मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना के असर से शून्य हो गई सत्ता विरोधी लहर!

माना जा रहा है कि 18 साल से सत्ता में बनी भाजपा को वापस सरकार बनाना कठिन काम था लेकिन शिवराज सिंह सरकार की गेम चेंजर कहीं जाने वाली लाडली बहना स्कीम ने सत्ता विरोधी लहर को शून्य कर दिया।
मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान जीत की खुशी में पार्टी नेताओं के साथ मुहँ मीठा करते हुए।
मध्य प्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान जीत की खुशी में पार्टी नेताओं के साथ मुहँ मीठा करते हुए। फोटो साभार- हिंदुस्तान टाइम्स

भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस बार ‘लाडली बहनों’ ने आशीर्वाद देकर भाजपा का सत्ता में आने का रास्ता साफ कर दिया है। शिवराज सिंह चौहान खुद को राज्य की बेटियों का ‘मामा’ कहलाना पसंद करते हैं। लेकिन इस बार शिवराज का फोकस प्रदेश की महिलाओं पर था। करीब 18 साल से सत्ता में बनी भाजपा को वापस सरकार बनाना कठिन काम था लेकिन शिवराज सिंह सरकार की गेम चेंजर कहीं जाने वाली लाडली बहना स्कीम ने सत्ता विरोधी लहर को शून्य कर दिया और भाजपा भारी बहुमत से पुनः सरकार बनाने में सफल हो गई।

राजनीतिक विश्लेषक इस जीत को लाडली बहना योजना से हुए महिलाओं पर प्रभाव की आंधी बता रहें है। 2003 में जब भाजपा की लहर थी तब भी इतनी भारी संख्या में सीटें नहीं आईं थी। हाल में हुई मतगणना में भाजपा ने कुल 230 सीटों में से 163 सीटें जीती हैं वहीं तख्ता पलट करने का दावा करने वाली कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई। वहीं इस चुनाव में बसपा, सपा, आजाद समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन जीरो रहा जबकि राजस्थान में कुछ समय पहले गठित हुई भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के एक प्रत्याशी ने जीत दर्ज कराई है। 2018 के चुनाव में भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी।

इन योजनाओं का रहा असर

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार नई योजनाओं को बनाकर जनता तक सीधे फायदा देने का काम करते आएं हैं। सीएम ने 2007 में ‘लाडली लक्ष्मी योजना’ लागू की थी। वर्तमान में इस योजना के तहत राज्य सरकार बेटियों को अलग-अलग कक्षा में पहुंचने पर प्रोत्साहन राशि देती है। जबकि 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने और 21 साल की आयु में विवाह करने पर 1 लाख रुपए का अंतिम भुगतान करती है। इसी योजना के चलते शिवराज सिंह चौहान को लोग ‘मामा’ कहकर बुलाते हैं।

2007 में लाडली लक्ष्मी योजना के बाद साल 2008 के विधानसभा में भी भाजपा को जीत मिली थी। साल 2023 के चुनाव में लाडली बहना योजना ने कमाल दिखाया है। इस योजना को इसी साल जनवरी में लागू किया गया था लाडली बहना योजना के तहत राज्य की महिलाओं को हर महीने 1250/- रुपए की सहायता राशि सीधे उनके बैंक खातों भेजी जाती है।

1 हजार से बढ़कर 3 हजार तक होगी राशि

प्रदेश की एक करोड़ 31 लाख लाड़ली बहनों को वर्तमान में 1250 रुपये प्रतिमाह मिल रहें हैं। अक्टूबर में ही इस राशि को बढ़ाया गया है। इससे पहले जब योजना की शुरुआत हुई तब एक हजार रुपये पात्र महिलाओं के खातों में भेजे जा रहे थे। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने योजना की राशि धीरे-धीरे बढ़ाकर तीन हजार रुपये तक ले जाने की घोषणा की थी।  

रक्षाबंधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 250 रुपये अलग से दिए थे और यह घोषणा की थी कि अक्टूबर से 1000 रुपये के स्थान पर 1250 रुपये दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने लाडली बहना योजना की राशि को बढ़ाने का एलान कई वार मंचों से किया उन्होंने कहा था, अभी सिर्फ 250 बढ़ाये है जल्दी ही इसे 1500 करूंगा और जैसे ही और पैसों की व्यवस्था करके इसे तीन हजार रुपए तक करूंगा।

भाजपा सरकार की लाडली बहना योजना को गेम चेंजर माना जा रहा था। और वास्तव में यह योजना भाजपा के लिए वरदान साबित हुई है। चुनाव के पूर्व में से ही राजनीतिक विश्लेषक मान रहे थे कि भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है। लेकिन लड़नी बहना योजना से बनी भाजपा की आंधी ने विरोध की लहर को शून्य कर दिया।

लाडली बहना योजना के खासे प्रभाव के कारण दलित आदिवासी महिलाओं का समर्थन भाजपा को मिला प्रदेश में लगभग 11 प्रतिशत आदिवासी और 8 प्रतिशत दलित आदिवासी महिलाओं की संख्या है। पिछली बार 2018 के चुनाव में दलित वर्ग का 70 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिला था। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस ने 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दो सीटें और सपा को एक सीट मिली थी। लेकिन इस बार बसपा और सपा का खाता तक नहीं खुला सिर्फ एक सीट भारत आदिवासी पार्टी को मिल पाई है। भाजपा को एक तिहाई बहुमत मिलने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों कहना है कि लाडली बहना योजना के कारण इतनी बड़ी जीत भाजपा को मिली है।

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