राजस्थान: विधानसभा चुनावों में दलित और आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगा कर भाजपा सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने में कामयाब रही है। दलित-आदिवासी मतदाताओं को अंतिम समय तक अपने साथ रख पाने में कांग्रेस चूक गई। इतना नहीं कांग्रेस परंपरागत मुस्लिम मतदाताओं के बिखराव को रोकने में भी नाकाम साबित हुई है। मुस्लिम वोटर्स के बिखराव ने भी भाजपा की राह आसान की है। भरतपुर जिले की कामा सीट का परिणाम बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। कांग्रेस ने विरोध के बावजूद विधायक एवं मंत्री जाहिदा खान को टिकट दिया। कांग्रेस के मुख्त्यार ने बगावत कर भाजपा की नोक्षम चौधरी की जीत आसान कर दी। दूसरे स्थान पर रहे बागी प्रत्याशी ने कांग्रेस के टिकट वितरण के निर्णय को गलत साबित किया।
जल, जंगल, जमीन पर अपने हक और अधिकारों की बात के तीन महीने पहले वजूद में आई बीएपी (भारतीय अधिवासी पार्टी) ने अपने संघर्ष से सभी को चौंका दिया। बीएपी पहली बार में ही राजस्थान में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बीएपी की आंधी में बीटीपी गुम हो गई। गत चुनाव में दो सीटों पर चुनाव जीत कर आई बीटीपी इस बार एक भी सीट पर चुनाव नहीं जीत सकी। जबकि गत चुनाव तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बसपा भी दो सीट पर सिमट कर रह गई।
चौरासी सीट से राजकुमार रोत 69 हजार से अधिक वोट से जीत कर आए। इसी तरह धरियावाद से थावर चंद व आसपुर से उमेश मीणा की जीत ने राजस्थान की दोनों प्रमुख पार्टियों को संकट में डाल दिया। घाटोल सीट पर बीएपी के अशोक कुमार महज 3691 मतों पिछड़ गए। बागीदौरा से जयकृष्ण पटेल, डूंगरपुर से कांतिलाल रोत, सागवाड़ा से मोहनलाल रोत भी सीधी टक्कर में चुनाव हारे हैं। बीएपी के चुनावी मुकाबले ने सभी को चौंका दिया है। जबकि उदयपुर ग्रामीण से अमित कुमार खराड़ी, कुंभलगढ़ से डॉ. राम मीणा, सलूंबर से जीतेश कुमार मीणा, पिंडवाड़ा आबु से मेघराम गरासिया, गोगुंदा से उदयलाल भील व झाड़ोल से दिनेश पंडोर तीसरे स्थान पर रहे।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम बहुजन समाज पार्टी के बिखरा की ताबीर लिखते नजर आ रहे हैं। गत चुनाव में 6 सीटों पर विजय पताका फहराने वाली बुजन समाज पार्टी इस बार केवल दो सीटों पर ही जीत पाई। यह दलित मदाताओं के बिखराव की और इशारा करता है। बाड़ी से जसवंत गुर्जर व सादुलपुर से मनोज कुमार ही बसपा का जीत दिला पाए। खेतड़ी व धौलपुर में बसपा के प्रत्याशी सीधे मुकाबले में चुनाव हार गए। यहां 26 सीटों पर बसपा तीसरे स्थान पर रही। इनमें भरतपुर सीट पर गिरीश चौधरी, नदबई से खेमकरण सिंह, बामनवास से मनोज कुमार, अलवर ग्रामीण स जगदीश प्रसाद, अलवर शहर से नेहा शर्मा, हिण्डौन मे ब्रजेश कुमार जाटव, करौली से रविन्द्र, सूरजगढ़ से दारा सिंह, सपोटरा से विजय कुमार, किशनगढ़ बास से सिमरत संधु, बांदीकूई से भवानी सिंह, डीग-कुम्हेर से हरीओम शर्मा, भीम से हुकमाराम, पीपलदा से श्यामलाल, सांगोद से प्रभूलाल, मसूदा से वाजिद चीता, कोटा दक्षिण से डॉ. कृष्णनंद शर्मा, लाडनू से नियाज मोहम्मद खान, मांडल से रामेश्वर लाल जाट, रामगंज मंडी से डॉ. भरतकुमार, सुमेरपुर से जीवाराम राणा, किशनगंज से रामदयाल मीना, बांरा-अटरू से सुरेश कुमार मानव, जहाजपुर से भारती ठाकुर, निम्बाहेड़ा से राधेश्यम मेघवाल, झालवाड़ स मकसूद तीसरे स्थान पर रहे।
