लोकसभा चुनाव: MP के तीसरे चरण में 9 सीटों पर होगा मतदान, शिवराज, दिग्विजय सिंह सहित सिंधिया मैदान में, क्या है सीटों का समीकरण?

भिंड और बैतूल संसदीय क्षेत्र में होगा भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों में कड़ा मुकाबला, क्षेत्र के मुद्दों से राजनीतिक सरगर्मी तेज और मतदाता हुआ मौन!
लोकसभा चुनाव: MP के तीसरे चरण में 9 सीटों पर होगा मतदान, शिवराज, दिग्विजय सिंह सहित सिंधिया मैदान में, क्या है सीटों का समीकरण?
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भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान भिंड, मुरैना, ग्वालियर, राजगढ़, भोपाल, विदिशा, गुना, सागर और बैतूल लोकसभा क्षेत्र होना हैं इन 9 सीटों पर 127 उम्मीदवार चुनावी मैदान पर उतरे हैं, इनमें से 9 महिला उम्मीदवार हैं। 9 लोकसभा सीटों में कुल 20 हजार 456 पोलिंग बूथों पर मतदान होगा। इन सीटों पर 1 करोड़ 77 लाख मतदाता 7 मई को वोट करेंगे।

तीसरे चरण में दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केन्द्रीय मंत्री मैदान में हैं। प्रदेश में लोकसभा चुनाव का यह चरण बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वजह इस चरण में शामिल गुना, राजगढ़ और विदिशा सीटों के प्रत्याशियों के सियासी कद हैं। विदिशा लोकसभा से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजगढ़ सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मैदान में हैं। जबकि गुना लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया लड़ रहे हैं. इस चरण में प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी मतदान होना है। भाजपा की सुरक्षित सीटों में शामिल इस लोकसभा के लिए बीजेपी ने पूर्व महापौर आलोक शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है।

इधर एससी के लिए आरक्षित सीट भिंड-दतिया और एसटी के लिए आरक्षित सीट बैतूल पर भी मतदान होगा। तीसरे चरण की इन दोनों आरक्षित सीटों पर वर्तमान में समीकरण क्या हैं? इसके लिए द मूकनायक ने आमजन सहित राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत की।

क्या हैं भिंड-दतिया सीट के समीकरण?

भिंड लोकसभा में भिंड जिले की पांच विधनसभा लहार, मेहगांव, गोहद, अटेर और भिंड शामिल हैं, और दतिया जिले की भांडेर, सेवड़ा और दतिया विधानसभा सीट शामिल हैं। इस बार भिण्ड-दतिया लोकसभा सीट पर कुल 18 लाख 93 हजार 631 कुल मतदाता वोट करेंगे। जिसमें 10 लाख 19 हजार 722 पुरुष और 8 लाख 73 हजार 872 महिला वोटर हैं। साथ ही 37 ट्रांसजेण्डर मतदाता भी हैं।

कांग्रेस ने आरक्षित भिंड सीट से फूल सिंह बरैया को चुनावी मैदान में उतारा है। इधर, भाजपा ने इस सीट की वर्तमान सांसद संध्या राय पर एक बार फिर भरोसा जताया है। लेकिन क्षेत्र की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार भिंड लोकसभा सीट भाजपा के हाथों से खिसक सकती है!

फूल सिंह बरैया प्रदेश में दलित समाज का बड़ा चेहरा हैं। ग्वालियर, चंबल और बुंदेलखंड संभाग में उनका वर्चस्व है। दलित नेता फूल सिंह बरैया के इस क्षेत्र में खास प्रभाव के चलते कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है। ग्वालियर-चंबल संभाग में फूल सिंह कांग्रेस के सबसे मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे हैं।

