परम शांति से साक्षात्कार: धर्मशाला में दलाई लामा जी से अविस्मरणीय भेंट

धर्मशाला में हुई इस आध्यात्मिक भेंट में दलाई लामा जी की करुणा, शांति और बुद्ध दर्शन की झलक ने जीवन को बदल देने वाला अनुभव दिया।
धर्मशाला में हुई दलाई लामा से आध्यात्मिक भेंट
धर्मशाला में हुई दलाई लामा से आध्यात्मिक भेंट
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✍️ जागेश सोमकुवर 'कनिष्क', ओएनजीसी, मुंबई

दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस पर विशेष लेख

आज जब परम पावन 14वें दलाई लामा जी का 90वां जन्मदिवस हम सब श्रद्धा और शुभकामनाओं के साथ मना रहे हैं, तो मन स्वतः उस अनमोल दिन की स्मृतियों में लौट जाता है, जब हमें उनसे प्रत्यक्ष भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

26 अक्टूबर 2018 का दिन मेरे और मेरी जीवनसंगिनी सुहासिनी के जीवन में हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। वह कोई साधारण यात्रा नहीं थी — बल्कि शांति और करुणा से साक्षात्कार का दिव्य अनुभव था।

हम धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) पहुंचे तो हरे-भरे पहाड़, ठंडी मंद बयार और एक अलौकिक शांति जैसे हमें इस भेंट के लिए तैयार कर रहे थे। प्रकृति का हर दृश्य मानो कह रहा था — यह कोई साधारण मुलाकात नहीं, बल्कि जीवन को बदल देने वाला अनुभव होगा।

यह सौभाग्य हमारे आईपीएस मित्र आयु. अतुल फुलझेले जी की कृपा से संभव हुआ। वहीं, डीएसपी आयु. मुनीश डडवाल जी और उनकी टीम ने सुरक्षा और मुलाकात का सुंदर प्रबंध किया। मुनीश जी ने हमें सबसे अंत में दलाई लामा जी से मिलवाया ताकि हम उनसे अधिक समय तक बात कर सकें। आज भी हम उन मित्रों की सहृदयता और मदद के लिए हृदय से आभारी हैं।

जिस क्षण उनके निवास में प्रवेश किया, उनकी सुरक्षा में तैनात अधिकारी ने हमारा आत्मीय स्वागत किया और हमें परम पावन भंते से परिचय कराया — वह क्षण हमारे लिए शब्दातीत था। उनकी उपस्थिति में एक ऐसा चुंबकीय आकर्षण था जो हमें स्तब्ध और भावविभोर कर गया।

दलाई लामा जी से मिलते ही जो करुणा, अपनत्व और ऊर्जा का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। उनके चेहरे की मुस्कान में दिव्यता थी। उनकी दृष्टि गहरी थी, पर उसमें कोई भय नहीं — बल्कि एक ममत्व और कोमलता जो सीधे आत्मा को छू ले।

हमने उनके चरणों में झुककर प्रणाम किया। उन्होंने हमें आशीर्वाद दिया और आत्मीय मुस्कान से देखा। कुछ पल के लिए मानो समय रुक गया। वह क्षण इतना पवित्र था कि हमारी आँखें नम हो गईं। फिर हमने उनके साथ यह स्मरणीय क्षण कैमरे में भी कैद किया।

सबसे प्रभावी था उनका सादगीपूर्ण संवाद। कोई आडंबर नहीं, कोई प्रवचन नहीं — बस जीवन का सार:

"सच्चा धर्म प्रेम है, और सच्चा अनुयायी वही है जो दूसरों के दुःख को अपना समझे।"

उनके इन शब्दों ने जैसे हमारे जीवन की दिशा ही बदल दी।

मुलाकात के अंत में जब उन्होंने हमें अपने हाथों से एक सफेद 'काटा' (तिब्बती शुभ वस्त्र) भेंट किया, तो हमारी आँखें भर आईं। आज भी वह काटा हमारे लिए करुणा और शांति का प्रतीक बनकर सुरक्षित है।

