MP: नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का आरोप- "SIR प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ों पर हमला, मतदाता अधिकारों पर संकट"

उमंग सिंघार ने आगे कहा कि SIR की प्रक्रिया यदि पारदर्शी और संतुलित नहीं की गई, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार प्रेस कॉन्फ्रेंस
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भोपाल। मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने आज भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर चुनाव आयोग द्वारा घोषित विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया पर गंभीर आपत्तियाँ जताईं। उन्होंने इसे Selective Intensive Removal यानी चयनात्मक मतदाता हटाव की प्रक्रिया बताते हुए कहा कि यह लोकतंत्र की जड़ों पर सीधा आघात है। सिंघार ने कहा कि आयोग की जल्दबाज़ी और अपारदर्शिता से करोड़ों वैध मतदाताओं, विशेषकर दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची से हटने का खतरा पैदा हो गया है।

राष्ट्रीय स्तर पर उठे सवाल- ‘SIR की जल्दबाज़ी या सुनियोजित रणनीति?’

सिंघार ने बताया कि चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर 2025 को SIR के दूसरे चरण की घोषणा की है, जो 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 नवंबर 2025 से 7 फरवरी 2026 तक चलेगा। इस दौरान आयोग दावा कर रहा है कि वह 51 करोड़ मतदाताओं की घर-घर गिनती केवल 30 दिनों में पूरी करेगा।

सिंघार ने सवाल उठाया, “इतनी विशाल और जटिल प्रक्रिया मात्र एक महीने में कैसे पूरी हो सकती है?” उन्होंने कहा कि यह या तो आयोग की जमीनी समझ की कमी है या फिर किसी नीतिगत जल्दबाज़ी का परिणाम है, जिससे लाखों वैध मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि SIR में शामिल किए गए 12 राज्यों का चयन आधारहीन और अपारदर्शी है। चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इन राज्यों को क्यों चुना गया और अन्य राज्यों को क्यों छोड़ा गया। असम को SIR से बाहर रखने के निर्णय पर भी सिंघार ने सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि असम में NRC लागू होने का कारण बताना उचित नहीं है, क्योंकि NRC नागरिकता से संबंधित प्रक्रिया है, जबकि SIR मताधिकार से जुड़ा है। यह भेदभावपूर्ण रवैया पक्षपात की गंध देता है।

सिंघार ने Special Summary Revision (SSR) और SIR की तुलना करते हुए कहा कि यदि SSR प्रक्रिया पर्याप्त नहीं थी, तो पहले उसकी विफलताओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए था। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां SIR लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को कई बार हस्तक्षेप करना पड़ा और आयोग पारदर्शी आंकड़े देने में नाकाम रहा। बिहार में विदेशी प्रविष्टियों और गलत नामों की वास्तविक संख्या आज तक सार्वजनिक नहीं की गई।

उन्होंने कहा कि जब देश में अक्टूबर 2026 में राष्ट्रीय जनगणना की प्रक्रिया शुरू होनी है, तो SIR की इस जल्दबाज़ी से आयोग की मंशा पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।

मध्यप्रदेश में आदिवासियों, दलितों और प्रवासियों पर संकट

सिंघार ने मध्यप्रदेश में SIR के संभावित प्रभावों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 22 प्रतिशत आदिवासी आबादी है, जिनमें से अधिकांश दूरस्थ और वन क्षेत्रों में रहते हैं। इन क्षेत्रों में दस्तावेज़ी और डिजिटल पहुँच सीमित है, जिसके चलते लाखों आदिवासी मतदाता बिना किसी गलती के सूची से बाहर हो सकते हैं।

उन्होंने बताया कि आयोग ने SIR प्रक्रिया के लिए 13 प्रकार के दस्तावेजों को आवश्यक बताया है, जिनमें वन अधिकार पत्र भी शामिल है। लेकिन राज्य सरकार ने मार्च 2025 तक 3 लाख से अधिक वन अधिकार दावों को खारिज कर दिया था। ऐसे में जिन आदिवासियों के पास प्रमाणपत्र नहीं है, वे मतदाता सूची से हट सकते हैं।

सिंघार ने आगे कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 25 लाख मध्यप्रदेशवासी दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर के रूप में कार्यरत हैं। इतनी तेज़ और सीमित समय वाली गिनती से उनके नाम हटने की आशंका बढ़ जाती है। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ आदिवासियों की समस्या नहीं है, बल्कि दलित, अल्पसंख्यक और छोटे OBC समुदायों पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।”

उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां SIR प्रक्रिया के बाद लगभग 47 लाख नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए। यदि यही पैटर्न अन्य बड़े राज्यों में दोहराया गया, तो करोड़ों मतदाता लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित हो सकते हैं।

वोट चोरी पर अब तक कोई जवाब नहीं: सिंघार

सिंघार ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने 19 अगस्त 2025 को ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मध्य प्रदेश में चल रही वोट चोरीका मुद्दा उठाया था। उन्होंने बताया कि उस समय उन्होंने ठोस आँकड़ों और प्रमाणों के साथ मतदाता सूचियों में असामान्य और संदिग्ध वृद्धि के उदाहरण दिए थे। लेकिन आज तक न तो राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और न ही भारत निर्वाचन आयोग ने इस पर कोई जवाब दिया।

उन्होंने कहा कि केवल दो महीनों (अगस्त से अक्टूबर 2023) के भीतर 16 लाख से अधिक नए मतदाता जोड़े गए, यानी औसतन हर दिन 26,000 से अधिक नाम। यह बढ़ोतरी सामान्य नहीं हो सकती। सिंघार ने यह भी बताया कि 9 जून 2023 को भारत निर्वाचन आयोग ने एक आदेश जारी कर कहा था कि मतदाता सूची में हुए जोड़, हटाव और संशोधन सार्वजनिक वेबसाइट पर न डाले जाएँ और न ही यह जानकारी किसी पक्ष के साथ साझा की जाए। जब आयोग खुद पारदर्शिता से बचना चाहता है, तो SIR जैसी प्रक्रिया पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि SIR की मौजूदा रूपरेखा मतदाता अधिकारों और कमजोर वर्गों के प्रतिनिधित्व पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा, “यह मतदाता सूची की सफाई नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल अधिकारों की कटौती और नियंत्रण की प्रक्रिया है।” उन्होंने कहा कि SIR में नाम हटने की स्थिति में पूरी जिम्मेदारी मतदाता पर डाल दी गई है। उसे खुद प्रमाणित करना होगा कि वह पात्र है।

चुनाव आयोग से किए प्रमुख सवाल:

- 12 राज्यों का चयन किन मानदंडों पर हुआ, और इन मानदंडों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

- बिहार SIR में कितने विदेशी या गलत नाम पाए गए, इसका सटीक आंकड़ा क्या है?

- जब अक्टूबर 2026 में जनगणना होनी है, तो उससे पहले SIR क्यों? क्या इससे मतदाता डाटा में हेरफेर के अवसर नहीं बढ़ेंगे?

उमंग सिंघार ने आगे कहा कि SIR की प्रक्रिया यदि पारदर्शी और संतुलित नहीं की गई, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है। उन्होंने चुनाव आयोग से अपील की कि वह इस प्रक्रिया को रोककर पहले SSR की समीक्षा करे, राज्यों के चयन का आधार सार्वजनिक करे और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न हो।

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