महत्वपूर्ण भूमिका में सर्वोच्च न्यायालय: चुनावी बॉन्ड और अब तथ्य जांच इकाई पर रोक, विकसित भारत का व्हाट्सअप संदेश भी नहीं भेज सकते!

लोकसभा चुनाव को लेकर हाल के कुछ महीनों से सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में दिख रहा है। शीर्ष न्यायालय की ओर से हाल में आए कुछ मामलों के फैसले भारतीय लोकतंत्र में ऐतिहासिक माने जा रहे हैं।
पीएम मोदी और सुप्रीम कोर्ट
पीएम मोदी और सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। पहले चुनावी बॉन्ड को अवैध बताते हुए पार्टियों को बॉन्ड द्वारा दिए गए चंदे का डेटा सार्वजनिक करने का आदेश, फिर फ़ैक्ट चेकिंग के लिए PIB की इकाई को अधिसूचित करने से रोकने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश आगामी लोकसभा चुनाव की दशा और दिशा बदलने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। जब लगातार विपक्ष केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगा रहा है, तब सुप्रीम कोर्ट के ये निर्णय कहीं-न-कहीं विपक्षी पार्टियों में उम्मीद जगा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को PIB की फैक्ट चेक इकाई संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र द्वारा फर्जी खबरों या गलत सूचनाओं से निपटने के लिए प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत तथ्य जांच इकाई को अधिसूचित करने के एक दिन बाद ही यह रोक लगाई है।

बंबई हाई कोर्ट के रोक न लगाने के 20 मार्च के फैसले को रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि बंबई हाई कोर्ट में नए आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। इसमें मुख्य तौर पर बोलने की आजादी का मुद्दा उठाया गया है। हम इस मामले में गुण दोष पर कुछ नहीं कहना चाहते। इस पर फैसला हाई कोर्ट को करना है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तब तक नियमों पर रोक रहेगी, यह फैसला लागू रहेगा। केंद्र सरकार के नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को चुनौती देने वाली स्टैंड-अप कामेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर रोक का आदेश दिया। याचिका में केंद्र सरकार द्वारा पारित 2023 के सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम के तहत फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) बनाने के लिए केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की गई थी। 

2023 के आईटी संशोधन नियम के तहत केंद्र सरकार का इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय एक जांच निकाय बना सकता है। जिसके पास किसी भी गतिविधि के संबंध में झूठी या भ्रामक ऑनलाइन खबरों की पहचान करने और टैग करने का अधिकार है। 

याचिका में कहा गया कि जांच इकाई सोशल मीडिया कंपनियों को केंद्र सरकार के बारे में ऑनलाइन कंटेंट पर प्रतिबंध के लिए मजबूर करेगा। बंबई हाई कोर्ट ने 11 मार्च को इस याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके बाद हाई कोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि यह पहली नजर में नियमों को लागू करने पर रोक लगाने का मामला बनता है। केंद्र सरकार ने इंटरनेट मीडिया पर फर्जी सामग्री की पहचान करने के लिए तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित की थी। आईटी नियम के संशोधन के मुताबिक केंद्र सरकार से जुड़ी ऐसी जानकारी को, जिसे जांच इकाई फर्जी पाएगी, सोशल मीडिया मंचों को हटाना होगा अन्यथा उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा। केंद्र ने तथ्यों की जांच करने वाली इकाई को 2021 के आईटी नियमों के तहत अधिसूचित किया था।

अधिसूचना में कहा गया था कि केंद्र सरकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत तथ्य जांच इकाई को केंद्र सरकार की तथ्य जांच इकाई के रूप में अधिसूचित करती है। तथ्य जांच इकाई केंद्र सरकार से संबंधित सभी फर्जी खबरों या गलत सूचनाओं से निपटने या सचेत करने के लिए नोडल एजेंसी होगी। यह अधिसूचना बंबई हाई कोर्ट द्वारा केंद्र को इकाई को अधिसूचित करने से रोकने से इनकार करने के कुछ दिन बाद आई थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी है।

सोशल मीडिया पर फर्जी और गलत सामग्री की पहचान के लिए एक दिन पहले ही सरकार ने तथ्य जांच इकाई की अधिसूचना जारी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारी राय है कि अंतरिम राहत का अनुरोध खारिज होने के बाद 20 मार्च, 2024 को जारी अधिसूचना पर रोक लगाने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि यह पहली नजर में नियमों को लागू करने पर रोक लगाने का मामला बनता है।

व्हाट्सएप पर विकसित भारत संदेश तुरंत बंद करें: निर्वाचन आयोग

भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने गुरुवार को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को निर्देश जारी कर कहा कि वह विकसित भारत संपर्क के तहत बड़ी संख्या में वाट्सएप संदेश भेजना तुरंत बंद करे। इस मामले में कई शिकायतें मिलने के बाद आयोग ने यह कार्रवाई की है।

शिकायतों में कहा गया था कि आम चुनाव 2024 की घोषणा और आचार संहिता लागू होने के बावजूद सरकार की विभिन्न पहल को रेखांकित करने वाले ऐसे संदेश अभी भी आम जनता के फोन पर भेजे जा रहे हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इस संदेश पर आपत्ति जताई थी और आयोग से कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। 

निर्वाचन आयोग का यह कदम लोकसभा चुनाव में समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए उसके द्वारा लिए गए निर्णयों का हिस्सा है। इस संबंध में आयोग ने केंद्रीय मंत्रालय से अनुपालन रपट भी तलब की है। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने निर्वाचन आयोग को सूचित किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पत्र के साथ जारी संदेश 16 मार्च को आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले भेजे गए थे।

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