भिंड-दतिया लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। 2009 में यहां से भाजपा के अशोक अर्गल सांसद रहे। 2014 में भाजपा के डॉक्टर भगीरथ प्रसाद सांसद बने फिर पार्टी ने 2019 में भागीरथ का टिकट काटकर संध्या राय को मैदान में उतारा। भाजपा की लहर में संध्या राय ने कांग्रेस प्रत्याशी देवाशीष जरारिया को दो लाख वोटों से हराकर जीत हासिल की। जिसके बाद अब 2024 में भाजपा ने पुनः संध्या राय को टिकट देकर मैदान में उतार दिया। लेकिन कांग्रेस ने फूल सिंह बरैया को प्रत्याशी बनाकर मजबूत सियासी चाल चली।

क्षेत्र की जनता के मुताबिक भाजपा सांसद संध्या राय का पिछला कार्यकाल बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है। क्षेत्र के लोगों से संपर्क न होना, ज्यादातर वक्त क्षेत्र से बाहर बिताना अब उनकी मुश्किलों को बढ़ा रहा है। टिकट मिलने के बाद क्षेत्र में पहुँची संध्या को लोगों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ रहा था। कई गांवों में विरोध इतना तेज है कि लोग उन्हें खूब खरीखोटी सुना रहे हैं। पिछले दिनों जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।

द मूकनायक प्रतिनिधि से टेलीफोनिक बातचीत करते हुए भिंड के लहार निवासी लाखन सिंह यादव ने बताया कि क्षेत्र की जनता संध्या राय के कार्यकाल से नाराज है। पिछले पांच वर्षों में उन्होंने क्षेत्र में न ही कोई विकास कार्य किया और न ही दौरे किए। वह आम जनता से नहीं मिलती थीं। लाखन सिंह ने कहा, "क्षेत्र का दुर्भाग्य है कि उनकी सांसद ने लोगों से मिलना तो दूर कस्बों के रास्ते तक नहीं देखें।"

भिंड की समाजसेवी और अधिवक्ता सौम्या शर्मा ने बताया कि जो वादे पिछले चुनाव में भाजपा और संध्या राय ने किए वो आजतक पूरे नहीं हो पाए। भिंड-ग्वालियर हाईवे का वादा किया था, लेकिन उसका कुछ नहीं हुआ। इस मार्ग पर हर साल कई लोगों की जान सड़क दुर्घटना में चली जाती है। सौम्या ने कहा, "सांसद संध्या राय यहां नहीं रहती, लोग बताते हैं कि उनका घर इंदौर में है। वह वहां रहती है या दिल्ली में रहती हैं। भिंड में वह कभी किसी कार्यक्रम या बैठक में शामिल होती है, आमजन से उनका कोई सरोकार नहीं है।"

इधर, दतिया जिले के निवासी विवेक शर्मा कांग्रेस के प्रत्याशी फूल सिंह बरैया पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा रहे हैं। विवेक का कहना है कि वह एक विशेष जाति को खुश करने के लिए अन्य जातियों के खिलाफ बोलती हैं। वह महापुरुषों का भी मंचों से अपमान करते हैं।

क्या हैं जातीय समीकरण?

सीट को जतीय समीकरण के हिसाब से देखें तो अनुमान के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र में करीब 3 लाख क्षत्रिय, साढ़े तीन लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख वैश्य के साथ ही दलितों के करीब तीन लाख वोटर हैं। वहीं आदिवासी, अल्पसंख्यक और अन्य के वोटों का आंकड़ा करीब चार लाख अस्सी हजार के आसपास है। इसी तरह धाकड़, किरार, गुर्जर, कुशवाह, रावत, राठौर, समाज का वोट भी ढाई लाख के करीब हैं। इस इलाके में ब्राह्मण, क्षत्रिय और दलितों वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।