आजाद समाज पार्टी ने राजस्थान में प्रवेश के साथ ही आरएलपी से गठबंधन कर चुनाव में दस्तक दी, लेकिन गठबंधन में सफल नहीं हो सकी। राजस्थान में आजाद समाज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। केवल एक सीट पर सीधी टक्कर रही। जबकि 11 सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। हालांकि, बानसूर सीट पर रोहिताश कुमार भाजपा के देवीसिंह शेखावत से सीधी टक्कर में बहुत कम अंतर 7420 वोट से हार गए। इसके अलावा सिकरास से मनीषा देवी, दौसा से राधेश्याम, विराटनगर से रामचंद्र सराधनी, फुलेरा से राकेश जोया, तिजारा स उधमीराम, नगर से नेमसिंह, मुंडवार से अंजली यादव, महवा से मुकुल, सोजत से रामचंद, हिंडौली से आसपा के प्रदेशाध्यक्ष रामलखन मीणा, गुढ़ामलानी से प्रभुराम तीसरे स्थान पर रहे।
राजस्थान में गत विधानसभा चुनाव में तेजी से उभरती दिख रही आरएलपी इस बार बुरी तरह पिछड़ गई। पार्टी प्रमुख हुनमान बैनीवाल ही यहां चुनाव जीत पाए। दो सीटों पर सीधी टक्कर में चुनाव हारा और पैंतीस सीटों पर तीसरे स्थान पर रहे। आरएलपी के खींवसर से पार्टी प्रमुख हुनमान बैनीवाल ही जीत पाए। जबकि बायतु से उम्मेदाराम महज 910 वोट से पिछड़ गए। भोपालगढ़ से पुखराज गर्ग दूसरे स्थान पर रहे। इनके अलावा वैर सीट से सुनील कुमार, चौमू से छुट्टन लाल यादव, खंडार से अंकिता वर्मा, पीलीबंगा से सुनील कुमार, दूदू से हुनमान प्रसाद बैरवा, बगरू से ताराचंद रैगर, निवाई से नारायण बैरवा, सुजानगढ़ से बाबूलाल कुलदीप, आमेर से विनोद जाट, चाकसू से विवेक खोलिया, देवली-उनियारा से विक्रम सिंह, नीमकाथाना से राजेश कुमार, पुष्कर से अशोक सिंह, बीकानरे पूर्व मनीष विश्नोई, चौहटन स तरुणराय कागा, लूणी से बद्रीलाल, बिलाड़ा से जगदीश कडेला, पाली से डूंगरराम, आसींद से धनराज गुर्जर, जैसलमेर से घुवीर सिंह, मावली से कुलदीप सिंह चुंडावत, सहाड़ा से बद्रीलाल जाट, जायल से भंवरलाल भाटी, पोकरण से देवीलाल, लौहावट स सत्यनारायण विश्नोई, कपासन से आनंदीराम, शेरगढ़ से जोराराम, बेंगु स नरेश कुमार गुर्जर, मेड़ता से इंदिरा देवी, मांडलगढ़ से भैरूलाल गुर्जर, डेगाना से लक्षमण सिंह मुवाल, पचपदरा से थानसिंह डोली, मकराना से अमरसिंह, परबतसर से लच्छाराम, जोधुपर से अजय त्रिवेदी तीसरे स्थान पर रहे।
सिरोही का कार्तिक भील प्रकरण भुलाया नहीं जा सकता। कार्तिक का परिवार आज भी जिला मुख्यालय पर धरना देकर न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है। इस बार सिरोही के आदिवासी व दलित समाज ने कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। यहां दलित आदिवासियों में कांग्रेस के संयम के अहम के प्रति गुस्सा था। और चुनावों में यह गुस्सा फूट पड़ा। यही वजह है कि सीएम सलाहकार संयम लोढा को हार का मुंह देखना पड़ा।
आपको को बता दें कि, सिरोही में कार्तिक भील हत्याकांड में शिवगंज की पोस कॉलोनी में कार्तिक के मकान को लेकर कांग्रेस विधायक एवं सीएम सलाहकार संयम लोढ़ा की भूमिका को लेकर पीड़ित परिवार सवाल उठाता रहा है, लेकिन कांग्रेस सरकार ने पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की बजाय नजर अंदाज रखा। इस बार सिरोही से भाजपा के पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी को जीत मिली। कांग्रेस दलित आदिवासियों को साधने में नाकाम रही है।
आम आदमी को 0.38 प्रतिशत, एआईएमआईएम को 0.01 प्रतिशत, भाजपा को 41.69 प्रतिशत, बीएसपी 1.82 प्रतिशत, सीपीआई 0.04 प्रतिशत, सीपीआई(एम) को 0.96 प्रतिशत, सीपीआई (एमएय)(एल) को 0.01 प्रतिशत, कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत, जेएनजेपी को 0.14 प्रतिशत, एलजेपीआरवी को 0.01 प्रतिशत, नोटा को 0.96 प्रतिशत, आरएलपी को 2.39 प्रतिशत, एसएचएस को 0.15 प्रतिशत, एसपी को 0.01 प्रतिशत, अन्य 11.90 प्रतिशत।
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