लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने मंगलवार देर रात अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद को उनके पद से हटाने का ऐलान किया. इस ऐलान ने पार्टी कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया है. इसके बाद से ही अटकलों का बाजार गर्म है। पार्टी पदाधिकारियों ने इस निर्णय पर चुप्पी साध रखी है. वहीं राजनीतिक विश्लेषक सकारात्मक नकारात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं. इस निर्णय का बीएसपी के चुनावी अभियान पर क्या असर पड़ेगा? इसको समझने से पहले बसपा प्रमुख ने अपने ट्वीट में क्या कहा जानते है.
मायावती ने अपने ट्वीट में लिखा, "विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेन्ट है जिसके लिए मान्य. श्री कांशीराम जी व मैंने ख़ुद भी अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है.’’
उन्होंने लिखा, "इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनन्द को नेशनल कोऑर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किन्तु पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम ज़िम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है. जबकि इनके पिता श्री आनन्द कुमार पार्टी व मूवमेन्ट में अपनी ज़िम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे.''
सवाल ये है कि मायावती ने ऐसे वक़्त पर ये कदम क्यों उठाया, जब लोकसभा चुनाव के चार चरण बाकी हैं. वो भी पार्टी के स्टार प्रचारक आकाश आनंद के ख़िलाफ़ जिन्होंने पिछले कुछ समय से अपनी रैलियों से बीएसपी को मतदाताओं के बीच काफ़ी चर्चा में ला दिया था.
इस पर बसपा यूपी प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने द मूकनायक से कहा- "बसपा अध्यक्ष मायावती जी जो भी निर्णय लेती है वो पार्टी के हित में होता है। यह निर्णय भी उन्होंने सोच समझकर लिया होगा. इसमें पार्टी व आकाश आनंद जी का हित निहित है." हालांकि इससे बसपा के चुनावी अभियान पर पड़ने वाले सवाल का उन्होंने जवाब नहीं दिया.
मायावती ने लिखा है कि पूर्ण परिपक्वता होने तक आकाश आनंद को दोनों अहम ज़िम्मेदारियों (नेशनल को-ऑर्डिनेटर और उत्तराधिकारी) से अलग किया जा रहा है. तो सवाल ये है कि क्या वो आकाश आनंद को राजनीतिक तौर पर पूरी तरह परिपक्व नहीं मानती हैं?
आकाश आनंद अपनी पिछली कुछ चुनावी रैलियों में बेहद आक्रामक अंदाज़ में दिखे हैं.
इन रैलियों में आक्रामक भाषणों की वजह से उनके ख़िलाफ़ सीतापुर में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में दो केस दर्ज किए गए थे. 28 अप्रैल को उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सरकार की 'तालिबान से तुलना' करते हुए उसे ‘आतंकवादियों’ की सरकार कहा था. इसके अलावा उन्होंने लोगों से कहा था कि वो ऐसी सरकार को जूतों से जवाब दे.
इस आक्रामक भाषण पर हुए मुक़दमे के बाद ही आकाश आनंद ने 1 मई को ओरैया और हमीरपुर की अपनी रैलियां रद्द कर दी थीं.पार्टी की ओर से ये कहा गया है कि परिवार के एक सदस्य के बीमार पड़ने की वजह से ये रैलियां रद्द की गई हैं.
इस पर स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन ने द मूकनायक से कहा-"ज्यादा यूटयूब और मीडिया कवरेज देखकर, कैंपस के छात्रों की सी प्राथमिकताओं में उत्साहित और आक्रोशित होकर, चंद्रशेखर आजाद, कन्हैया कुमार, पप्पू यादव बना जा सकता है! बोनस में सांसद बना जा सकता है. नेता नहीं. बहन जी का सही फैसला है."
"आकाश आनंद को कुछ दिन और कैडर ट्रेनिंग की जरूरत है. वैसे वे आधे ट्रेंड हो चुके हैं, पढ़े लिखे हैं, बढ़िया बोलते हैं. समाज और मिशन की समझ है. बस, थोड़ा सा यूटयूब, ट्विटर, फेसबुक और मीडिया के लाइक बटोरू आक्रामक टिप्पणीकारों के प्रभाव में आ गए होंगे. आगे फिर जिम्मेवारी ले सकते हैं." चंदन ने कहा.
द मूकनायक से चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सतीश कुमार ने कहा-'' मीडिया में यह प्रचारित किया गया है कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम है. बसपा ने किसी भी दल से गठबंधन नहीं करके व लोकसभा चुनाव में प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरण में मजबूत प्रत्याशी उतार कर इस मिथक को तोड़ दिया. इसलिए बीजेपी की नाराजगी या खुशी का कोई सवाल नहीं उठता है."
सतीश ने आगे कहा- "मायावती का ये कहना ठीक है कि आकाश आनंद अभी परिपक्व नहीं हैं. दरअसल आकाश आनंद ने चुनावों के बीच ये कहना शुरू कर दिया था कि उनकी पार्टी चुनाव के बाद किसी से भी गठबंधन कर सकती है. मेरे ख़्याल से उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था.''
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती और उनकी पार्टी के लिए ये लोकसभा चुनाव ‘करो या मरो’ का चुनाव है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ी थी. पार्टी ने दस सीटें जीती थीं लेकिन इसे सिर्फ़ 3.67 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2009 के चुनाव में इसने 21 सीटें जीती थीं. जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी में वो सिर्फ एक सीट जीत पाई.
द मूकनायक से वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सैय्यद कासिम हुसैन कहते हैं कि मायावती के बीजेपी से गठबंधन के कयास लगाए जाते रहे हैं. पिछले कुछ अर्से से बीएसपी बीजेपी के प्रति कम आक्रामक दिखी है. "इस चुनाव प्रचार के दौरान आकाश आनंद जिस तरह से आक्रामक शैली में भाषण दे रहे थे उससे उन्हें समाजवादी पार्टी को फायदा होता दिख रहा था. शायद यही वजह है कि मायावती ने आकाश आनंद को नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से हटाकर हालात संभालने की कोशिश की है.’’
आकाश आनंद की चुनावी रैलियों ने पिछले दिनों ख़ासी हलचल पैदा की है. बीएसपी पर नज़र रखने वालों का कहना है कि उनकी रैलियों ने कम से कम यूपी में बीएसपी समर्थकों में एक नया जोश पैदा किया था. ऐसे में उन्हें नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से हटाए जाने पर पार्टी के युवा मतदाता निराश महसूस करेंगे.
सैय्यद कासिम हुसैन कहते हैं कि चुनाव के वक़्त ऐसे फ़ैसलों से मतदाताओं में ये संदेश जा सकता है कि बीएसपी में अपनी रणनीति को लेकर असमंजस की स्थिति है और वो पार्टी से दूर जा सकते हैं. दूसरी ओर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती बेहद सधी हुई राजनेता हैं. ऐसे समय में जब बीएसपी का जनाधार कम होता दिख रहा है तो वो बीजेपी के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपना कर अपनी पार्टी को संकट में नहीं डालनी चाहतीं.
द मूकनायक से बीएसपी के लखनऊ महानगर अध्यक्ष शैलेष गौतम का कहना है कि बसपा एक कैडर बेस्ड पार्टी है जो कार्यकर्ताओं के मेहनत पर चुनाव लड़ती है. दूसरी बात आकाश आनंद को पदों की जिम्मेदारी वापस ली गई है. पार्टी में वे पूर्व की तरह सक्रिय रहेंगे. इससे पार्टी के चुनाव अभियान पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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