विधानसभा चुनाव 2023 में भिंड पॉंच विधानसभा सीटों पर भाजपा के भिंड विधानसभा क्षेत्र से नरेंद्र सिंह कुशवाह और लहार विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के अंबरीश शर्मा और मेहगांव विधानसभा क्षेत्र से भाजपा से राकेश शुक्ला विधायक बने थे। वहीं अटेर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के हेमंत कटारे (उप नेता प्रतिपक्ष) और गोहद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के केशव देसाई वर्तमान विधायक हैं। दतिया जिले की तीन विधानसभा सीटों में दो पर कांग्रेस के विधायक हैं और एक सीट पर भाजपा का कब्जा है। भांडेर से कांग्रेस के फूल सिंह बरैया (प्रत्याशी लोकसभा भिंड), दतिया विधानसभा से कांग्रेस के राजेन्द्र भारती और सेड़वा से भाजपा के प्रदीप अग्रवाल विधायक हैं।

कौन हैं फूल सिंह बरैया?

62 साल के फूल सिंह बरैया, 1998 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से विधायक बने थे। उन्होंने 2003 में बसपा छोड़ दी थी। फिर 2019 को कांग्रेस में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बने, लेकिन वह हार गए। 2020 के विधानसभा उप-चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दतिया जिले की भांडेर से चुनाव लड़े लेकिन यहाँ भी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2023 में उन्हें फिर भांडेर से टिकट दिया इस बार फूल सिंह निर्वाचित होकर विधायक बने।

क्या हैं बैतूल-हरदा सीट के समीकरण?

बैतूल लोकसभा के अन्तर्गत आठ विधानसभा सीट है। इसमें हरदा जिले की दो सीटें-टिमरनी और हरदा, खंडवा जिले की हरसूद विधानसभा सीट और बैतूल जिले की पांच विधानसभा सीट घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, आमला, मुलताई और बैतूल है। बैतूल लोकसभा में कुल 17,37,437 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या- 8,39,871 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 8,97,538 है। यहां थर्ड जेंडर निर्वाचक कुल 28 हैं। यहां की 40.56 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति के लोगों की है और 11.28 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति के लोगों की है।

अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित बैतुल लोकसभा सीट पर इस बार कड़ा मुकाबला होगा। हरदा, बैतुल और खण्डवा इन तीनों जिलों को मिलाकर बैतुल लोकसभा बना है। इस लोकसभा क्षेत्र को भाजपा का अभेद किला कहा जाता है। यहां 1996 के बाद हुए 9 लोकसभा चुनाव और उपचुनाव समेत बीजेपी एक भी चुनाव नहीं हारी है। लेकिन एक जमाने में बैतुल कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाती थी। लोकसभा चुनाव 2024 में बैतुल सीट का राजनीतिक रूपी ऊंट किस करवट बैठेगा इस पूरे समीकरण को द मूकनायक के विश्लेषण से समझिए।

बैतूल संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी दुर्गादास उइके बैतूल के मौजूदा सांसद हैं, भाजपा ने दूसरी बार उनपर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट से रामू टेकाम को प्रत्याशी बनाया है। 2019 में रामू चुनाव हार गए थे।

इस क्षेत्र से लोगों का सीमावर्ती राज्य महाराष्ट्र में पलायन हो रहा है। रोजगार की तलाश में यहां के लाखों लोग पलायन कर जाते हैं। इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य का भी मुद्दा अहम है। यहां के लोग इलाज के लिए नागपुर जाते हैं। महाविद्यालयों की भी कमी है, छात्र उच्च शिक्षा के लिए नागपुर, भोपाल और जबलपुर जाते हैं।