हमने उनसे बाबासाहेब आंबेडकर जी की जयंती पर मुंबई आने का निवेदन किया। उन्होंने हमारे आग्रह को प्रेमपूर्वक सुना। उन्होंने अपनी लिखी एक पुस्तक पर हस्ताक्षर करके हमें भेंट दी। उस किताब पर उनका ऑटोग्राफ हमारे जीवन की अमूल्य निधि बन गई है।

सुहासिनी के प्रति उन्होंने बच्चों जैसी आत्मीयता और दुलार दिखाया। हमारी शादी की वर्षगांठ 25 अक्टूबर को थी — इससे बड़ा कोई उपहार नहीं हो सकता था। उनके साथ बिताया गया वह हर क्षण आज भी हमारे जीवन की सबसे उजली स्मृति है।

मदर टेरेसा से भी लिया करुणा का आशीर्वाद

यहाँ एक और स्मृति साझा करना चाहता हूँ। बाबासाहेब को प्रत्यक्ष देखने और मिलने का अवसर हमें नहीं मिला, इसका हमेशा खेद रहेगा। लेकिन जीवन ने हमें एक और महान आत्मा से मिलने का अवसर दिया।

इंजीनियरिंग कॉलेज (जबलपुर) के दिनों में मदर टेरेसा जी से भी भेंट हुई। उन्होंने अपने ममतामयी हाथ हमारे सिर पर रखकर तीन बार "God bless you!" कहा। वह आशीर्वाद आज भी हमारे जीवन की अनमोल पूंजी है।

ऐसे संतुलित, करुणामय और महान व्यक्तित्वों से मिलना वास्तव में सौभाग्य और संयोग की बात है।

बाबासाहेब आंबेडकर और दलाई लामा जी : करुणा और समानता के पथिक

यदि हम बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और दलाई लामा जी के जीवन-दर्शन पर दृष्टि डालें, तो हमें उनमें कई समानताएँ दिखती हैं।

दोनों ने तथागत बुद्ध के लोकतांत्रिक आदर्शों को अपनाया और मानवता के कल्याण के लिए अहिंसा और करुणा का मार्ग चुना। दोनों ने वंचितों और पीड़ितों के अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया। बाबासाहेब ने संविधान और क़ानूनी उपायों (Rule of Law) के माध्यम से सामाजिक न्याय का मार्ग दिखाया, तो दलाई लामा जी ने विश्व मंच पर अहिंसा, सहिष्णुता और करुणा का संदेश दिया।

बाबासाहेब को बोधिसत्व की उपाधि दी गई क्योंकि उन्होंने बौद्ध सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार और समावेशी समाज निर्माण में जीवन अर्पित किया। वहीं दलाई लामा जी को 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया क्योंकि उन्होंने तिब्बती संस्कृति, गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा के साथ-साथ विश्व में शांति और सह-अस्तित्व का संदेश फैलाया।

दलाई लामा जी आज भी मध्य मार्ग (Middle Path) की बात करते हैं। उनका मानना है कि अतिवाद से परे जाकर ही मानवता की रक्षा हो सकती है।

निष्कर्ष : उनके 90वें जन्मदिन पर मंगलकामनाएँ

आज जब परम पावन दलाई लामा जी 90 वर्ष के हो रहे हैं, हम सब उनके दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और कुशलता की मंगलकामना करते हैं।

उनकी करुणामयी वाणी और जीवन-दर्शन हमें शांति, प्रेम और भाईचारे की राह दिखाते रहें — यही प्रार्थना है।

वे सदा स्वस्थ, प्रसन्न और प्रेरणादायक बने रहें।

आप, हम और संपूर्ण विश्व — सभी का मंगल हो!

विशेष सिफारिश:

विद्वान भंते विमलकित्ती गुणसिरी जी ने दलाई लामा जी के जीवन और कार्यों पर बहुत सुंदर प्रकाश डाला है। उनके व्याख्यान को इस यूट्यूब लिंक पर सुन सकते हैं:

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