कर्नाटक में दलित नेताओं की बैठक: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा, जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग

मंत्री ने कहा कि यह पूरा मामला 2011 की जनगणना पर आधारित है। सरकार को जनगणना से जुड़े मुद्दों की जांच करनी है ताकि सही आंकड़े सामने आ सकें।
कर्नाटक के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री और कांग्रेस विधायक के.एच. मुनियप्पा
कर्नाटक के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री और कांग्रेस विधायक के.एच. मुनियप्पाPic- Sachin Kumar
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बेंगलुरु। कर्नाटक के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री और कांग्रेस विधायक के.एच. मुनियप्पा ने हाल ही में दलित नेताओं की एक अहम बैठक के बाद कहा कि बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान करने की मांग की गई है।

मुनियप्पा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कुछ निर्देश दिए हैं, जिसके तहत एससी/एसटी समुदायों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से बांटा जाएगा। कर्नाटक सरकार, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने इस फैसले को लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए जस्टिस नागमोहन दास को नियुक्त किया गया है, जो इस पर विस्तृत अध्ययन कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे।

मंत्री ने कहा कि यह पूरा मामला 2011 की जनगणना पर आधारित है। सरकार को जनगणना से जुड़े मुद्दों की जांच करनी है ताकि सही आंकड़े सामने आ सकें।

बैठक में सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि सभी अनुसूचित जाति समूहों के लिए आरक्षण उनकी जनसंख्या के आधार पर तय होने चाहिए। इसके लिए जरूरी दस्तावेज तैयार किए जाएंगे और आयोग को सौंपे जाएंगे। पीडब्ल्यूडी मंत्री एच.सी. महादेवप्पा को इसकी जिम्मेदारी दी गई है।

मुनियप्पा ने कहा कि महादेवप्पा इस काम को तेजी से पूरा करने के लिए तैयार हैं। साथ ही, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुनावी तैयारियों की योजना भी बनाई है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को बदलने की कोई बात नहीं है। मंत्री ने कहा, "यह हमारे हाथ में नहीं है। यह फैसला हाईकमान को करना है। इस पर बार-बार बोलने की जरूरत नहीं है।"

उनका कहना था कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और इसे लेकर अनावश्यक चर्चा से बचना चाहिए।

मुनियप्पा ने भरोसा जताया कि जस्टिस नागमोहन दास की रिपोर्ट आने के बाद सरकार ठोस कदम उठाएगी। इससे पहले भी कर्नाटक में एससी/एसटी आरक्षण को लेकर कई चर्चाएं हो चुकी हैं, लेकिन अब जनसंख्या के आधार पर वर्गीकरण की प्रक्रिया तेज होने की उम्मीद है। इस फैसले से दलित समुदायों में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलने की संभावना जताई जा रही है।

(With inputs from IANS)

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