हरदा निवासी सौरभ सिंह बताते हैं कि इस क्षेत्र में रोजगार की खासी कमी है। कोई भी प्रोजेक्ट फैक्ट्री इस क्षेत्र में नहीं है, जहाँ लोगों को काम मिल सके। इस बार के चुनाव में रोजगार का मुद्दा है। इतने वर्षों से भाजपा के सांसद यहां रहे लेकिन विकास नहीं हुआ। तीनों जिलों में सबसे ज्यादा हालत खराब हरदा जिले की है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए बैतूल के स्थानीय पत्रकार अनिल कजोडे कहते हैं, इस बार मतदाता साइलेंट हैं। भाजपा के दुर्गादास उइके की आंतरिक विरोध की जानकारी मिल रही है। भाजपा प्रत्याशी कार्यकर्ताओं से दूर रहे हैं, इसलिए पार्टी के मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं में नाराजगी की खबरें भी सामने आ रही हैं। अनिल ने कहा, "इस क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा पलायन, रोजगार और स्वास्थ्य का है, जिस पर बीते 5 वर्षों में कोई खास काम नहीं हुआ।"

क्या हैं जातीय समीकरण?

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 78.15% था। बात जातिगत समीकरण की करें तो इस लोकसभा सीट पर एससी एसटी वर्ग के मतदाता निर्णायक हैं। इसके बाद ओबीसी और सामान्य वर्ग के मतदाता प्रभावी हैं। इसके साथ ही मुस्लिम मतदाता यहां जीत हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

सीट का इतिहास?

बैतूल संसदीय क्षेत्र के इतिहास में हुए 17 चुनावों में कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला बराबर का रहा है। दोनों ही दलों ने 8-8 बार जीत दर्ज की है। एक बार भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की थी। पिछले सात चुनावों से इस सीट पर लगातार भाजपा जीत दर्ज कर रही है। 2009 में नए परिसीमन के बाद यह सीट अजा वर्ग के लिए आरक्षित हुई। इसके बाद हुए दो चुनावों में भी भाजपा ने सीट बरकरार रखी। 2019 की टक्कर इस मायने में रोचक है कि दोनों ही दलों के प्रत्याशी पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। बैतूल को छोड़ दिया जाए तो हरदा-हरसूद क्षेत्र के लिए यह नए चेहरे हैं।

बैतूल लोकसभा सीट पर 1951 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। 1957, 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस बरकरार रही। 1977 के चुनाव में यह सीट भारतीय लोकदल ने पहली जीत हासिल की। हालांकि, 1980 में कांग्रेस ने यहां पर वापसी की और गुफरान ए आजम सांसद बने। इसके अगले चुनाव 1984 में भी कांग्रेस को जीत मिली। भाजपा ने पहली बार यहां पर जीत 1989 में हासिल की। आरिफ बेग ने कांग्रेस के असलम शेर खान को हराकर यहां पर भाजपा को पहली जीत दिलाई।

1991 के चुनाव में कांग्रेस के असलम शेर खान ने भाजपा के आरिफ बेग को हरा दिया। 1996 में भाजपा ने यहां पर फिर वापसी की और विजय कुमार खंडेलवाल यहां के सांसद बने। तभी से यह सीट भाजपा के पास है। विजय कुमार खंडेलवाल ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में जीत दर्ज की। उनके निधन के बाद 2008 में हुए उपचुनाव में विजय कुमार खंडेलवाल के बेटे हेमंत खंडेलवाल जीत कर सांसद बने। परिसीमन के बाद 2009 में यह सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। 2009 में भाजपा ने यहां से ज्योति धुर्वे को उतारा। ज्योति धुर्वे ने जीत हासिल की। धुर्वे 2014 की मोदी लहर में फिर सांसद चुनी गईं।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ज्योति धुर्वे का टिकट काट कर दुर्गा दास उइके को मैदान में उतारा था। उइके ने कांग्रेस पार्टी के रामू टेकाम को 3,60,241 वोटों से चुनाव हराया था। तीसरे स्थान पर बीएसपी के अशोक भलावी रहे थे। बीजेपी के दुर्गा दास उइके को जहां 811248 (59.74) प्रतिशत वोट मिले थे जबकि कांग्रेस पार्टी के रामू टेकाम को 4,51,007 वोट मिले। वहीं बीएसपी के अशोक भलावी को 23,573 वोट मिले थे।

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