह गया है", विचारों में जिंदा हैं रोहित वेमुला

रोहित वेमुला
रोहित वेमुलाPhoto Credit- Siddhesh Gautam
लेख- प्रवीण, पत्रकार

सात साल पहले रोहित वेमुला ने अपने पहले और आखिर खत में लिखा था, ''हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो चुकी हैं, हमारी मान्यताएं नकली हैं.''

''एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और संभावना तक सीमित कर दी गई है. आदमी सिर्फ एक वोट, एक नंबर, एक चीज बन कर रह गया है.''

क्यों रोहित वेमुला की दुनिया को अलविदा कहते वक़्त लिखी गई बातें सात साल गुजर जाने के बाद भी सही साबित होती हैं? हमें रोहित वेमुला के जाने पर बेहद दुख हुआ. हजारों लोगों ने रोहित वेमुला को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी. लेकिन सवाल यही है कि क्या हम वो बात समझ पाए जिसका दर्द रोहित वेमुला अपने पहले और आखिर खत में बयां करना चाहते थे?

हमारे दिलों में कितना अकेलापन कितना बढ़ता जा रहा है उसका एहसास भी रोहित वेमुला के आखिरी लेटर से होता है.

हम एक ऐसी दुनिया का हिस्सा बनकर रह गए हैं जहां हमारे अंदर बसने वाले डर ने हमसे बोलने की हिम्मत ही छीन ली है. हालांकि रोहित ने तो लड़ना ही चुना था, पर उस लड़ाई को लड़ते वक्त पैदा हुए अकेलेपन ने रोहित को हमसे छीन लिया.

उस इंसान के मन में कितनी वेंदना, कितनी पीड़ा रही होगी कि बहुत प्यार मिलने के बाद भी वो अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उभर ही नहीं पाया. क्यों उसको लिखना पड़ा कि ''मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं.''

जिन बातों को रोहित वेमुला अपने आखिरी लेटर के जरिए समझाना चाहते थे, अपनी पीड़ा को बताना चाहते थे, उस दर्द का एहसास तो छोड़ो हम उसे जान पाने से ही बेहद दूर हैं.

हम अपनी झूठी मान्यताओं से इस दुनिया में मौजूद इंसान की जान की कीमत तय करते हैं. हम एक इंसान को एक नंबर और एक चीज से ऊपर उठकर नहीं देख पाए हैं.

हमने सिर्फ झूठे पैमानों पर ही इंसानों को नापना सीखा है. इसलिए तो उन पैमानों पर खरा उतरने वाले इंसान की मौत हमें महीनों बाद तक दुख देती है, जबकि उन पैमानों के सामने हार जाने वाले इंसान की मौत से या तो हमें फर्क ही नहीं पड़ता या फिर चंद मिनटों में उसे भूल जाते हैं.

अगर सच में हर इंसान की जान को लेकर हमारी मान्यता और हमारी तकलीफ एक जैसी होती तो किसी सरकार, किसी पुलिस या किसी भी सिस्टम में इतनी हिम्मत नहीं कि वो किसी भी इंसान पर अत्याचार कर पाए.

हमें मान्यताओं के इस झूठे जाल को पहचानकर तोड़ना ही होगा, वरना आज नहीं तो कल ये सिस्टम आपको मरने पर मजबूर कर देगा या फिर आपकी जान ले लेगा.

इन मान्यताओं को तोड़ना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि साइंस का लेखक बनने की इच्छा रखने वाले किसी और रोहित वेमुला को सिर्फ एक खत लिखकर दुनिया से विदा नहीं लेनी पड़े.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति The Mooknayak उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार The Mooknayak के नहीं हैं, तथा The Mooknayak उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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