पश्चिम बंगाल: पंचायत चुनाव परिणामों के बाद 'असमान्य गठबंधन', लेफ्ट और बीजेपी एक साथ!

पंचायतों के बोर्ड गठन के लिए किया एक दूसरे का समर्थन, राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार 2024 आम चुनावों में बन सकते है नए समीकरण
पश्चिम बंगाल: पंचायत चुनाव परिणामों के बाद 'असमान्य गठबंधन', लेफ्ट और बीजेपी एक साथ!

नई दिल्ली। दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलों में निकाय चुनाव के बाद भारतीय ट्राइबल पार्टी को रोकने के लिए एक जाजम पर आईं धुरविरोधी भाजपा और कांग्रेस का गठबंधन पुरानी बात हो गई है, लेकिन इस गठजोड़ ने देश में एक नई तरीके की राजनीति का आगाज किया है। इनके पदचिन्हों पर चलते हुए अब पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पाटिर्यों और भाजपा ने भी पंचायत चुनावों में कुछ जिलों में तृणमूल कांग्रेस को रोकने के लिए असमान्य गठबंधन किया है।

यहां लेफ्ट और राइट आए साथ

पश्चिम बंगाल में 22 जिलों की 63,229 ग्राम पंचायत सीटों, पंचायत समिति की 9,730 सीटों और जिला परिषद की 928 सीटों पर चुनाव गत माह जुलाई में सम्पन्न हुए। यहां पूर्वी मेदिनापुर की तीन पंचायतों में बोर्ड गठन के लिए सीपीआई ने बीजेपी से गठबंधन किया है। महिषादल अमृत बेरिया ग्राम पंचायत बोर्ड का गठन गत बुधवार को हुआ। इसमें 18 में से 8 सीटों पर बीजेपी, 8 पर तृणमूल और बाकी 5 सीट पर सीपीएम ने जीत दर्ज की। यहां सीपीआई एम के 2 सदस्यों ने बीजेपी को समर्थन दिया है। बीजेपी ने 10 सीटों से बेरिया पंचायत में बोर्ड बनाया।

उधर, पूर्वी मेदिनीपुर के तमलुक के कोलाघाट ब्लॉक की ग्राम पंचायत नंबर-1 पर भी बीजेपी गठबंधन ने कब्जा कर लिया है। बीजेपी ने निर्दलीय और सीपीएम के साथ मिलकर पंचायत बोर्ड का गठन किया. यहां कुल 17 सीटें थीं। इसमें तृणमूल कांग्रेस को 8, बीजेपी को 7, निर्दलीय को 1 और सीपीएम को 1 सीट मिली। वहीं, सिद्धा-1 ग्राम पंचायत में निर्दलीय कैंडिडेट नौरीन सुल्ताना को प्रमुख और बीजेपी स्मृतिधर चक्रवर्ती को उप प्रमुख चुना गया। सीपीएम ने निर्दलीय प्रमुख का समर्थन किया। इसके बाद सीपीएम, बीजेपी ने निर्दलियों के साथ मिलकर बोर्ड का गठन किया।

केन्द्रीय व राज्य की राजनीति पर प्रभाव नहीं

स्थानीय पत्रकार स्वरेन्दु अधिकारी ने बताया कि यह गठबंधन वैचारिक से ज्यादा स्थानीय परिस्थितियों को देखकर बनाया गया है। अगर कांग्रेस पार्टी या अन्य किसी पार्टी के सदस्य जीतकर आए होते तो तस्वीर कुछ और हो सकती थी। इधर, दोनों ही पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बताया कि गठबंधन का उद्देश्य वैचारिक मान्यताओं का सख्ती से पालन करने के बजाए स्थानीय लोगों के कल्याण का प्राथमिकता देना है। लोकल लेवल पर तृणमूल कांग्रेस को पॉवर से दूर रखने के लिए यह नया समीकरण बना है।

तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ सैफ आजम ने कहा कि तृणमूल पार्टी की लोकप्रियता पर ग्रहण लगाने के लिए सियासी पार्टियां अपने वैचारिक दृष्टिकोण से समझौत कर रही है। ये सत्ता के लिए किसी भी स्तर पर जा सकती है। इधर, सीपीआईएम के केन्द्रीय समिति सचिव राबिन देव ने लोकल मीडिया में दिए बयान में कहा कि कई जगहों पर तृणमूल कांग्रेस बोर्ड को बनाने के लिए विजेता प्रत्याशियों को तोड़ रही थी। ऐसे में इस तरीके का गठबंधन होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह बंगाल या राष्टीय राजनीति में पार्टी का निर्णय नहीं है। इधर, बीजेपी प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा कि इस तरीके के फैसले का पार्टी समर्थन नहीं करती है।

आइडिया आफ इण्डिया खतरे में

पश्चिम बंगाल में हुए नए राजनीतिक उभार पर किसान नेता राजीव यादव ने कहा कि 2024 के आम चुनावों के मददेनजर बनाए गए प्री पोल गठबंधन इंडिया के लिए यह बहुत ही विरोधाभासी बात है। इससे यह पता चलता है कि जमीनी स्तर पर यह गठबंधन प्रभावी नहीं है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

राजस्थान में भी हुआ था ऐसा ही प्रयोग

राजनीति में एक-दूसरे की कट्टर विरोधी मानी जाने वाली भाजपा और कांग्रेस ने राजस्थान जिला परिषद चुनाव में प्रमुख पद के लिए खड़े हुए एक तीसरी पार्टी के उम्मीदवार को रोकने के लिए हाथ मिलाया था। दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल जिले डुंगरपुर में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) द्वारा समर्थित प्रत्याशी को अपने अस्तित्व पर खतरा मानते हुए दोनों पार्टियों ने साथ आने का निर्णय लिया था। इसकी एक वजह यह थी कि जिला परिषद चुनाव में बीटीपी ने 27 निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन किया था, इनमें से 13 ने जीत हासिल की थी।

जबकि भाजपा को 8 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं। ऐसे में जिला प्रमुख पद पर बीटीपी के जीतने के सबसे ज्यादा मौके थे। जहां, बीटीपी समर्थित सभी 13 जिला परिषद सदस्यों ने अपनी उम्मीदवार पार्वती डोडा का समर्थन किया था, वहीं भाजपा-कांग्रेस के सदस्यों ने भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सूर्य अहरी के पक्ष में वोट किए, ताकि बीटीपी को जिला प्रमुख पद पर पहुंचने से रोका जा सके। सूर्य अहरी खुद आदिवासी हैं और 12वीं तक पढ़ाई कर चुकी हैं। वे डुंगरपुर के गलियाकोट पंचायत समिति की पूर्व प्रधान रही हैं। जिला परिषद के प्रमुख पद के लिए उन्हें भाजपा और कांग्रेस की वजह से 14 वोटों के साथ बहुमत मिला, जबकि उनके खिलाफ खड़ीं बीटीपी समर्थित पार्वती डोडा एक वोट से पिछड़ गईं थीं।

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